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हास्य-व्यंग्य - Manav Charitra Ke Vyangya

हास्य-व्यंग्य - Manav Charitra Ke Vyangya
अभी- अभी मेरे- सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है । वह बालिश्त- भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली- सी टहनी से चिपका हुआ है । मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ । यह क्या? कभी उसके शरीर का हर हिस्सा लाल हो जाता है, कभी हरा, कभी पीला । यह हर पल रंग कैसे बदल लेता है? मैं अपने आप से यह प्रश्‍न बार-बार पूछता हूँ । भीतर से आई कोई अजनबी-सी आवाज मुझे चौंका देती है । गिरगिट ठीक ऐसे ही रंग बदलता है जैसे आदमी । बस, अंतर इतना है कि गिरगिट बेचारे के रंग दिखाई दे जाते हैं, आदमी के रंग दिखाई नहीं देते । आदमी से अधिक ' टेक्नीकलर ' चीज तो दुनिया में कोई है नहीं । आदमी तो वह प्राणी है जो रंग तो बदलता है पर गिरगिट की भांति उसका प्रदर्शन नहीं करता । गिरगिट के रंगों से आदमी को कोई खतरा नहीं, पर आदमी के रंग से? ? गिरगिट के भीतर जितने रंग हैं और जितने रंग वह बदलता है, वे कम-से- कम सब गिरगिटों में एक जैसे होते हैं पर आदमी और आदमी के रंगों में तो जमीन- आसमान का अंतर है । भगवानदत्त के जो रंग-ढंग हैं वे ईश्‍वरप्रसाद के नहीं और ईश्‍वरप्रसाद के जो रंग-ढंग हैं वे परमात्माशरण के नहीं, और परमात्माशरण के जो हाव- भाव हैं वे ब्रह्मानंद के नहीं । कम-से-कम एक गिरगिट और दूसरा गिरगिट अपनी अंतरात्मा में तो एक है । गिरगिट-गिरगिट में समानता और आदमी- आदमी में असमानता । मानव चरित्र के गिरते ग्राफ पर तीखी चोट करने वाले ये व्यंग्य आदमी के चेहरे को बेनकाब करते हैं ।

हास्य-व्यंग्य - Manav Charitra Ke Vyangya

Manav Charitra Ke Vyangya - by - Prabhat Prakashan

Manav Charitra Ke Vyangya - अभी- अभी मेरे- सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है । वह बालिश्त- भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली- सी टहनी से चिपका हुआ है । मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ । यह क्या?

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  • Stock: 10
  • Model: PP2974
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2974
  • ISBN: 9789352664054
  • ISBN: 9789352664054
  • Total Pages: 142
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2017
₹ 400.00
Ex Tax: ₹ 400.00