हास्य-व्यंग्य - Best Of Omprakash Aditya
बेस्ट ऑफ ओमप्रकाश आदित्य मैंने लिक्खा पानीपत का दूसरा युद्ध भर सावन में जापान-जर्मनी बीच हुआ अठारह सौ सत्तावन में।
राणा प्रताप ने मोहम्मद गोरी को दस बार हराया था अकबर ने हिंद महासागर अमरीका से मँगवाया था महमूद गजनबी उठते ही दो घंटे रोज नाचता था औरंगजेब रंग में आकर औरों की जेब काटता था।
तैमूर लंग हर इक जंग में दुश्मन की टाँग तोड़ता था कहते हैं चैम्सफोर्ड घर में सौ चिलमें रोज फोड़ता था।
इस तरह अनेकों भावों के फूटे भीतर से फव्वारे जो-जो सवाल थे याद नहीं वे ही परचे पर लिख मारे। हो गया परीक्षक पागल-सा मेरी कॉपी को देख-देख बोला—इन सारे छात्रों में बस होनहार है यही एक।
—इसी संकलन से
हास्य-व्यंग्य के जाने-माने हस्ताक्षर और हास्य शिरोमणि श्री ओमप्रकाश आदित्य की सर्वश्रेष्ठ कविताओं का ऐसा संकलन, जिनका रसपान कर सुधी पाठक आनंद की मस्ती में झूम-झूम जाएँगे।अनुक्रमवाह, वाह! — Pgs. 51. इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं — Pgs. 92. गुप्ताजी के मकान का उद्घाटन — Pgs. 123. जूड़ा परिवर्तन — Pgs. 184. छापा — Pgs. 235. तोता ऐंड मैना — Pgs. 286. दूल्हे की घोड़ी — Pgs. 387. कवि और रामप्यारी — Pgs. 448. गरीबों का गणतंत्र — Pgs. 539. चप्पल-प्रिया — Pgs. 5910. वर्मा के घर शर्मा — Pgs. 6811. स्वर्ग धाम से नरक निवास तक — Pgs. 7412. अस्पताल की टाँग — Pgs. 8113. नेता का नख-शिख वर्णन — Pgs. 9114. होनहार — Pgs. 9715. उद्घाटन चमत्कार — Pgs. 10116. सखी की सीख — Pgs. 10417. देश — Pgs. 11418. इतिहास का परचा — Pgs. 12319. नोट देव की आरती — Pgs. 12920. तरुवर की हरियाली — Pgs. 13221. कवि पंचायत — Pgs. 13822. भारतीय गोलची का रहस्यवाद — Pgs. 14823. नमकहराम उल्लू — Pgs. 15524. शादी हो गई — Pgs. 15925. अब तक कुँवारा हूँ — Pgs. 16226. वक्तजी और पत्थर — Pgs. 170
हास्य-व्यंग्य - Best Of Omprakash Aditya
Best Of Omprakash Aditya - by - Prabhat Prakashan
Best Of Omprakash Aditya - बेस्ट ऑफ ओमप्रकाश आदित्य मैंने लिक्खा पानीपत का दूसरा युद्ध भर सावन में जापान-जर्मनी बीच हुआ अठारह सौ सत्तावन में। राणा प्रताप ने मोहम्मद गोरी को दस बार हराया था अकबर ने हिंद महासागर अमरीका से मँगवाया था महमूद गजनबी उठते ही दो घंटे रोज नाचता था औरंगजेब रंग में आकर औरों की जेब काटता था। तैमूर लंग हर इक जंग में दुश्मन की टाँग तोड़ता था कहते हैं चैम्सफोर्ड घर में सौ चिलमें रोज फोड़ता था। इस तरह अनेकों भावों के फूटे भीतर से फव्वारे जो-जो सवाल थे याद नहीं वे ही परचे पर लिख मारे। हो गया परीक्षक पागल-सा मेरी कॉपी को देख-देख बोला—इन सारे छात्रों में बस होनहार है यही एक। —इसी संकलन से हास्य-व्यंग्य के जाने-माने हस्ताक्षर और हास्य शिरोमणि श्री ओमप्रकाश आदित्य की सर्वश्रेष्ठ कविताओं का ऐसा संकलन, जिनका रसपान कर सुधी पाठक आनंद की मस्ती में झूम-झूम जाएँगे।अनुक्रमवाह, वाह!
- Stock: 10
- Model: PP2984
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP2984
- ISBN: 9788173156908
- ISBN: 9788173156908
- Total Pages: 176
- Edition: Edition 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2018
₹ 300.00
Ex Tax: ₹ 300.00