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कहानी

कहानी
“रात को तो मैंने नहीं पहचाना, पर जरा साफ हो जाने पर पहचान गया। एक बार मैंने यह एक मरीज को लेकर आया था। मुझे अब याद आता है कि मैं खेलने जा रहा था और मरीज को देखने से इनकार कर दिया था। आज उस दिन की बात याद करके मुझे जितनी ग्लानि हो रही है, उसे प्रकट नहीं कर सकता। मैं उसे अब खोज निकालूँगा और उसके पैरों..
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जानते हो लुई पास्चर ने कैसे सफलता पाई? रोग फैलानेवाले कीटाणुओं के इंजेक्शन रोगी कीड़ों को लगाए गए। इससे माइक्रोवेव नष्‍ट किए गए। जहर-से-जहर को निष्प्रभावी बनाया गया। राष्‍ट्र के लिए मरनेवालों का आकलन यत् किंचित‍् ही सही, लेकिन किया गया है, किंतु राष्‍ट्र के लिए जीनेवालों का आकलन हुआ ही नहीं। जब यह ..
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‘पृथिवी-पुत्र’ डॉ. वासुदेवशरण  अग्रवाल द्वारा समय-समय पर लिखे गए उन लेखों और पत्रों का संग्रह है, जिनमें जनपदीय दृष्टिकोण से साहित्य और जीवन के सम्बन्ध में कुछ विचार प्रकट किए गए थे। इस दृष्टिकोण की मूल प्रेरणा पृथिवी या मातृभूमि के साथ जीवन के सभी सूत्रों को मिला देने से उत्पन्न होती है। ‘पृथिवी-पु..
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हिंदी कथा-साहित्य के सुप्रसिद्ध गांधीवादी रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर अपने पारिवारिक परिवेश से कहानी लिखने की ओर प्रवृत्त हुए बाल्यकाल में ही उन दिनों की प्रसिद्ध ' उन्होंने पढ़ डाली थीं । उनकी प्रथम कहानी नवंबर 1931 के 'हिंदी मिलाप ' में छपी । इसका कथानक बताते हुए वे लिखते हैं-' परिवार का स्वामी जुआ..
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भारतवर्ष में ज्ञान संचय की दीर्घ परंपरा रही है। हमारे ऋषि-मुनियों तथा तपस्वियों के अनुभव और अनुसंधान पौराणिक साहित्य—वेद, पुराण, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथों आदि—में भरा पड़ा है। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जिसको इस ज्ञान से निर्देशन न मिलता हो। भारतीय जनमानस को यह अकूत ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी मिलता रहा..
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"अरे! सिरदर्द हो रहा है।’’ ‘‘इतवार को आवारागर्दी कम किया करो, सोमवार को सिरदर्द नहीं होगा।’’ स्वामी जानता था कि उसके पिता कितने सख्त हैं, इसलिए उसने तुरंत दूसरा बहाना बनाया, ‘‘मैं इतनी देर से कक्षा में नहीं जा सकता।’’ ‘‘मैं मानता हूँ, लेकिन फिर भी जाना पड़ेगा। गलती तुम्हारी है।न जाने का फैसला लेन..
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कालिदास के ग्रंथों में ‘रघुवंश’ का विशेष महत्त्व है। इसमें एक ओर ‘यथा-राजा तथाप्रजा’ के प्रमाण को आधार बनाकर राजचरितों के उदाहरण से सामान्य प्रजा के जीवन को चित्रित करने का प्रयत्न किया गया है और दूसरी ओर समाज के सामने कतिपय उत्तम प्रजापालकों का आदर्श भी उपस्थित किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि..
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भारतीय इतिहास में सर्वािधक लोकप्रिय राजाओं की अग्रिम पंक्ति में  अपनी पहचान बनानेवाले राजा भोज को भला कौन नहीं जानता! सहनशीलता, दयालुता, न्यायिप्रय, प्रजापालक, वीर, प्रतापी आदि गुणों के स्वामी राजा भोज की वीरता, साहस और न्यायप्रियता की कहानियाँ आज केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में प..
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प्रस्तुत पुस्तक में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कुछ ऐसी ही कहानियों को संगृहीत किया गया है, जिनके द्वारा धर्म, सत्यता, संस्कार और प्रेम का ज्ञान प्रकट होता है। सरल भाषा एवं सुंदर चित्रों के साथ पुस्तक को आकर्षक एवं उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है। हमें आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि राजा हरिश्च..
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लोककथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। ये संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं, जिसकी वे लोककथाएँ हैं। आज से करीब 100 साल पहले, ये लोककथाएँ केवल जबानी ही कही जाती थीं और कह-सुनकर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्राप्त होती थीं। इसलिए किसी भी लोककथा का मूल रूप क्या रहा होगा, ..
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दैनिक जागरण समूह के ‘पुनर्नवा’ साहित्य परिशिष्ट के संपादक लब्धप्रतिष्ठ वरिष्ठ कथाकार श्री राजेंद्र राव देश के अग्रपंक्ति के महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। जब हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का प्रकाशन सैकड़ों-हजारों में नहीं, लाखों प्रतियों में होता था, ऐसे सत्तर और अस्सी (बीती सदी) के दशक में अपनी कथाओं, ..
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रामदरश मिश्र के कथा साहित्य के केंद्र में मनुष्य है, उसकी पीड़ा दुःख कथा है। मनुष्य की चिंता लगभग सभी कहानियों में देखी जा सकती है। यह मनुष्य गाँव का, नगर का अथवा महानगर का है। लेखक ने गाँव भी देखा है, नगर तथा महानगर भी। उसके जीवन के अनुभव व्यापक हैं। मनुष्य तथा उसके साथ जुड़े हुए सुख-दुःख लेखक को भ..
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