विश्वविद्यालय की एक एकाकी महिला प्रोफेसर के यशस्वी जीवन में कालिख पोतने का अटूट सिलसिला जब अचानक ही शुरू हो जाता है, तो वह अबूझ भाव से उसे देखने के सिवाय कुछ नहीं कर पाती। आखिर कौन और क्यों इस तरह हाथ धोकर उनकी चरित्र-हत्या करने पर तुल गया है? विश्वविद्यालय के तमाम बड़े अधिकारियों के पास उन्हें ले..
"भारत की आध्यात्मिकता तथा पश्चिम की विज्ञान और तकनीक—इन दोनों के समन्वय से आनेवाले समय में एक नए भारत का निर्माण होगा, इस दिशा में महान् युगप्रवर्तक स्वामी विवेकानंद ने जोर दिया। ऐसा करना है, तो युवा और आनेवाली पीढ़ी के मानस में परिवर्तन करना होगा।
अगर भारत वर्ष का उत्थान करना है तो सबसे पहले भारत ..
“ना बबुआ ना, रोइए नहीं। मैं आपके आँसू नहीं देख सकता।”
वे और रोने लगे। मैंने उनका सिर अपने हाथों में भर लिया और आँसू पोंछने लगा। वे बच्चे की तरह मेरी गोद में भहरा उठे। कुछ देर बाद बोले, “कहाँ रहे दिन भर?”
“खेतों में आपके साथ घूमता रहा।”
“मेरे साथ?”
“हाँ, आपकी यादों के साथ।”
“अच्छा जाओ, खाना-वाना..
विश्व कथा साहित्य के सर्वाधिक चर्चित भारतीय साहित्यकारों में शुमार होनेवाले श्री मनोज दास को प्राचीन पृष्ठभूमि से आधुनिक समाज के तारों को पिरोकर प्रस्तुत करने में अद्भुत महारत हासिल है। ‘स्वर्ण कलश’ नामक उनका यह कथा-संग्रह ऐसे ही विशेष चरित्रों से बुना हुआ है। इस संग्रह में परी-कथा, पुरातन-कथा और..
‘ताना-बाना’ कथा-संग्रह की सभी कहानियाँ विभिन्न विषयों की होते हुए भी नारी-प्रधान हैं। इसमें उच्च-मध्यम वर्ग की महिलाओं की भावनाओं एवं समस्याओं का वर्णन है।
‘ताना-बाना’ सरल दस्तकारी में दक्ष पढ़ी-लिखी आभिजात्य परिवार की गृहलक्ष्मी का जीवन है। ‘चन्न चणे ते पानी पीना’ एक व्यंग्यात्मक कथा है। ‘कर्मणा व..
कैसे जीते हैं लोग यहाँ? उफ, कब उद्धार होगा सभ्यता से कटे, ऊँघते कस्बे के इन लोगों का? सबसे बड़ी बात, उन्हें खुद नहीं मालूम कि वे कितने गए-गुजरे, अहमक किस्म के लोग हैं और दुनिया कितनी-कितनी आगे बढ़ गई है! यहाँ औरतें मर्तबानों को धूप-छाँह में सरकाती, पापड़ों को उलटती-पलटती और बेटियों की कसी-कसी चोटिया..
अमर गोस्वामी की कहानियों में बार-बार एक अमानवीय ऊँचाई पर पहुँचकर त्रासदी और कौतुक के बीच का फेंस टूटकर बिखर जाता है और दर्द की चुभन से हम ठहाका लगाकर हँसते नजर आते हैं। सिर्फ कहानी में ही नहीं, किसी भी कला विधा में ऐसे शिल्प को पाना अत्यंत कठिन काम है। कथाकार का यह शिल्प न केवल उन्हें विशिष्ट बनाता..
‘‘हाँ! क्या मामला है? न्याय की प्रक्रिया शुरू की जाए।’’‘‘जी, ये इस शहर के एक युवक के साथ शहर की सीमा पार कर रही थी। यह जुर्म किया है इसने।’’‘‘नहीं! मैंने जुर्म नहीं किया है। इस युवक ने मेरे आगे पेशकश की थी कि यह मुझे गाँव छोड़ आएगा। वहाँ मेरे बच्चे भूखे हैं। मैं उनके लिए रोटी लेकर जा रही थी।’’..
उफ! उसने तो इतनी जल्दी की अपनी भूमिका जल्दी-जल्दी निभाने के बाद दृश्य से गायब होने की कि आश्चर्य-परम प्राश्चर्य! मानो जिंदगी में हर मोरचे पर हारने और हर मोरचे पर मुझसे पीछे, बहुत पीछे रहनेवाला नवीन आगे निकलने को इस बुरी तरह बेताब हो कि उसने अपने भीतर का सारा बल समेटकर और सबकुछ दाँव पर लगाकर एक अंत..
जब दसवीं पास की, उस वक्त मेरे पास अनगिनत किस्से और कहानियों का खजाना था। करीब दो साल बाद उन्हें सहेजना शुरू किया। गरमी की एक दोपहर को पहली कहानी लिखी। फिर रोज लिखने का सिलसिला शुरू हो गया। एक महीने बाद करीब 17 कहानियाँ थीं। उसके बाद जिंदगी बहुत तेज भागी। मैंने उन पन्नों को भुला दिया, जो कभी लिखे गए ..
इस देश में कथा-कहानियों की परंपरा विश्व में सबसे प्राचीन है। घर के बड़े-बुजुर्ग कथा-कहानियों के माध्यम से बच्चों की माँग पूरी करते हैं, साथ-ही-साथ उन्हें मनोरंजक बनाकर सुनाते भी हैं।इस कहानी-संग्रह में मुख्यतः बुजुर्ग वर्ग की पीड़ा बयाँ करती कहानियाँ हैं। 21वीं सदी की पीढ़ी बड़ी बेसब्री की हद तक म..