वाजपेयीजी ने हिंदी पत्रकारिता कला के निखार के लिए इसके विभिन्न पक्षों पर भरपूर लेखन किया। कलकत्ता से प्रकाशित ‘हिंदी बंगवासी’ (1905) से पत्रकारिता प्रारंभ करने वाले वाजपेयीजी ने मासिक पत्र ‘नृसिंह’ (1907) का संपादन किया। ‘भारतमित्र’ के प्रधान संपादक बनने के पूर्व वाजपेयीजी ने कुछ समय तक ‘सनातन धर्म’..
हिंदी पत्रकारिता की संपादन-चर्या के आदि चरण पर ही बालमुकुंद गुप्त ने जोखिम भरी देश-प्रीति का प्रमाण दिया था। कालाकांकर के ‘हिंदोस्थान’ की सेवा से वे इस अपराध के आधार पर विमुक्त कर दिए गए थे कि ‘सरकार के खिलाफ बहुत कड़ा’ लिखते थे। पराधीन भारत की हिंदी पत्रकारिता का यह एक प्रेरक तथ्य है। ‘हिंदी बंगव..
‘गागर में सागर’ यानी कुछ किताबी पन्नों में शस्य-श्यामला माँ भारती का अतुल वैभव समेटने का यह विनम्र प्रयास है। मानव सभ्यता के प्रामाणिक वैज्ञानिक दस्तावेज, हमारे शिल्पियों एवं वास्तुकारों से निर्मित भारत के सात महान् आश्चर्य, योग-आयुर्वेद के चमत्कारी नुस्खे, अणु-परमाणु, अंतरिक्ष यान, परखनली शिशु के म..
तमाम व्यावसायिकता के नारों के बीच भारतीय मीडिया को यह समझना होगा कि वह लोकतंत्र का शक्तिशाली स्तंभ है और राष्ट्रीय संस्कारों तथा लोकतांत्रिक मूल्यों का संवाहक भी । वह दिशादर्शन के गहरे दायित्व-बोध से भी जुड़ा हुआ है । भारतीय मीडिया-चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो अथवा प्रिंट मीडिया-दोनों का ही सैद्..
डेवी डेसिमल वर्गीकरण (डी.डी.सी. या डी.सी.) न केवल विश्व की सर्वप्रथम पुस्तकालय वर्गीकरण प्रणाली है बल्कि यह विश्व की सर्वाधिक प्रचलित वर्गीकरण प्रणाली भी है । दुनिया के लगभग एक सौ पचास देशों के बहुसंख्यक पुस्तकालयों में इस प्रणाली के आधार पर पुस्तकों का वर्गीकरण किया जाता है । भारत में भी यह प्रण..
वैश्वीकरण और प्रौद्योगिकी की आँधी में जब राष्ट्रीय सीमाएँ टूट रही हों, मूल्य अप्रासंगिक बनते जा रहे हों और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है । अखबार और साबुन बेचने में कोई मौलिक अंतर रह पाएगा, या फिर समाचा..
हिंदी बहुत समृद्ध भाषा है। इसका शब्द भंडार विशाल है। इन दिनों हिंदी पत्रकारिता भाषायी संकट का सामना कर रही है। सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के दबावों में वह ऐसा भाषा-रूप अपना रही है, जो हिंदी समाज की भाषिक और सांस्कृतिक अस्मिता के लिए चुनौती है। हिंदी समाचार-पत्रों और अन्य जनसंचार माध्यमों में अंग्रेज..
स्वतंत्रता के पहले से हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में खेल गतिविधियों को स्थान मिलने लगा था, किंतु इस विषय को महत्त्व मिला आजादी के बाद के दशकों में, जब समाचार-पत्रों में खेलों का पन्ना अनिवार्य हो गया। एक तरफ खेलकूद कैरियर के रूप में अपनाए जाने लगे, वहीं खेल पत्रकारिता एक विशेष विधा के रूप में स्थापित हो ग..
स्त्री जागरण, नव जागरण, पुनर्जागरण जैसे शब्द एवं विचार मूलतः विदेशी शब्दों के हिंदी अनुवाद और विदेशी विचार हैं।
भारतीय संस्कृति में, सभ्यता में, अध्यात्म और दर्शन में तो स्त्री परंपरागत रूप से जाग्रत् और सशक्त रही है। हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में स्त्रियों की सहभागिता स्वतंत्रता से पूर्व तो थ..
मनोहर श्याम जोशी ने अनेक फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद-लेखन का काम किया। यहाँ उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसका एक कारण शायद यह भी है कि सिनेमा में पूरी तरह निर्देशक ही माध्यम होता है और उसमें लेखक की कहानी को निर्देशक अपने किसी खास कोण से सिनेमा में ढालता है और इस क्रम में लेखक का संदेश कई बार ..
हमारे पुरखे योद्धा पत्रकारों का जीवन इसी जिजीविषा का दूसरा नाम है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर निश्चय किया गया कि हिंदी पत्रकारिता के ऐसे शीर्षस्थ पुरोधा संपादकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को मोनोग्राफ के रूप में सामने लाया जाए जिन्होंने अपनी उत्कृष्ट संपादन-दृष्टि से हिंदी-पत्रकारिता के आद..
मीडिया के क्षेत्र में बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में एक विषय और एक व्यवसाय दोनों ही दृष्टियों से अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। अब यह प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रसारण, जनसंपर्क, विज्ञापन तथा परंपरागत मीडिया जैसे प्रचलित रूपों में ही सीमित नहीं रहा है। उद्योग में दिन-दूनी रात-चौगुनी प्रगति के..