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पुस्तकालय विज्ञान - Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav

पुस्तकालय विज्ञान - Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav
वैश्‍वीकरण और प्रौद्योगिकी की आँधी में जब राष्‍ट्रीय सीमाएँ टूट रही हों, मूल्य अप्रासंगिक बनते जा रहे हों और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है । अखबार और साबुन बेचने में कोई मौलिक अंतर रह पाएगा, या फिर समाचार और विज्ञापन के बीच सीमा- रेखा भी होगी कि नहीं? अविश्‍वास, अनास्था और मूल्य- निरपेक्षता के इस संकटकाल में हिंदी भाषा और हिंदी पत्रकारिता से क्या अपेक्षा है और क्या उन उम्मीदों को पूरा करने का सामर्थ्य हिंदी और हिंदी पत्रकारिता में है, जो देश की जनता ने की थीं? इन और ऐसे ही प्रश्‍नों का उत्तर खोजने के प्रयास में यह पुस्तक लिखी गई । लेकिन यह तलाश कहीं बाजार और विश्‍व-ग्राम की गलियों, कहीं प्रौद्योगिकी और अर्थ के रिश्तों, कहीं पत्रकारिता की दिशाहीनता और कहीं अंग्रेजी के फैलते साम्राज्य के बीच होते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ हमारे देश-काल और उसमें हमारी भूमिका के बारे में भी कुछ चौंकानेवाले प्रश्‍न खड़े हो गए हैं ।अनुक्रम   प्रस्ताव — Pgs. 9 राष्ट्रीय पत्र — Pgs. 145 क्यों और कैसे? — Pgs. 9 अपनी पहचान — Pgs. 148 1. प्रौद्योगिकी, व्यापार और वैश्वीकरण — Pgs. 25 मौलिक अंतर — Pgs. 151 पहला वैश्वीकरण — Pgs. 26 भाषानुशासन — Pgs. 153 अगर आज ईसा होते? — Pgs. 29 हिंदी दैनिकों का विस्तार — Pgs. 154 कॉर्पोरेट दर्शन का आधार — Pgs. 31 फैलाव मगर गहराई नहीं — Pgs. 156 लोगों को छोड़कर — Pgs. 33 पत्र का व्यक्तित्व — Pgs. 158 नई सभ्यता का जन्म — Pgs. 35 पत्रिकाओं का हृस — Pgs. 166 विश्वग्राम क्यों? — Pgs. 37 टी.वी. और पत्रिका — Pgs. 169 आवश्यकता नहीं है, तो पैदा करो — Pgs. 40 पाठकीय प्रतिबद्धता — Pgs. 171 पूँजीवाद का भविष्य — Pgs. 42 अधूरा अखबार — Pgs. 177 पिछड़ों की चिंता — Pgs. 44 कमी कहाँ है? — Pgs. 178 1818 एस-स्ट्रीट — Pgs. 45 मालिक और पत्रकार — Pgs. 181 मैक्सिको का प्रयोग — Pgs. 47 पत्रकारिता की दुकानें — Pgs. 184 लहरों पर तैरती दुनिया — Pgs. 48 क्या नहीं है? — Pgs. 186 वर्चस्ववाद का दर्शन — Pgs. 51 पाठकों का विकल्प — Pgs. 189 तीसरी सभ्यता के साधन — Pgs. 54 5. चौराहे से आगे — Pgs. 192 चलो, लेकिन जरा हटकर — Pgs. 55 कठिन डगर है — Pgs. 193 तीसरी लहर का नाटकीय प्रयोग — Pgs. 57 गाँवों की ओर — Pgs. 196 जिनका हल नहीं — Pgs. 59 ट्रस्टीशिप का सिद्धांत — Pgs. 198 सूचना-बाजार और माध्यम — Pgs. 61 इक्कीसवीं शती के प्रश्न — Pgs. 200 2. मेरा, उनका, किनका अखबार? — Pgs. 65 रोजी-रोटी का सवाल — Pgs. 201 केवल व्यापार ही नहीं — Pgs. 68 वैश्वीकरण का स्वभाव — Pgs. 204 यह कैसा उद्योग? — Pgs. 70 नैतिकता का चुनाव — Pgs. 207 मालिक के अधिकार — Pgs. 75 क्या हो? — Pgs. 210 सामाजिक और ऐतिहासिक दायित्व — Pgs. 80 कैसी न हो? — Pgs. 216 मालिक और कॉर्पोरेशन — Pgs. 84 परिशिष्ट अपनी-अपनी आजादी — Pgs. 88 1. खुल जा सिमसिम, बंद हो जा सिमसिम — Pgs. 225 सत्य या प्रिय — Pgs. 91 2. भारतीय प्रैस परिषद् — Pgs. 227 आचार-संहिता — Pgs. 95 जवाबी शिकायत — Pgs. 229 विकेंद्रीकरण का मिथक — Pgs. 97 जाँच समिति — Pgs. 230 3. भाषा, बाजार और सांस्कृतिक दीनता — Pgs. 100 पी.यू.सी.एल. का उत्तर — Pgs. 230 बाजार की बोली — Pgs. 101 बी.बी. न्यूज की शिकायत पर दुआ का उत्तर — Pgs. 230 भाषा का साम्राज्य — Pgs. 103 शिकायतों पर जाँच समिति का मत — Pgs. 232 उर्दू की राजनीति — Pgs. 105 दूसरी आपत्तियों पर जाँच समिति — Pgs. 233 स्वतंत्र भारत में हिंदी — Pgs. 108 मामले की सुनवाई — Pgs. 235 सरल हिंदी के जटिल संकेत — Pgs. 110 पी.यू.सी.एल. का बयान — Pgs. 235 संवाद के स्तर — Pgs. 112 एडीटर्स गिल्ड का बयान — Pgs. 235 अशोक वाजपेयी की दृष्टि — Pgs. 113 समिति की रपट — Pgs. 236 निर्मल वर्मा का चिंतन — Pgs. 118 मालिक और संपादक — Pgs. 239 यानी हिंदिश — Pgs. 120 समाचार — Pgs. 239 प्रभाष जोशी की चिंता — Pgs. 121 बी.बी. न्यूज — Pgs. 242 सांस्कृतिक ठहराव और राजनीति — Pgs. 125 परिषद् का फैसला — Pgs. 243 अभी हिंदी नहीं — Pgs. 127 3. कौन ढोए दादाजी की पोटली? — Pgs. 244 तमिल और द्रविड़ — Pgs. 128 पहचान का संकट — Pgs. 245 सोनार बांग्ला — Pgs. 131 डाउन मार्केट हिंदी — Pgs. 247 गुण-दोष सार — Pgs. 133 काउ ऐंड डॉग — Pgs. 248 बाजार में भाषा — Pgs. 135 अंधी गली का अंत — Pgs. 251 काश, हिंदी राजभाषा न होती — Pgs. 136 4. आर्य-अनार्य और हिंदी — Pgs. 253 अंग्रेजी का रोना क्यों? — Pgs. 137 विश्व की महान भाषा — Pgs. 258 4. कुछ अपनी भी खबर रख — Pgs. 143 सहायक पुस्तकें — Pgs. 261 प्रतिस्पर्धा कहाँ है? — Pgs. 144  

पुस्तकालय विज्ञान - Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav

Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav - by - Prabhat Prakashan

Hindi Patrakarita Ka Bazar Bhav - वैश्‍वीकरण और प्रौद्योगिकी की आँधी में जब राष्‍ट्रीय सीमाएँ टूट रही हों, मूल्य अप्रासंगिक बनते जा रहे हों और हमारे रिश्ते हम नहीं, कहीं दूर कोई और बना रहा हो, तो पत्रकारिता के किसी स्वतंत्र अस्तित्व के बारे में आशंकित होना स्वाभाविक है । अखबार और साबुन बेचने में कोई मौलिक अंतर रह पाएगा, या फिर समाचार और विज्ञापन के बीच सीमा- रेखा भी होगी कि नहीं?

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  • Stock: 10
  • Model: PP1381
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP1381
  • ISBN: 9788173153174
  • ISBN: 9788173153174
  • Total Pages: 262
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2010
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00