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कविता

कविता
कृष्ण कुमारजी विश्‍व भर में फैले हुए भारतवंशीय समुदाय के एक अभिन्न अंग हैं, ऐसा कहना अतिशयोक्‍ति नहीं होगी। वे हिंदी के प्रति निष्‍ठावान हैं और इसके प्रचार-प्रसार की अनेक गतिविधियाँ संचालित करते हैं। हिंदी जगत् ने उनके साहित्यकार मन और कवि मन की अनुभूतियों की ध्वनियाँ सुनीं। आश्‍चर्य भी हुआ कि विज्ञ..
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महादेवी वर्मा एवं कविवर सुमित्रानंदन पंत की समकालीन साहित्यकार श्रीमती तारा पांडे ने चौदह वर्ष की आयु से ही अपनी प्रेरणा के बल पर अनेक काव्य-संग्रह, गीत-संग्रह, महाकाव्य एवं लघुकथा-संग्रह विद्यादेवी के श्रीचरणों में अर्पित किए। इनकी कविताओं में हिमालयी पवन की पावनता एवं झलमलाते झरनों की धवलता दृष्‍ट..
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महाकाव्य विषयक लगभग सभी शास्त्र-सम्मत मानकों पर खरी उतरनेवाली, सोलह सर्गों में निबद्ध इस महनीय महाकाव्य-कृति ‘पं. रामप्रसाद बिस्मिल’, में महाकवि देव ने बिस्मिलजी के अग्निधर्मा व्यक्तित्व और उनके जुझारू, किंतु अत्यधिक संवेदनशील कृतित्व का सजीव चित्रण, अपनी पूरी क्षमता और प्राणवत्ता के साथ किया है। —..
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मन से परछाईं दूर नहीं हो पाती, लेकिन जब जीवन की देहलीज पर साँझ दस्तक देती है, तब जीवन का अर्थ समझ आने लगता है। अपनी जिंदगी की शाम में कैफ भोपाली जीवन और उससे जुड़ी परछाईं इन दोनों का अर्थ इन पंक्तियों में समझा गए हैं— जिंदगी शायद इसी का नाम है, दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाइयाँ। क्या यही होती है शामे..
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श्री सुनील बाजपेयी ‘सरल’ की अभिनव काव्य-कृति ‘पथिक-धर्म : एक प्रेरक गीत’ अबतक का सबसे लंबा छंदोबद्ध गीत है। इसमें संवेदना और वैचारिकता की जुगलबंदी है। इस धरती पर मानव-जीवन संघर्षों की एक कहानी है और इन संघर्षों के बीच कवि का संदेश है—रुको मत, चलते रहो। निरंतर चलते रहने का आह्वान एक ओर ऋषियों के आप्त..
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‘याद आता है मुझको  अपना तरौनी ग्राम,   याद आती लीचियाँ  और आम’ बाबा नागार्जुन की इन पंक्तियों में अत्यंत सूक्ष्म संकेतों में उनके ‘तरौनी ग्राम’ की स्मृति अवश्य बँध गई है, लेकिन उत्तराखंड के गौरवकवि डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की ‘कोरोना काल’ में रची गई ‘प्रकृति की गोद में माँ की पाठशाला’ कविता संग..
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प्रपंचपंचशती की परिकल्पना एवं रचना एक मुक्तक काव्य के रूप में की गई है। पाँच सौ पद्यों के विस्तार में रचित इस काव्य में प्रपंच रूप जगत् तथा उसके अंशभूत मानव समाज, विशेष रूप से भारतीय समाज की विविध सामयिक प्रवृत्तियों एवं सामान्य जनों के मनोभावों व विचारों का सार रूप में दिग्दर्शन व विवेचन किया गया ह..
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साधारण भाषा में कहें तो पाँच वि, यानी विरह, विछोह, विराग, विद्रोह या वियोगावस्था में मन की भावनाएँ जब लयबद्ध होकर प्रस्फुटित होती हैं तो कविता अवतरित होती है। प्रतिदिन के ऊहापोह वाली दिनचर्या में मुझे इतनी फुरसत तो नहीं मिलती कि मैं कुछ लिखूँ या पढ़ूँ, पर जब भी ज्यादा एकाकीपन महसूस होता है या मन खुश..
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‘रेशा-रेशा रेशम सा काव्य संग्रह अपने नाम को सार्थक करता है। इस संकलन की हर रचना उन रेशमी धागों के समान हैं जिनसे मिलकर बनने वाली इस कोमल कृति का मन से किया गया स्पर्श और अवलोकन दोनों ही एक रेशमी आनंद और शालीनता की अनुभूति देते हैं। जिस प्रकार रेशम की उत्पत्ति में छिपा कष्ट, दुःख और परिश्रम अपरोक्ष र..
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इस संसार में कोई जीवन ऐसा नहीं, जहाँ सिर्फ पाना ही पाना हो, खोना हो ही नहीं। कुछ खो जाए तो तकलीफ तो बेशक होती है, पर हम हारें नहीं, यही संदेश ये कविताएँ प्रवाहित कर रही हैं। साथ ही बता रही हैं कि प्रेम का बल ही, प्रेम यानी पवित्रता का बल ही हमें पराजय-बोध से दूर रखकर जीवन से जोड़े रख सकता है। —सूर्..
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कविता किसी कवि या रचनाकार को केंद्र में रखकर नहीं लिखी गई होती, वह अपने समय और साहित्य दोनों की कथावस्तु को अपने में समाहित करते हुए प्रतिरोध की संस्कृति को नया आयाम प्रदान करती है। 21वीं सदी में कविता का वह दौर, जहाँ यथार्थ के धरातल से एक कविता उठती है, जिसे घेरते हुए सारे तथ्य, विषय, प्रसंग, दृश्य..
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अंदर जश्न हो रहा था बहुत शोर मच रहा था नाच-गजाना भी हो रहा था लोग खा-पीकर मस्त थे। तभी दरवाजे पर एक आवाज आई- दस पैसे या रोटी दे दो दो दिनों का भूखा हूँ। तभी अंदर से चीख निकली- चल, जा आगे! आजादी के पचास साल का जश्न है इसी में सब मग्न हैं।..
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