हमारी संस्कृति तो अपनी संपूर्ण प्राण-शक्ति के साथ हमें यही प्रेरित करती आ रही है कि पुरुष को स्त्री के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। इसी प्रकार स्त्री भी पुरुष के अटूट संग की कामना करती है। ‘दाम्पत्य-योग’ अनेक जन्मों की साधना के संस्कारों का मधुर फल है, जो विधि-निषेध सापेक्ष न होकर स्वयंभू जैसा है। ..
आधुनिक दोहा शिल्प और आकार में पारंपरिक होकर भी अपने कथ्य और संवेदन में अत्यंत अर्वाचीन और तरोताजा है, जो समकालीन हिंदी कविता के यथार्थ रूपों और उसकी संवेदना को पकड़ने में सक्षम है। डॉ. दिनेश चन्द्र अवस्थी दोहा छंद के एक समर्थ एवं सशक्त हस्ताक्षर हैं। ईश्वर, धर्म, दर्शन, परिवार, पत्नी, बच्चे, माता-पि..
जिस शराब के प्रबल पक्षपाती विश्व के विभिन्न साहित्यों में फिट्जेरॉल्ड,उमर खैयाम और डॉ. हरिवंश राय बच्चन जैसे लब्धप्रतिष्ठों ने उसे साहित्यिक मान्यता प्रदान की,वहाँ प्रथमतः डॉ. सुरेश प्रसाद ने मदिरा के प्रतिपक्ष में विज्ञानपूर्ण विचार देकर लोगों को सबल ढंग से इस दुर्गुण से दूर रहने की सलाह दी है।
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गोपाल दास ‘नीरज’
(4 जनवरी, 1925-19 जुलाई, 2018)
गोपाल दास ‘नीरज’ शिक्षाविद्, फिल्मी गीतकार एवं काव्य मंचों के सक्रिय कवि थे। उनका जन्म इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था। मात्र 6 वर्ष की आयु में उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। पिता के निधन ..
यह नियति ही हैजिसे भोगना हैसोचती हूँ हँसकर झेलूँपर जब भी ये सोचती हूँ रो पड़ती हूँभरे गले से तुम्हारा नाम लेना चाहती हूँतुम्हें कृतज्ञता के दो शब्द कहना चाहती हूँ। कितना तो हमें कहना-सुनना हैकह-सुन भी लेंगेइर्द-गिर्द के लोगों की दृष्टि में हम मौन हैंसिर्फ बरसों बाद मिले अपरिचितों..
वैशाली, इनकी अलमारी में अंग्रेज़ी साहित्य और मास कम्यूनिकेशन की दो—दो स्नातकोत्तर उपाध्यि इठला रही थीं, तभी ढेर सारे आलेखनों और कविताओं के पन्नों ने इन्हें झुके रहना सिखाया…पिछले एक दशक से कॉपी राइटिंग क्षेत्र में सक्रिय हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लिए कई सारे चुनावी और अन्य प्रचार अभियान..
इस संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए पता चलता है कि कवि राकेश का रचना-संसार अत्यंत समृद्ध एवं विस्तृत है। सामाजिक यथार्थों और विसंगतियों को समेटने और भेदने में उनकी काव्यदृष्टि सक्षम है। विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के विभिन्न उपादानों और नदियों के विनाश से कवि का मन तकलीफ से भर उठता है। प्रकृति की ल..
देश के चुनिंदा आदिवासी कवियों का यह संग्रह सामुदायिक प्रतिनिधियों के आदिवासी अभिव्यक्ति के सिलसिले की शुरुआत भर है। हिंदी कविता में पहली आदिवासी दस्तक सुशीला सामद हैं, जिनका पहला हिंदी काव्य-संकलन ‘प्रलान’ 1934 में प्रकाशित हुआ। आदिवासी लोग ‘होड़’ (इनसान) हैं और नैसर्गिक रूप से गेय हैं। अभी तक उनका ..
हँसी की इन लहरों के बीच
कमल किस दुःख का खिलता है,
मानते हो जिसको तुम शील
विवशताओं में पलता है।
हृदय की उठती हुई वह आग,
फूटती अरुणाभा जैसी,
दिवस के उज्ज्वल माथे पर
तिलक की पावन आभा सी
हृदय में ही घुटकर रह गई,
बन गई मेरा चिर अभिशाप,
घेर ज्यों पुण्यों को छा जाए
किसी प्राचीन जनम का शाप।
—इसी..
कुसुम वीर की कविताएँ बहुत कुछ कहती हैं । जीवन से जुड़े अनेक संघर्ष और अनुभव उनकी कविताओं में झलकते हैं । सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चुनौती तो अभिव्यक्ति की है, जिसे उन्होंने अपनी कविता ' मैं आवाज़ हूँ ' के माध्यम से सुदृढ़ आत्मविश्वास के साथ व्यक्त किया है । कवयित्री समाज की उन शक्तियों के सामने झुकने..
वह थोड़ी देर रुका और फिर धीरे-धीरे बोला, ‘‘और कहाँ रखते? मेरी औरत तो बह गई थी न!’’
अचानक उद्विग्नता, आशंका और उत्सुकता साथ-साथ हावी हो उठीं—‘‘तेरी औरत? कहाँ...कैसे? तो क्या वह चिट्ठी...।’’
‘‘हाँ, भैंस बह गई थी न बाढ़ में। माँ-बाप तो बूढ़े-ठेले ठहरे, सो उसको ढूँढ़ती निकल गई थी। बाढ़ का टाइम था ही, ..