सूर्यकांत बाली का यह उपन्यास वैदिक प्रेमकथा पर आधारित है। वैदिक काल के किसी कथानक को उपन्यास के माध्यम से पाठकों तक सशक्त और अत्यंत आकर्षक शैली में पहुँचाने वाले श्री बाली हिंदी ही नहीं, संभवतः समस्त भारतीय भाषाओं के प्रथम उपन्यासकार के रूप में हमारे सामने हैं। यह उपन्यास प्रसिद्ध वैदिक ऋषि श्यावाश्..
जब तनहाइयाँ बोलती हैं, आहटें वीरान गलियों में स़फर करती हैं, यादें अजनबी दस्तकों से लिपटकर रोने लगती हैं, बेमंज़िल की तलाश में मुसाफिर एक उम्र गुज़ार देता है, मुहब्बत किसी शर्त के ब़गैर रिश्तों को नई बुलन्दियाँ अता करती हैं, हाशिए पर बिखरे हुए आवारा ल़फ्ज़ों को एक पहचान मिल जाती है, रचनात्मकता की तेज़ ल..
ये ज़रूरी नहीं कि सबका सच एक हो जाए,
सबके अहसासात एक हो जाएँ,
सबके नज़रिए,
सबके फलस़फे एक हो जाएँन मैं अपने जज़्बों को खुद थाम पाया
कहाँ होंठ सीना, न मैं जान पाया
सर्दजोशी का आलम, सुलगती़िफज़ाएँ
न वो चुप हुआ है और न मैं बाज़ आया।रु़खसती रु़ख बदलने का भी नाम है
बेरु़खी रोकना आज़माइश मेरी
आँस..
प्रस्तुत कविता-संग्रह ‘युग गीत उसी के गाएगा’ श्री जय शंकर मिश्र की काव्य-यात्रा का सप्तम सोपान है। इसमें कुल 101 कविताएँ एवं गीत सम्मिलित किए गए हैं। श्री मिश्र का संपूर्ण रचना संसार उनकी निजी अनुभूतियों का ही प्राकट्य है। सूक्ष्म संवेदनाओं की सलिल सरिता उनके अंतस में निरंतर प्रवहमान रही है। इसीलिए ..