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महाभारत के आदिपर्व में उपलब्ध एक छोटे-से आख्यान पर आधारित महाकवि कालिदास का नाटक ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ संस्कृत रंगमंच की शास्त्रीय नाट्य-परम्परा का अप्रतिम उदाहरण है, जिसका हिन्दी रूपान्तर सुप्रसिद्ध कहानीकार और नाटककार मोहन राकेश ने 'शाकुंतल' के नाम से वर्षों पहले किया था।संस्कृत की सम्पूर्ण नाट्य-परम्परा में ‘शाकुंतल’ अपने कथ्य एवं संरचना की दृष्टि से एक बेजोड़ नाटक इस अर्थ में भी है कि इसे पढ़कर प्राय: यह भ्रम हो जाता है कि भरत ने अपने 'नाट्यशास्त्र' के लिए इस नाटक को आधार बनाया अथवा कालिदास ने ‘नाट्यशास्त्र’ से प्रेरणा ग्रहण करके इस नाटक की रचना की। वास्तव में यहाँ शास्त्र और रचनात्मक लेखन का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।प्रेम जैसे शाश्वत कथ्य पर आश्रित होकर भी 'शाकुंतल' में प्रेम की जिस परिणति एवं पराकाष्ठा का चित्रण किया गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।मानवीय सम्बन्धों के बेहद मार्मिक, सूक्ष्म और गहरे प्रसंगों के लिए ‘शाकुंतल’ सदैव अपना सर्वोपरि स्थान बनाए रखेगा। डेढ़-दो हज़ार वर्षों के लम्बे अन्तराल की अग्निपरीक्षा से गुज़रकर भी ‘शाकुंतल’ उतना ही नया और ताज़ा लगता है।हमें विश्वास है कि अपने रूपान्तर में पाठकों, अध्येताओं और रंगकर्मियों के बीच ‘शाकुंतल’ का पुन: वैसा ही स्वागत होगा, जैसा कि पहले संस्करण के समय हुआ था।
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Shakuntal - by - Radhakrishna Prakashan
Shakuntal -
- Stock: 10
- Model: RKP2652
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP2652
- ISBN: 0
- Total Pages: 204p
- Edition: 2021, Ed. 3rd
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Back, Paper Back
- Year: 1966
₹ 299.00
Ex Tax: ₹ 299.00