Play - Pahala Raja
जगदीशचन्द्र माथुर का नाम हिन्दी नाट्य साहित्य में आधुनिक और प्रयोगशील नाटककार के रूप में समादृत है, और ‘पहला राजा’ उनकी एक अविस्मरणीय नाट्यकृति के रूप में बहुचर्चित।‘पहला राजा’ की कथा एक पौराणिक आख्यान पर आधारित है, जिसमें प्रकृति और मनुष्य के बीच सनातन श्रम-सम्बन्धों की महत्ता को रेखांकित किया गया है।यह उन दिनों की कथा है, जब आर्यों को भारत में आए बहुत दिन नहीं हुए थे और हड़प्पा-सभ्यता के आदि निवासियों से उनका संघर्ष चल रहा था। कहते हैं उन दिनों राजा नहीं थे, जब वेन जैसे उद्दंड व्यक्ति के शव-मन्थन से पृथु जैसा तेजस्वी पुरुष प्रकट हुआ और कालान्तर में मुनियों द्वारा उसे पहला राजा घोषित किया गया। पृथु यानी पहला राजा। राजा, यानी जो लोकों और प्रजा का अनुरंजन करे। पृथु ने अपनी पात्रता सिद्ध की अर्थात् उसके हाथ धरती को समतल बनाकर उसे दोहनेवाले सिद्ध हुए। परिणामत: धरती को भी एक नया नाम मिला—पृथ्वी।निश्चय ही यह एक अत्यन्त चित्ताकर्षण और अर्थपूर्ण नाट्यकृति है।
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Pahala Raja - by - Rajkamal Prakashan
Pahala Raja -
- Stock: 2-3 Days
- Model: RKP1066
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP1066
- ISBN: 0
- Total Pages: 116p
- Edition: 1980, Ed. 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Back
- Year: 1980
₹ 0.00
Ex Tax: ₹ 0.00