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Culture - Lok : Parampara, Pahachan Aur Pravah

Culture - Lok : Parampara, Pahachan Aur Pravah
भारतीयता को आकार देने में लोक-संस्कृति की भूमिका केन्द्रीय कारक की तरह रही है। भारतीयता के जो समन्वयमूलक शाश्वत जीवन-मूल्य हैं, वे लोक-संस्कृति की ही उपज हैं। प्रकृति और मनुष्य के आन्तरिक रिश्तों पर आधारित लोक-संस्कृति पर्यावरण के प्रति अधिक सक्रिय और अधिक सचेष्ट विधायिनी रचना को सम्भव करती है। वह अपने वैविध्य में पर्यावरण की सुरक्षा और उसकी गतिशीलता की भी प्रेरक है। लोक-संस्कृति के एक सबल पक्ष लोक-साहित्य की गहरी समझ रखनेवाले डॉ. श्यामसुन्दर दुबे की यह कृति लोक-साहित्य में निहित लोक-संस्कृति की पहचान और परम्परा को विस्तार से विवेचित करती है। लोक-साहित्य के प्रमुख अंग लोकगीत, लोक-नाट्य, लोक-कथाओं को लेखक ने अपने विश्लेषण का आधार-विषय बनाया है। लोक की प्रसरणशीलता और लोक की भूभौतिक व्यापकता में अन्तर्निहित सामाजिक सूत्र-चेतना को इन कला-माध्यमों में तलाशते हुए लेखक ने जातीय स्मृति की पुनर्नवता पर गहराई से विचार किया है।आधुनिकता के बढ़ते दबावों से उत्पन्न ख़तरों की ओर भी इस कृति में ध्यानाकर्षण है। अपनी विकसित प्रौद्योगिकी और अपने तमाम आधुनिक विकास को लोक-जीवन के विभिन्न सन्दर्भों से सावधानीपूर्वक समरस करनेवाली कला-अवधारणा की खोज और उसके प्रयोग पर विचार करने के लिए यह कृति एक नया परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करती है। दृश्य और श्रव्य कला-माध्यमों द्वारा इधर सौन्दर्यबोध की जो नई प्रणालियाँ आविष्कृत हो रही हैं, इनमें एक अनुकरण-प्रधान उपरंगी संस्कृति की ओर हमारे समूचे लोक को बलात् खींचा जा रहा है। लेखक ने प्रस्तुत कृति में लोक की इस व्यावसायिक प्रयोजनीयता और उसके इस विकृत प्रयोग को कला-क्ष्रेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप माना है। यह हस्तक्षेप हमारी सांस्कृतिक पहचान पर दूरगामी घातक प्रभाव डाल सकता है।लोक के समाजशास्त्रीय मन्तव्यों और लोक की मनः-सौन्दर्यात्मक छवियों को अपने कलेवर में समेटनेवाली यह कृति लोक-साहित्य की कुछ अंशों में जड़ और स्थापित होती अध्ययन-प्रणाली को तोड़ेगी और लोक के विषय में कुछ नई चिन्ताएँ जगाएगी।

Culture - Lok : Parampara, Pahachan Aur Pravah

Lok : Parampara, Pahachan Aur Pravah - by - Radhakrishna Prakashan

Lok : Parampara, Pahachan Aur Pravah - भारतीयता को आकार देने में लोक-संस्कृति की भूमिका केन्द्रीय कारक की तरह रही है। भारतीयता के जो समन्वयमूलक शाश्वत जीवन-मूल्य हैं, वे लोक-संस्कृति की ही उपज हैं। प्रकृति और मनुष्य के आन्तरिक रिश्तों पर आधारित लोक-संस्कृति पर्यावरण के प्रति अधिक सक्रिय और अधिक सचेष्ट विधायिनी रचना को सम्भव करती है। वह अपने वैविध्य में पर्यावरण की सुरक्षा और उसकी गतिशीलता की भी प्रेरक है। लोक-संस्कृति के एक सबल पक्ष लोक-साहित्य की गहरी समझ रखनेवाले डॉ.

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  • Stock: 10
  • Model: RKP2482
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP2482
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 120p
  • Edition: 2019, Ed. 4th
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 0
₹ 395.00
Ex Tax: ₹ 395.00