लोक अपनी नैसर्गिक स्थितियों में स्वयं प्रकृति का पर्याय है। लोक दृष्टि का विकास प्रकृति के सहजात संस्कारों का परिणाम ही है। लोक और प्रकृति के अंर्तसंबंधों के संदर्भ में विकसित हमारे जीवन के अनेक सांस्कृतिक आयामों में प्रकृति और मनुष्य के बीच जो अभेद दृष्टि है, वह मानती है कि जैसे मनुष्य रक्षणीय है..
देशप्रेम, प्रकृति
और पहाड़ख्यात लेखक-कवि श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कविताओं को पढ़कर रखा नहीं जा सकता है। उसके अंदर की सामाजिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक चेतना बार-बार आवाज देकर अपनी तरफ बुलाती है। देश प्रेम कवि का मूल भाव है। अपने देश की भाषा, संस्कृति और सभ्यता कवि को विशेष प्रिय है। कवि पहाड़ों ..
ज्वालामुखी भयंकरतम प्राकृतिक आपदा है। इसके कारण बड़े पैमाने पर जन और संपत्ति की हानि होती ही रहती है; परंतु न तो उसे रोका जा सकता है और न ही नियंत्रित किया जा सकता है। उससे बचने का कारगर उपाय है उद्गार के पूर्व-संकेत मिलते ही ज्वालामुखी से जितनी दूर और जितनी जल्दी संभव हो, भाग जाएँ। इसके लिए ज्वाला..
पर्यावरण और प्रकृति के बीच अन्योन्याश्रित संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति में भूमि, जल, वायु, अग्नि, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, सूर्य, चंद्रमा, आकाश आदि आते हैं।
डॉ. शांति जैन का ग्रंथ ‘लोकगीतों में प्रकृति’ पाठकों के समक्ष है। इसके अंतर्गत प्रकृति और पर्यावरण का संबंध बताते हुए कहा गया है ..
संसार के साहित्य में एक समर्थ विधा के रूप में अपनी पद-प्रतिष्ठा के लिए कहानी को बीसवीं शताब्दी तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। हिन्दी में तो उसका जन्म ही इस सदी में आकर हुआ। यही कारण है कि मनुष्य की नियति, उसके दुःख और उसकी जिजीविषा को अभिव्यक्ति देनेवाली अनेक कहानियों के सामने आने के बाद भी कहानी को लम्बे ..
गद्य कवीनां निकष वदन्ति’ उक्ति सुविदित है, किन्तु अगर कोई गद्यकार यह कहता नज़र आए कि कविता वह खिड़की है जिससे उसके घर में भीतर तक झाँका जा सकता है...तो उत्सुकता स्वाभाविक है, विशेषकर तब जबकि वह अब तक अपनी कविताओं को व्यक्तिगत कहते हुए उनके प्रकाशन से भी परहेज़ करता चला आया हो। जी हाँ, उपन्यासकार, कथा..
एक बार गांधीजी के पास नेहरू, पटेल, आजाद (अबुल कलाम आजाद), जिन्ना बैठे हुए थे। उन्हें ध्यान आया कि अब बकरी की टूटी टाँग में पट्टी बाँधने का समय हो गया है और वे जिन्ना से बोले, ‘‘आप थोड़ा बैठें, मैं अभी दो मिनट में आता हूँ।’’ गांधीजी वहाँ से उठे और बकरी की टाँग में पट्टी बाँधने के उपरांत उसी स्थान पर ..
‘याद आता है मुझको
अपना तरौनी ग्राम,
याद आती लीचियाँ
और आम’
बाबा नागार्जुन की इन पंक्तियों में अत्यंत सूक्ष्म संकेतों में उनके ‘तरौनी ग्राम’ की स्मृति अवश्य बँध गई है, लेकिन उत्तराखंड के गौरवकवि डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की ‘कोरोना काल’ में रची गई ‘प्रकृति की गोद में माँ की पाठशाला’ कविता संग..
भूकम्प, चक्रवात, बाढ़ और सूखा जैसी विनाशकारी आपदाओं से मनुष्य-समाज आदिकाल से आक्रान्त रहा है। संसार के विभिन्न भागों में समय-समय पर इन आपदाओं के चलते जान-माल की अपूरणीय क्षति होती रही है। इसलिए सिर्फ़ भारत के लिए ही नहीं, विश्व-भर के लिए आज ये गम्भीर चुनौती बनी हुई हैं। पूरी दुनिया में इन आपदाओं के ..
प्रस्तुत पुस्तक प्राकृतिक चिकित्सा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए उसके सिद्धान्तों और उसकी विभिन्न विधियों पर विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराती है। अलग-अलग अध्याय में—रोग क्या है, रोग के प्रकार और उसका वर्गीकरण, स्वस्थ, जीवन के लिए उपयोगी सुझाव, सन्तुलित आहार और स्वस्थ जीवन, भोजन करने की सही विधि, वृद्..
आज की तेज रफ्तार जिंदगी में स्वस्थ जीवन जीना एक चुनौती बन गया है। इसमें अनुचित खान-पान एवं रहन-सहन की भूमिका प्रमुख है।
यद्यपि हम चाहें तो अपने दैनिक काय-कलापों मे स्वयं को स्वस्थ रख सकते हैं; किंतु स्वास्थ्य मंवंधी जानकारी के अभाव में प्राय: ऐसा संभव नहीं हो पाता। और तो और. अज्ञानतावश मनुष्य अपने ..
आधुनिक युग में चिकित्सा की अनेक पद्धतियाँ प्रचलन में हैं। प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य है—प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों का उचित उपयोग करके रोग का मूल कारण समाप्त करना। यह न केवल एक चिकित्सा-पद्धति है बल्कि मानव शरीर में विद्यमान आंतरिक महत्..