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लेख : निबंध : पत्र - Paraye Hue Apane

लेख : निबंध : पत्र - Paraye Hue Apane
मैंने अब तक सौ से भी ज्यादा नाटक लिखे हैं। नाटक के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, निबंध भी लिखे परंतु छपवाने से दूर रहा। पुस्तक छपवाना कितना आसान काम है। पुस्तक छपवाने के पश्चात् पुस्तक विमोचन होता है। बडे़-बड़े लोगों से भेंट-मुलाकातें होती हैं। बधाइयाँ, मुफ्त में झूठी प्रशंसा, लेकिन उसके बाद लेखक हाथ सिर पर रखकर रोता है, पुस्तकें खरीददार को देखकर रोती हैं। कहती हैं, ‘अरे भाई! मुझे खरीदकर घर ले जाओ, पढ़ो, कुछ लाभ होगा।’ ईश्वर जाने आप खुश हैं या नाखुश! यदि आपको पढ़कर थोड़ी सी खुशी प्राप्त होती है तो मैं अपनी खुशी मानूँगा और यदि खुशी न मिली, आनंद प्राप्त न हुआ, फिर भी मुझे कुछ तसल्ली तो होगी कि कम-से-कम आप लोगों ने कुछ तो पढ़ा, मेरा काम सार्थक हुआ। मेरा काम, परिश्रम निरर्थक नहीं गया। प्रशंसा से मैं उतना खुश नहीं होता हूँ, जितना कि मैं अपनी निंदा से खुश होता हूँ। निंदा ही तो सफलता का प्रथम चरण है; जिसे हार स्वीकार हो, उसकी जीत निश्चित है।  —भूमिका से 

लेख : निबंध : पत्र - Paraye Hue Apane

Paraye Hue Apane - by - Prabhat Prakashan

Paraye Hue Apane - मैंने अब तक सौ से भी ज्यादा नाटक लिखे हैं। नाटक के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, निबंध भी लिखे परंतु छपवाने से दूर रहा। पुस्तक छपवाना कितना आसान काम है। पुस्तक छपवाने के पश्चात् पुस्तक विमोचन होता है। बडे़-बड़े लोगों से भेंट-मुलाकातें होती हैं। बधाइयाँ, मुफ्त में झूठी प्रशंसा, लेकिन उसके बाद लेखक हाथ सिर पर रखकर रोता है, पुस्तकें खरीददार को देखकर रोती हैं। कहती हैं, ‘अरे भाई!

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  • Stock: 10
  • Model: PP2372
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2372
  • ISBN: 9789384343408
  • ISBN: 9789384343408
  • Total Pages: 176
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2016
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00