उपन्यास - Bharat : Sanskritik Chetna Ka Adhishthan
ऋग्वेद में उल्लेख है ‘भद्रं इच्छन्ति ऋषयः’, ऋषि लोककल्याण की कामना से जीवन जीते हैं। लोकहित के लिए सोचना और कर्म करना यही ऋषि की पहचान है। इसीलिए भारत को ऋषि-परंपरा का देश कहा जाता है। यह उन्हीं ऋषियों का उद्घोष है—सर्वे भवन्तु सुखिनः/सर्वे सन्तु निरामया/सर्वे भद्राणि पश्यन्तु/मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत्। यानी सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब एक-दूसरे की भलाई में रत रहें, किसी के कारण किसी को दुख न पहुँचे।
भारत की संस्कृति इसी भावबोध का विस्तार है। हमारी ऋषि-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आद्य शंकराचार्य से लेकर संत तुलसीदास तक ने इसी सांस्कृतिक चेतना को परिपुष्ट किया है। इस तरह भारत विश्व को सुख-शांति-सद्भाव का मार्ग दिखानेवाली सांस्कृतिक चेतना का अधिष्ठान बन गया।
भारत को जानना है तो इस संस्कृति
के मर्म को जानना-समझना पड़ेगा। इसे ‘सरवाइवल ऑफ द फिटैस्ट’ जैसी पाश्चात्य या ‘वर्ग संघर्ष’ जैसी कम्युनिस्ट अवधारणाओं से नहीं जाना-समझा जा सकता, जो देश की स्वाधीनता के बाद भी सत्ता का संरक्षण पाकर औपनिवेशिक मानसिकता को पाल-पोसकर भारतीयता के विरुद्ध खड़ा करने में लगी रही हों। यह पूरी जमात ‘लोग आते गए, कारवाँ बनता गया’ जैसे जुमलों की आड़ में भारत की सांस्कृतिक पहचान को ही मिटाने का कुचक्र रचती रही है। जबकि विश्वविख्यात विद्वान् अर्नाल्ड टायन्बी अपनी पुस्तक ‘द स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ में भारत के इन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों को विनाश के कगार पर खड़ी मानवता को बचाने का विकल्प मानते हैं।अनुक्रमभद्रं पश्यन्ति ऋषयः — 71. राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार आचार्य शंकर — 152. ‘राष्ट्रधर्म’ के अमर गायक संत तुलसी — 203. आज फिर श्रीराम का संकल्प चाहिए — 254. आस्था, परंपरा और बदलाव — 305. वे रावण जो कल नहीं मरे — 336. होगी जय! हे पुरुषोत्तम नवीन! — 377. जलाओ दीये, पर रहे ध्यान इतना — 408. निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल — 449. शिक्षा क्यों हो संस्कार से अलग — 4910. भारत की सांस्कृतिक चेतना गणतंत्र की सार्थक परिणति — 5311. राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह — 5812. आशा और विश्वास का सत्तारोहण — 6113. एक बार फिर मुसकराए बुद्ध — 6314. भारतीय राजनीति में नए युग की शुरुआत — 6515. नमो का संदेश शतक — 6716. मोदी सरकार ने तोड़ा ‘नेहरू मॉडल’ का मिथ — 7217. आलोचनाओं के बीच मोदी — 7618. मोदी, हिंदुत्व और विकास — 8019. सत्ता स्वार्थों के लिए संविधान की अनदेखी उचित नहीं — 8420. हिंदुत्व की हिमायत का अर्थ मुसलिम विरोध नहीं — 8821. अच्छी किताबों से जगता है अच्छा इनसान बनने का जज्बा — 9122. ताकि सेवा और शुचिता की प्रतीक बने राजनीति — 9523. संघ को सत्ता की राजनीति के चश्मे से न देखें — 9824. संस्कृति की साझी विरासत — 10225. चीन की तरक्की और नागरिक चेतना — 10626. आजादी की लड़ाई में संघ की भूमिका — 11027. आम आदमी से बड़ा सबक — 11528. वक्त बनेगा केजरीवाल की कसौटी — 11929. तो कब बनेगा तेलंगाना? — 12430. इस चीत्कार को सुननेवाला है कोई पाकिस्तान में — 13031. सचमुच ‘बड़ा दिन’ बन गया 25 दिसंबर — 13232. धर्मांतरण पर दोहरी मानसिकता घातक — 13633. गलत नंबर का चश्मा उतारें आजम खाँ — 14034. कितना बदला आर.एस.एस. — 14435. भावुक विदाई और चुभते सवाल — 14936. कोयल के पीछे कौआ संस्कृति — 15137. मुसलिम वोटों के लिए सेकुलरी होड़ — 15538. पुल नहीं, खाई है धारा 370 — 15939. सत्ता का दंभ और दुर्गा का संघर्ष — 16340. मुलायम मुद्दे पर सियासी परिक्रमा — 16741. राजनीति के लिए देशहित पर दाँव — 17142. राजनीति में कौन करेगा उम्र का खयाल — 17543. धर्म के संस्कार से लक्ष्मी की शोभा — 179
उपन्यास - Bharat : Sanskritik Chetna Ka Adhishthan
Bharat : Sanskritik Chetna Ka Adhishthan - by - Prabhat Prakashan
Bharat : Sanskritik Chetna Ka Adhishthan - ऋग्वेद में उल्लेख है ‘भद्रं इच्छन्ति ऋषयः’, ऋषि लोककल्याण की कामना से जीवन जीते हैं। लोकहित के लिए सोचना और कर्म करना यही ऋषि की पहचान है। इसीलिए भारत को ऋषि-परंपरा का देश कहा जाता है। यह उन्हीं ऋषियों का उद्घोष है—सर्वे भवन्तु सुखिनः/सर्वे सन्तु निरामया/सर्वे भद्राणि पश्यन्तु/मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत्। यानी सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब एक-दूसरे की भलाई में रत रहें, किसी के कारण किसी को दुख न पहुँचे। भारत की संस्कृति इसी भावबोध का विस्तार है। हमारी ऋषि-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आद्य शंकराचार्य से लेकर संत तुलसीदास तक ने इसी सांस्कृतिक चेतना को परिपुष्ट किया है। इस तरह भारत विश्व को सुख-शांति-सद्भाव का मार्ग दिखानेवाली सांस्कृतिक चेतना का अधिष्ठान बन गया। भारत को जानना है तो इस संस्कृति के मर्म को जानना-समझना पड़ेगा। इसे ‘सरवाइवल ऑफ द फिटैस्ट’ जैसी पाश्चात्य या ‘वर्ग संघर्ष’ जैसी कम्युनिस्ट अवधारणाओं से नहीं जाना-समझा जा सकता, जो देश की स्वाधीनता के बाद भी सत्ता का संरक्षण पाकर औपनिवेशिक मानसिकता को पाल-पोसकर भारतीयता के विरुद्ध खड़ा करने में लगी रही हों। यह पूरी जमात ‘लोग आते गए, कारवाँ बनता गया’ जैसे जुमलों की आड़ में भारत की सांस्कृतिक पहचान को ही मिटाने का कुचक्र रचती रही है। जबकि विश्वविख्यात विद्वान् अर्नाल्ड टायन्बी अपनी पुस्तक ‘द स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ में भारत के इन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों को विनाश के कगार पर खड़ी मानवता को बचाने का विकल्प मानते हैं।अनुक्रमभद्रं पश्यन्ति ऋषयः — 71.
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- Model: PP585
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP585
- ISBN: 9789352665471
- ISBN: 9789352665471
- Total Pages: 184
- Edition: Edition First
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2018
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00