आदिग्रन्थ (गुरु ग्रन्थ साहिब) भारत की पाँच शतियों के धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक जीवन का बहुत प्रामाणिक दस्तावेज़ है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं है कि यह ग्रन्थ उस युग के भारत के विभिन्न भागों के विचार-चिन्तन को स्वर देने वाला एकमात्र ग्रन्थ है। जो तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थितियों ..
इधर आतंकवाद और पुनरुत्थानवाद के उदय के कारण वैश्विक राजनीति में कुछ अहम परिवर्तन आए हैं। ये अभूतपूर्व चुनौतियाँ विश्व के नेताओं से एक नई, साहसी और कल्पनाशील राजनीति की माँग कर रही हैं। शान्ति की सदियों पुरानी तकनीकों से ऊपर उठने और विमर्श की हमारी भाषा की पुनर्रचना करने की ज़रूरत को रेखांकित करते हु..
महान आलोचकों, समीक्षकों, मर्मज्ञों द्वारा भक्ति-साहित्य पर बहुत लिखा गया, लेकिन वस्तुपरक दृष्टि से साहित्य के सागर को मथकर भक्ति-तत्त्व या सिद्धान्त-रूपी रत्नों को पाठकों के जगत तक पहुँचाने के कार्य की ओर लोगों का ध्यान कम गया है।इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में भक्ति की शाब्दिक व्युत्पत्ति, परिभाषा,..
तेलगू लेखक तापी धर्माराव के लेखन का प्रयोजन समाज को शिक्षित करना रहा है। इतिहास को बाँचने में उन्हें कोई गुरेज़ नहीं। वे तथ्यों की वैज्ञानिक पड़ताल भी करते हैं और अन्धविश्वासों को चुपचाप पचा लेने की ग़लतियाँ वह नहीं करते। आत्मानुभव उनके मन में उठे द्वन्द्व का कारण बनता है और वह उनके समाधान की खोज करने ..
संस्कृत, पालि, अंग्रेज़ी, प्राकृत, उर्दू, अर्थशास्त्र, खगोलशास्त्र, गणित और भाषाविज्ञान आदि भाषाओं और विषयों के अधिकारी विद्वान अखिलेश मिश्र के बौद्धिक व्यक्तित्व की विशेषता यह थी कि उन्होंने ज्ञान को कर्म से जोड़ा। जीवन-भर वे ज्ञान, कर्म, वाणी और लेखनी की एकाग्र शक्ति के साथ जनसंघर्षों में संलग्न रह..
धर्म के सही चरित्र एवं स्वरूप से परिचित हुए बिना विवेकहीनता, अन्धविश्वासों एवं भ्रान्तियों से मुक़ाबला नहीं किया जा सकता। इस दिशा में यह पुस्तक एक सार्थक प्रयास है। लेखक ने निष्पक्ष दृष्टि से बिना किसी पूर्वग्रह के तीन धर्मों—हिन्दू, ईसाई और इस्लाम की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए हिंसा, नारी और दासत..
कभी धर्म राजनीतिक सत्ता के बावजूद पूर्ण स्वायत्त था। मध्यकालीन भारत में धर्म अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए सैन्य-संघर्ष तक पर उतारू हो जाता था। मौजूदा दौर में राजनीति धर्म की पारम्परिक सत्ता पर क़ब्ज़ा कर उसे अपनी सफलता की सीढ़ी बनाना चाहती है। पिछले दो दशकों से धर्म इसीलिए बौद्धिक विमर्श के केन्द्..
परम पूज्य दलाई लामा ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘एथिक्स फ़ॉर ए न्यू मिलेनियम’ में धार्मिक सिद्धान्तों की अपेक्षा वैश्विक सिद्धान्तों पर आधारित नैतिकता को स्थापित करने की प्रस्तावना दी थी। अब ‘बियोन्ड रिलीजन : एथिक्स फ़ॉर ए होल वर्ल्ड’ पुस्तक में दलाई लामा ने अत्यन्त करुणा से भरे बेबाक अन्दाज़ में ग़ैर-ध..
‘हिन्दू धर्म : जीवन में सनातन की खोज’ पुस्तक में हिन्दू धर्म-दर्शन पर विवेचनापूर्ण विचारों का संकलन किया गया है। इसमें हिन्दू धर्म की व्याख्या नहीं है, बल्कि विद्यानिवास जी के भीतर उमड़ रही सोच की साफ़-सुथरी अभिव्यक्ति है। सनातनता का हिन्दू धर्म के सन्दर्भ में यहाँ परम्परागत अर्थ नहीं है। यह तो एक खोज..
किसी दैनिक कमेंट्री की तरह लिखी गई ये टिप्पणियाँ उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श का रेखांकन करने और उसके समस्या-बिन्दुओं को खोलने की प्रक्रिया में लिखी जाती रही हैं। उत्तर-आधुनिक विमर्श और उत्तर-संरचनावादी पाठ-प्रविधि के बिना उत्तर-औपनिवेशिकता की इस गुत्थी को नहीं खोला जा सकता। यहाँ हिन्दुत्व के द्वारा चयनि..