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लेख : निबंध : पत्र - Milate-Julate Shabdon Ke Manak Prayog

लेख : निबंध : पत्र - Milate-Julate Shabdon Ke Manak Prayog
दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपने में समाहित कर आवश्यकतानुसार नए शब्दों का निर्माण करते रहने की अपनी अद्भुत क्षमता के बल पर हिन्दी दुनिया में तेजी से फैल रही है। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों में भारत, पाकिस्तान, मॉरीशस, फिजी, गवाटेमाला, संयुक्त अरब अमीरात और गुयाना में 50 प्रतिशत से अधिक तथा सूरीनाम, ट्रिनिडाड, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और इक्वाडोर में 25 प्रतिशत से अधिक आबादी हिन्दी बोलती है। इसके अतिरिक्त सौ से अधिक विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी के उच्च शिक्षण की व्यवस्था है और प्रायः सभी देशों में इसे बोलने और समझने वाले लोग मौजूद हैं। इसमें संदेह नहीं कि अपनी सहजता-सरलता के चलते हिंदी का प्रभाव क्षेत्र निरंतर विस्तृत होता जा रहा है, लेकिन यह भी कटु सत्य है कि इस विकास और विस्तार के बावजूद गर्व के साथ व्यवहार में लाकर इसे तराशने, सजाने और सँवारने की वह चिंता कमजोर हुई लगती है, जिसके परिणाम स्वरूप हिन्दी आज इस मुकाम तक पहुँची है। यह चिंतन का विषय इसलिए है क्योंकि हिन्दी की अपने ही देश में चिंताजनक स्थिति बन रही है। अतः असली जरूरत इसे व्यवहार में लाकर इसकी विश्वव्यापी उपलब्धियों पर नाज करने की है। पत्रकारिता और अध्यापन के अपने लंबे अनुभव के आधार पर लेखक ने इस पुस्तक में ऐसी अनेक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया है, जिनके चलते शबदों के अमानक प्रयोग हो रहे हैं। भाषा सरल-सुबोध और शैली बोधगम्य होने से इसमें भाषा विज्ञान का शास्त्रीय पक्ष भी बड़े सहज ढंग से अभिव्यक्त हुआ है।अनुक्रम   लेखकीय — 7 61. प्राप्ति और उपलधि — 79 1. टाँग और पाँव (पैर) — 13 62. प्राय: और बहुधा — 80 2. कोश और कोष — 15 63. प्रज्ञा और प्रतिभा — 81 3. अर्थी और अरथी — 15 64. बुद्धि और समझ — 82 4. बधाई और धन्यवाद — 16 65. भाव और भावना — 84 5. अस्त्र और शस्त्र — 16 66. अधिकांश और अधिकतर — 85 6. क्षति और हानि — 18 67. मात्रा और संया — 86 7. अहम् और अहम — 18 68. आशंका और संभावना — 87 8. करनी और करतूत — 19 69. बेफिक्र और लापरवाह — 89 9. द्रव्य और द्रव — 20 70. पीड़ा और यंत्रणा — 90 10. उपयोग और प्रयोग — 20 71. भेद और अंतर — 91 11. टाँगना और लटकाना — 22 72. लेख और आलेख — 92 12. जाग्रत् और जागृत — 23 73. व्यंग्य और व्यंग — 94 13. बरामद और जत — 24 74. अद्भुत और विचित्र — 95 14. भाषण और व्यायान — 24 75. ज्ञापन और अधिसूचना — 96 15. निर्देशक और निदेशक — 26 76. विश्वास और भरोसा — 97 16. नमस्ते और प्रणाम — 26 77. निवेदन और प्रार्थना — 99 17. अर्घ और अर्घ्य — 27 78. साधारण और सामान्य — 100 18. निलंबन और बरखास्तगी — 28 79. हरण और अपहरण — 101 19. सम्मान और पुरस्कार — 29 80. शंका और संदेह — 102 20. नहीं और न — 29 81. शासन और प्रशासन — 104 21. मिलीभगत और साँठगाँठ — 30 82. हत्या और वध — 105 22. लोकार्पण और विमोचन — 31 83. स्वाधीनता और स्वतंत्रता — 106 23. भोगना और सहना — 32 84. दौड़ना और भागना — 107 24. आरोपी और आरोपित — 33 85. भागदौड़ और भगदड़ — 108 25. अपराध और पाप — 35 86. हठ और जिद — 109 26. अनुरोध और प्रार्थना — 36 87. नाम और उपनाम — 111 27. अनशन और उपवास — 37 88. नाम और संज्ञा — 112 28. अनुकरण और अनुसरण — 38 89. चिपकना और सटना — 113 29. अंकुश और नियंत्रण — 40 90. ताकना और घूरना — 114 30. आज्ञा और आदेश — 41 91. अधिक और बहुत — 116 31. गुरु और गुरू — 42 92. मिलना और लगना — 117 32. व्यापार और व्यवसाय — 43 93. जुड़ना और लगना — 118 33. अध्यादेश और समादेश — 45 94. टिकना और रुकना — 119 34. अत्युति और अतिशयोति — 46 95. ठहरना और थमना — 120 35. अक्षर और वर्ण — 47 96. फूटना और फटना — 122 36. आदि और आरंभ — 48 97. चेतावनी और धमकी — 123 37. वारिस और बारिश — 49 98. पकड़ना और थामना — 124 38. बहुत और बड़ा — 50 99. उलटना और पलटना — 125 39. अपेक्षा और आवश्यकता — 51 100. गिरना और ढहना — 126 40. अनावरण और उद्घाटन — 52 101. नापना और मापना — 128 41. अनिवार्य और आवश्यक — 53 102. घर और मकान — 129 42. उद्देश्य और ध्येय — 55 103. कार्यवाही और काररवाई — 130 43. संवेदना और सहानुभूति — 56 104. देखना और झाँकना — 131 44. धन और संपत्ति — 57 105. जुटना और जुतना — 133 45. उन्नति और प्रगति — 58 106. शिक्षा और विद्या — 134 46. उपस्थित और विद्यमान — 60 107. समाचार और संवाद — 135 47. प्रस्तुत और वर्तमान — 61 108. संधि और समझौता — 136 48. भूल और चूक — 62 109. हँसी और दिल्लगी — 137 49. यश और कीर्ति — 63 110. ईर्ष्या और द्वेष — 139 50. कल्पना और उपज — 65 111. अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय — 140 51. खोज और शोध — 66 112. आमंत्रण और निमंत्रण — 141 52. प्रयत्न और प्रयास — 67 113. बल और सामर्थ्य — 142 53. ग्रंथ और पुस्तक — 68 114. अवस्था और आयु — 143 54. लोकतंत्र और गणतंत्र — 70 115. संस्था और संस्थान — 145 55. परिणाम और फल — 71 116. संकल्प और प्रतिज्ञा — 146 56. पर्याप्त और यथेष्ट — 72 117. संस्कृति और सभ्यता — 147 57. मजदूरी, पारिश्रमिक और वेतन — 73 118. संबंध और संपर्क — 148 58. प्रकृति और स्वभाव — 75 119. समालोचना और समीक्षा — 150 59. विरुद्ध और विपरीत — 76 सहायक ग्रंथों की सूची — 152 60. उपदेश और प्रवचन — 77  

लेख : निबंध : पत्र - Milate-Julate Shabdon Ke Manak Prayog

Milate-Julate Shabdon Ke Manak Prayog - by - Prabhat Prakashan

Milate-Julate Shabdon Ke Manak Prayog - दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपने में समाहित कर आवश्यकतानुसार नए शब्दों का निर्माण करते रहने की अपनी अद्भुत क्षमता के बल पर हिन्दी दुनिया में तेजी से फैल रही है। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों में भारत, पाकिस्तान, मॉरीशस, फिजी, गवाटेमाला, संयुक्त अरब अमीरात और गुयाना में 50 प्रतिशत से अधिक तथा सूरीनाम, ट्रिनिडाड, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और इक्वाडोर में 25 प्रतिशत से अधिक आबादी हिन्दी बोलती है। इसके अतिरिक्त सौ से अधिक विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी के उच्च शिक्षण की व्यवस्था है और प्रायः सभी देशों में इसे बोलने और समझने वाले लोग मौजूद हैं। इसमें संदेह नहीं कि अपनी सहजता-सरलता के चलते हिंदी का प्रभाव क्षेत्र निरंतर विस्तृत होता जा रहा है, लेकिन यह भी कटु सत्य है कि इस विकास और विस्तार के बावजूद गर्व के साथ व्यवहार में लाकर इसे तराशने, सजाने और सँवारने की वह चिंता कमजोर हुई लगती है, जिसके परिणाम स्वरूप हिन्दी आज इस मुकाम तक पहुँची है। यह चिंतन का विषय इसलिए है क्योंकि हिन्दी की अपने ही देश में चिंताजनक स्थिति बन रही है। अतः असली जरूरत इसे व्यवहार में लाकर इसकी विश्वव्यापी उपलब्धियों पर नाज करने की है। पत्रकारिता और अध्यापन के अपने लंबे अनुभव के आधार पर लेखक ने इस पुस्तक में ऐसी अनेक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया है, जिनके चलते शबदों के अमानक प्रयोग हो रहे हैं। भाषा सरल-सुबोध और शैली बोधगम्य होने से इसमें भाषा विज्ञान का शास्त्रीय पक्ष भी बड़े सहज ढंग से अभिव्यक्त हुआ है।अनुक्रम   लेखकीय — 7 61.

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  • Stock: 10
  • Model: PP2396
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2396
  • ISBN: 9789384344672
  • ISBN: 9789384344672
  • Total Pages: 152
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2017
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00