राजभाषा : भाषा-विज्ञानं : हिंदी प्रसार - Hindi Ki Vartani
योतो विस्तृत क्षेत्रफल में बोली जानेवाली किसी भी भाषा मे क्षेत्रीयता, भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आदि के कारण उच्चारणगत परिवर्तन दष्टिगोचर होते हैं, पर लेखन के स्तर पर व रानी की जैसी अराजकता आजकल हिंदी में दिखाई देती है, वैसी अन्य भाषाओं में नहीं है। संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिकतापूर्ण लिपि में लिखी जाने के बावजूद हिंदी का हाल यह है कि बहुत से ऐसे शब्द हैं, जिनकी वर्तमान में कई- कई वर्तनी प्रचलित हैं। जबकि किसी भी दृष्टिकोण से विचार करने पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि साधारण या विशिष्ट, किसी भी तरह के लेखन में शब्दों की वर्तनी के मानक स्वरूप की आवश्यकता होती ही है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक, पत्रकार और प्रतिष्ठित समाजकर्मी संत समीर ने हिंदी-वर्तनी की विभिन्न समस्याओं पर तर्कपूर्ण ढंग से विचार करते हुए कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। लेखक ने हिंदी-वर्तनी का मानक स्वरूप निर्धारित करने में हिंदी के समाचार-पत्रों की अहम भूमिका रेखांकित की है । हमें उम्मीद है कि यह पुस्तक हिंदी भाषा की वर्तनी के मुद्दे पर हिंदीभाषी जनता को जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।सूची-क्रमइतिहास संरक्षण का विनम्र प्रयास —Pgs. 5अपनी बात —Pgs. 91. मानक वर्तनी की आवश्यकता क्यों —Pgs. 172. देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता —Pgs. 223. समाचार-पत्र-पत्रिकाओं की वर्तनी नीतियों पर एक दृष्टि —Pgs. 274. केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा प्रस्तावित मानक वर्तनी —Pgs. 465. हिंदी वर्तनी की प्रमुख समस्याएँ —Pgs. 636. पंचमाक्षर बनाम अनुस्वार —Pgs. 657. अनुनासिकता की समस्या —Pgs. 758. विसर्ग की बेदख़ली आसान नहीं —Pgs. 819. ध्वनियों के संदर्भ में कुछ और —Pgs. 8710. विभक्ति-चिह्न मिलाएँ या अलग लिखें —Pgs. 9411. ‘वाला’ प्रत्यय का प्रयोग —Pgs. 9912. आदरसूचक शब्दों का प्रयोग —Pgs. 10113. गा-गे-गी की बात —Pgs. 10214. श्रुतिमूलक ‘य’, ‘व’ की समस्या —Pgs. 10315. दो रूप वाले वर्णों की समस्या —Pgs. 11116. व्यंजनों के संयोगी रूप —Pgs. 11517. हल् चिह्न लगाएँ या हटाएँ —Pgs. 12018. एकाधिक उच्चारण वाले शब्द —Pgs. 12519. मिलते-जुलते उच्चारण वाले शब्द —Pgs. 13120. गिनती के शब्द —Pgs. 14121. अंग्रेज़ी मूल के शब्दों का सवाल —Pgs. 15222. अंग्रेज़ी शब्दों के बहुवचन रूप —Pgs. 15923. विदेशी संज्ञाओं की वर्तनी —Pgs. 16224. विदेशी ध्वनियों के चिह्न —Pgs. 16525. उर्दू का नुक़्ता अपनाएँ या भूल जाएँ —Pgs. 16726. शब्दों के शुद्ध प्रयोग —Pgs. 18427. अशुद्ध वर्तनी के शिकार शब्द —Pgs. 19228. बात विराम चिह्नों की —Pgs. 208अंतरजाल पर हिंदी —Pgs. 23729. अराजकता-ही-अराजकता —Pgs. 23730. महा-लोकतंत्र की महा-संभावनाएँ —Pgs. 24031. कितने कुंजीपटल! —Pgs. 24832. फॉण्ट की समस्या —Pgs. 25133. रोमन में कैसी हिंदी —Pgs. 253संदर्भ स्रोत —Pgs. 256
राजभाषा : भाषा-विज्ञानं : हिंदी प्रसार - Hindi Ki Vartani
Hindi Ki Vartani - by - Prabhat Prakashan
Hindi Ki Vartani - योतो विस्तृत क्षेत्रफल में बोली जानेवाली किसी भी भाषा मे क्षेत्रीयता, भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आदि के कारण उच्चारणगत परिवर्तन दष्टिगोचर होते हैं, पर लेखन के स्तर पर व रानी की जैसी अराजकता आजकल हिंदी में दिखाई देती है, वैसी अन्य भाषाओं में नहीं है। संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिकतापूर्ण लिपि में लिखी जाने के बावजूद हिंदी का हाल यह है कि बहुत से ऐसे शब्द हैं, जिनकी वर्तमान में कई- कई वर्तनी प्रचलित हैं। जबकि किसी भी दृष्टिकोण से विचार करने पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि साधारण या विशिष्ट, किसी भी तरह के लेखन में शब्दों की वर्तनी के मानक स्वरूप की आवश्यकता होती ही है। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक, पत्रकार और प्रतिष्ठित समाजकर्मी संत समीर ने हिंदी-वर्तनी की विभिन्न समस्याओं पर तर्कपूर्ण ढंग से विचार करते हुए कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। लेखक ने हिंदी-वर्तनी का मानक स्वरूप निर्धारित करने में हिंदी के समाचार-पत्रों की अहम भूमिका रेखांकित की है । हमें उम्मीद है कि यह पुस्तक हिंदी भाषा की वर्तनी के मुद्दे पर हिंदीभाषी जनता को जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।सूची-क्रमइतिहास संरक्षण का विनम्र प्रयास —Pgs.
- Stock: 10
- Model: PP2349
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP2349
- ISBN: 9788173157493
- ISBN: 9788173157493
- Total Pages: 256
- Edition: Edition 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2019
₹ 500.00
Ex Tax: ₹ 500.00