कहानी - Vyatha Katha
लोग कहते हैं कि कल्पना का कोई विवेक नहीं होता, वह विवेक के सहारे नहीं चलती है। मन और मस्तिष्क अकसर अलग-अलग दिशाओं में चलते दिखाई देते हैं, कम-से-कम माना तो यही जाता है। लेकिन मुझे तो ऐसा लगा कि जब भी मस्तिष्क ने कल्पना को रोका-टोका तो उसे सही दिशा में मोड़ने के लिए ही, वह ऐसा न करता तो शायद मन कहीं ऐसी गलियों में भी फँस सकता था, जो थोड़ी ही दूर जाकर बंद हो जाती हों। ऐसी ही किसी अंधी गली में कल्पना भी दम तोड़ती। इसीलिए बार-बार जीवन की कठोर वास्तविकताएँ इस प्रेम-कहानी में अपना योगदान करने टपक ही पड़ती थीं। जो प्रेम-प्रसंग एक भौतिक सचाई से आरंभ हुआ हो, वह अपनी यात्रा में न तो प्रत्यक्ष से दूर रह सकता था, न इतिहास को नजरअंदाज कर सकता था। ऌफ्लीटफुट की प्रेमकथा भी सच है, आदिवसियों की पीड़ा भी सच है, भारतवंशियों की उलझनें और विसंगतियाँ भी सच ही हैं और उन यूरोपीय बाल गुलामों की त्रासदी भी सच ही है। ये और कई सच एक माला में पिरोना संभव नहीं था, अगर एथीना न होती और उसे एक अंगद नहीं मिलता। सब घटनाएँ, सारे तथ्य इन्हीं दो काल्पनिक पात्रों के चारों ओर घूमते रहे, उसी तरह बँधे हुए, जैसे सूर्य के साथ उसके ग्रह। वैसे भी कोई सच एकदम कल्पना से रहित होकर हम तक कहाँ पहुँच पाता है?अनुक्रमभूमिका : ऐसे हुआ उपन्यास का जन्म—51. कालरात्रि में श्वेत प्रेत—112. किस्सा फ्लीट फुट का—463. अंधों का प्यार—724. लौट आई एथीना—885. क्रेडिट नदी की पगडंडी—1046. एडम क्राइस्ट—1127. मल्लिका मीर—1238. चाची—1319. त्रिशंकु—13810. राष्ट्रवाद की प्रसव पीड़ा—14811. विलायत से आए नन्हे-मुन्ने गुलाम—175
कहानी - Vyatha Katha
Vyatha Katha - by - Prabhat Prakashan
Vyatha Katha - लोग कहते हैं कि कल्पना का कोई विवेक नहीं होता, वह विवेक के सहारे नहीं चलती है। मन और मस्तिष्क अकसर अलग-अलग दिशाओं में चलते दिखाई देते हैं, कम-से-कम माना तो यही जाता है। लेकिन मुझे तो ऐसा लगा कि जब भी मस्तिष्क ने कल्पना को रोका-टोका तो उसे सही दिशा में मोड़ने के लिए ही, वह ऐसा न करता तो शायद मन कहीं ऐसी गलियों में भी फँस सकता था, जो थोड़ी ही दूर जाकर बंद हो जाती हों। ऐसी ही किसी अंधी गली में कल्पना भी दम तोड़ती। इसीलिए बार-बार जीवन की कठोर वास्तविकताएँ इस प्रेम-कहानी में अपना योगदान करने टपक ही पड़ती थीं। जो प्रेम-प्रसंग एक भौतिक सचाई से आरंभ हुआ हो, वह अपनी यात्रा में न तो प्रत्यक्ष से दूर रह सकता था, न इतिहास को नजरअंदाज कर सकता था। ऌफ्लीटफुट की प्रेमकथा भी सच है, आदिवसियों की पीड़ा भी सच है, भारतवंशियों की उलझनें और विसंगतियाँ भी सच ही हैं और उन यूरोपीय बाल गुलामों की त्रासदी भी सच ही है। ये और कई सच एक माला में पिरोना संभव नहीं था, अगर एथीना न होती और उसे एक अंगद नहीं मिलता। सब घटनाएँ, सारे तथ्य इन्हीं दो काल्पनिक पात्रों के चारों ओर घूमते रहे, उसी तरह बँधे हुए, जैसे सूर्य के साथ उसके ग्रह। वैसे भी कोई सच एकदम कल्पना से रहित होकर हम तक कहाँ पहुँच पाता है?
- Stock: 10
- Model: PP829
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP829
- ISBN: 9789386001849
- ISBN: 9789386001849
- Total Pages: 216
- Edition: Edition Ist
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2018
₹ 400.00
Ex Tax: ₹ 400.00