कहानी - Manus Tan
अंतर्ग्लानि अकेली मेरी नहीं, दाह उनके कलेजे में भी है। दूसरी कोई संतान नहीं, अकेला मैं...और मैं भी तो...लेकिन सुवर्णा, मेरी समझ से नियति अपने क्रियाकलापों में कोई भी हस्तक्षेप बरदाश्त नहीं कर सकती...। तुम लोग अपने एकाकीपन का भार मुझे इसी तरह उठा लेने दो...बड़े सौभाग्य से मानव-जन्म की मर्यादा का निर्वाह मुझे इसी रूप में करना है। हाँ, कभी उस ईश्वर से अपने इस भाई के लिए कोई प्रार्थना करनी हो तो यही करना कि अगले जन्म में वह...दिनाजपुरवालों की इतनी औकात नहीं है कि वे अपनी बेटी के लिए अच्छा घर, सुरूप वर जुटा सकें—इसीलिए वे हमारी दया-दृष्टि की लालसा लिये बैठे हैं।...उस लड़की की आँखों में मेरे लिए हिकारत होगी या करुणा—और ये दोनों ही परिस्थितियाँ मेरी जिंदगी को हर तरह से दयनीय बनाकर छोड़ेंगी...नहीं, हम तुम्हारी यह बात कभी नहीं मान सकते...कभी नहीं...! तुम्हें किस बात की चिंता है, अम्मा, बाबूजी नहीं रहे तो क्या, मैं तो हूँ। मेरे रहते तुम्हें कौन सा अभाव?...मैंने भी अपने भीतर एक सुरक्षा कवच ढूँढ़ लिया है, सुवर्णा...जब कभी मन बेहद अकेला अथवा संतप्त होता है, मैं अपने उसी एक क्षण के स्वर्ग की ओर वापस लौट जाता हूँ। तुम नहीं जानतीं—अनजाने ही मुझे जो निधि मिली है, उसे आत्मा की सात तहों में समेटकर मैं यह जीवन बड़ी आसानी से बिता लूँगा। यह बंधन ही क्या कम है? जीने के लिए अब किसी बाहरी बंधन की अपेक्षा नहीं?
—इसी पुस्तक सेप्रख्यात कथाकार ऋता शुक्ल की कहानियों में समाज का संत्रास आँखों देखी घटना के रूप में उभरता है। तभी तो उनकी कहानियाँ संस्मरण, रेखाचित्र और कहानी का मिला-जुला अनूठा आनंद प्रदान करती हैं। प्रस्तुत है उनकी हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक कहानियों का संकलन ‘मानुस तन’।
कहानी - Manus Tan
Manus Tan - by - Prabhat Prakashan
Manus Tan - अंतर्ग्लानि अकेली मेरी नहीं, दाह उनके कलेजे में भी है। दूसरी कोई संतान नहीं, अकेला मैं.
- Stock: 10
- Model: PP921
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP921
- ISBN: 9789386001740
- ISBN: 9789386001740
- Total Pages: 152
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2017
₹ 400.00
Ex Tax: ₹ 400.00