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कहानी - Gramya Jeevan Ki Kahaniyan

कहानी - Gramya Jeevan Ki Kahaniyan
हमारी लगभग अस्सी प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है । शहर या कस्बे में रहनेवालों की अपेक्षा गाँव के लोग अधिक परिश्रमी होते हैं । देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पैदावार बढ़ाने में वे रात-दिन लगे रहते हैं । इनमें ऐसे बहुत कम हैं जो भूमि के एक छोटे से टुकड़े के भी स्वामी हों । अधिकांश को तो खेतिहर मजदूर के नाम से ही जाना जाता है । मुट्ठी भर लोग ऐसे हैं जो पहले कभी बड़े जमींदार-जागीरदार थे । यद्यपि जागीरें और जमींदारियों समाप्‍त हो गई हैं, किंतु उनके स्थान पर बड़े-बड़े कुलक-कृषक और उनकी सत्ता ग्रामीण जीवन पर आज भी पूरी तरह हावी है । आजादी के इन चार दशकों में हमारे गाँवों में बड़े परिवर्तन हुए हैं । गाँव और नगर की खाई में भी कमी आई है; पर छोटे किसानों की स्थिति खेतिहर मजदूरों जैसी ही है । वे शक्-संपन्न जमींदारों के दास बनकर जी रहे हैं । सच पूछा जाए तो शोषण और दमन की चक्की में पिसते हमारे करोड़ों गरीब किसानों की स्थिति बँधुआ मजदूरों से बेहतर नहीं है । और उन्हीं के खून-पसीने के गारे-ईंटों से हो रहा है नगरों-महानगरों का निर्माण । कुछ साहित्यकारों ने दूर-दराज के देहातों से वास्तविक पात्रों को चुनकर ग्रामीण जीवन पर लेखनी उठाई है । इन रचनाओं से स्पष्‍ट है कि हमारा ग्रामवासी शताब्दियों पुरानी अपनी समस्याओं से आज भी उसी तरह जूझ रहा है । यहाँ ऐसी ही कुछ कहानियों को प्रस्तुत किया जा रहा है जो ग्राम्य जीवन की समस्याओं और संघर्षों को व्यापक फलक पर चित्रित कर पाने में समर्थ हैं । आप देखेंगे कि ये मर्मस्पर्शी कहानियाँ हमें बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं ।

कहानी - Gramya Jeevan Ki Kahaniyan

Gramya Jeevan Ki Kahaniyan - by - Prabhat Prakashan

Gramya Jeevan Ki Kahaniyan -

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  • Stock: 10
  • Model: PP819
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP819
  • ISBN: 9789352667802
  • ISBN: 9789352667802
  • Total Pages: 150
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2018
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00