भक्ति साहित्य - Vaidik Sanatan Hindutva
सनातन वह जीवनदर्शन है, जो प्रकृति को वश में करने का समर्थन नहीं करता। यों तो प्रकृति को पराजित करके उस पर कब्जा करना संभव नहीं। मगर इस तरह की सोच आसुरी चिंतन है, जबकि सनातन दैवीय चिंतन है। यहाँ इंद्रियों को वश में करने की बात होती है। सनातन लेने की नहीं देने की संस्कृति है। सनातन मृत नहीं, जीवंत है। स्थिर नहीं, सतत है। जड़ नहीं चैतन्य है। सनातन जीवनदर्शन भौतिक, शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक से ऊपर उठकर आत्मिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्तर पर भी संतुष्ट करता है। यह उपभोग की नहीं उपयोग की संस्कृति है। यह लाभ-लोभ की नहीं, त्याग की संस्कृति है। यह भोग की नहीं, मोक्ष की संस्कृति है। यह बाँधता नहीं, मुक्त करता है।
सनातन हिंदू, भक्षक नहीं, प्रकृति रक्षक होता है। वैदिक सनातन हिंदुत्व एक प्रकृति संरक्षक संस्कृति है। ‘मैं सनातनी हूँ’ कहने का अर्थ ही होता है ‘मैं प्रकृति का पुजारी हूँ’।
सनातन जीवनदर्शन दानव को मानव बनाता है, मानव को देवता और देवता को ईश्वर के रूप में स्थापित कर देता है।
सनातन सिर्फ स्वयं की बात नहीं करता, सदा विश्व की बात करता है। सिर्फ आज की बात नहीं करता, बीते हुए कल का विश्लेषण कर आने वाले कल के लिए तैयार करता है। इसलिए शाश्वत है, निरंतर है। आधुनिक मानव को सनातन के इस मूल मंत्र को पकड़ना होगा, तभी हम सनातन जीवनदर्शन को समझ पाएँगे।
—इसी पुस्तक सेअनुक्रम
नेति-नेति — Pgs. 7 अध्याय-8
भाग-1 1. पीपल (पीपल पूजन) — Pgs. 142
विज्ञान की कचरा-संस्कृति 2. नीम — Pgs. 144
अध्याय-1 3. केला — Pgs. 145
वैज्ञानिकों की चेतावनी — Pgs. 15 4. तुलसी/तुलसी पूजन — Pgs. 146
अध्याय-2 5. वटवृक्ष (बरगद की पूजा) — Pgs. 148
1. प्रकृति और मनुष्य — Pgs. 18 अध्याय-9
2. सरस्वती नदी और प्रलय — Pgs. 19 गौमाता/गो पूजन — Pgs. 151
अध्याय-3 अध्याय-10
1. प्रकृति और विज्ञान — Pgs. 22 मकर संक्रांति (लोहड़ी) — Pgs. 155
2. विज्ञान का कचरा — Pgs. 23 अध्याय-11
3. विज्ञान में मानवतावाद — Pgs. 26 वसंत पंचमी — Pgs. 159
अध्याय-4 अध्याय-12
1. मानव प्रगति और पर्यावरण — Pgs. 29 होली — Pgs. 161
2. वन संपदा के दोहन से बिगड़ा पर्यावरण संतुलन — Pgs. 33 अध्याय-13
3. प्रदूषण युग में सिर्फ संरक्षण नहीं पर्यावरण संवर्धन की आवश्यकता — Pgs. 35 रामनवमी — Pgs. 164
4. हम सिर्फ लेनेवाले, कुछ देनेवाले नहीं — Pgs. 37 अध्याय-14
भाग-2 नागपंचमी — Pgs. 166
वैदिक आर्य और सनातन संस्कृति अध्याय-15
अध्याय-1 हरियाली तीज और हरियाली अमावस्या — Pgs. 169
1. पाषाण युग — Pgs. 41 अध्याय-16
2. पाषाण देव से रुद्र का उद्भव — Pgs. 42 छठ पूजा — Pgs. 171
अध्याय-2 अध्याय-17
1. सिंधु-सरस्वती सभ्यता और वैदिक संस्कृति — Pgs. 45 आँवला नवमी — Pgs. 174
2. हिंदू — Pgs. 48 अध्याय-18
अध्याय-3 ओणम — Pgs. 176
1. ऋग्वेद में नदियाँ, जल, कुआँ, सरोवर, समुद्र, वर्षा — Pgs. 53 अध्याय-19
अध्याय-4 रक्षाबंधन — Pgs. 178
1. सनातन : कृषिप्रधान समाज — Pgs. 63 अध्याय-20
2. ऋतु परिवर्तन — Pgs. 66 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी — Pgs. 180
अध्याय-5 अध्याय-21
1. समयकाल युग पंचांग — Pgs. 68 श्राद्ध — Pgs. 182
अध्याय-6 अध्याय-22
1. सनातन संस्कृति — Pgs. 81 1. नवरात्रे — Pgs. 185
2. सनातन धर्म — Pgs. 83 2. विजयादशमी — Pgs. 186
3. सनातन के मूल तत्त्व — Pgs. 87 अध्याय-23
अध्याय-7 1. दीपावली — Pgs. 189
1. संस्कृति में संस्कार — Pgs. 92 2. गोवर्धन पूजा — Pgs. 191
2. संस्कार — Pgs. 94 अध्याय-24
अध्याय-8 शरद पूर्णिमा — Pgs. 193
1. यज्ञ — Pgs. 100 अध्याय-25
2. गायत्री मंत्र — Pgs. 106 सरहुल — Pgs. 195
3. महामृत्युंजय — Pgs. 108 अध्याय-26
अध्याय-9 देवशयनी एकादशी और देवउठनी एकादशी — Pgs. 197
योग (योगा) — Pgs. 110 अध्याय-27
अध्याय-10 नर्मदा परिक्रमा — Pgs. 198
1. सनातन हिंदू—एक प्रकृति-प्रेमी — Pgs. 115 अध्याय-28
2. सनातन पर्व उत्सव में प्रकृति दर्शन — Pgs. 118 कुंभ मेला — Pgs. 201
भाग-3 अध्याय-29
सनातन संस्कृति में प्रकृति महाशिवरात्रि — Pgs. 203
अध्याय-1 अध्याय-30
1. व्रत-पर्व-त्योहार — Pgs. 123 सनातन पर्वों का समाज शास्त्र — Pgs. 205
अध्याय-2 अध्याय-31
व्रत-उपवास — Pgs. 127 सनातन पर्वों का अर्थशास्त्र — Pgs. 207
अध्याय-3 भाग-4
1. अमावस्या — Pgs. 129 सनातन जीवनदर्शन
2. सोमवती अमावस्या — Pgs. 130 • वेद — Pgs. 215
अध्याय-4 • अहिंसा और धर्म — Pgs. 219
1. पूर्णिमा — Pgs. 131 • शांति — Pgs. 220
2. पूर्णिमा में उपवास — Pgs. 131 • इंद्र — Pgs. 222
3. गुरु पूर्णिमा — Pgs. 132 भाग-5
4. वट पूर्णिमा — Pgs. 133 विश्व मानव की आधुनिक चुनौतियाँ
अध्याय-5 • सनातन धर्म बनाम अन्य — Pgs. 227
सूर्य-ग्रहण, चंद्र-ग्रहण — Pgs. 134 • राजनेता-पूँजीपति-धर्मगुरुओं का गठजोड़ — Pgs. 230
अध्याय-6 • बुद्धिजीवी और नायक — Pgs. 231
एकादशी व्रत — Pgs. 137 • आधुनिक हिंदुओं में कुरीतियाँ — Pgs. 232
अध्याय-7 • सीमाएँ (बाउंडरी) — Pgs. 235
कुआँ पूजन — Pgs. 139 • वॉल-ई (WALL-E) — Pgs. 237
भक्ति साहित्य - Vaidik Sanatan Hindutva
Vaidik Sanatan Hindutva - by - Prabhat Prakashan
Vaidik Sanatan Hindutva - सनातन वह जीवनदर्शन है, जो प्रकृति को वश में करने का समर्थन नहीं करता। यों तो प्रकृति को पराजित करके उस पर कब्जा करना संभव नहीं। मगर इस तरह की सोच आसुरी चिंतन है, जबकि सनातन दैवीय चिंतन है। यहाँ इंद्रियों को वश में करने की बात होती है। सनातन लेने की नहीं देने की संस्कृति है। सनातन मृत नहीं, जीवंत है। स्थिर नहीं, सतत है। जड़ नहीं चैतन्य है। सनातन जीवनदर्शन भौतिक, शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक से ऊपर उठकर आत्मिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक स्तर पर भी संतुष्ट करता है। यह उपभोग की नहीं उपयोग की संस्कृति है। यह लाभ-लोभ की नहीं, त्याग की संस्कृति है। यह भोग की नहीं, मोक्ष की संस्कृति है। यह बाँधता नहीं, मुक्त करता है। सनातन हिंदू, भक्षक नहीं, प्रकृति रक्षक होता है। वैदिक सनातन हिंदुत्व एक प्रकृति संरक्षक संस्कृति है। ‘मैं सनातनी हूँ’ कहने का अर्थ ही होता है ‘मैं प्रकृति का पुजारी हूँ’। सनातन जीवनदर्शन दानव को मानव बनाता है, मानव को देवता और देवता को ईश्वर के रूप में स्थापित कर देता है। सनातन सिर्फ स्वयं की बात नहीं करता, सदा विश्व की बात करता है। सिर्फ आज की बात नहीं करता, बीते हुए कल का विश्लेषण कर आने वाले कल के लिए तैयार करता है। इसलिए शाश्वत है, निरंतर है। आधुनिक मानव को सनातन के इस मूल मंत्र को पकड़ना होगा, तभी हम सनातन जीवनदर्शन को समझ पाएँगे। —इसी पुस्तक सेअनुक्रम नेति-नेति — Pgs.
- Stock: 10
- Model: PP1924
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP1924
- ISBN: 9789352666874
- ISBN: 9789352666874
- Total Pages: 240
- Edition: Edition 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2018
₹ 500.00
Ex Tax: ₹ 500.00