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कविता - Chand Tum Gawah Rahna

कविता - Chand Tum Gawah Rahna
सोलह बरस के पत्रकारिता कॅरियर और छत्तीस बरस की ज़िंदगी के स़फर में जो रंग देखे, उन्हें बस कह दिया, ताकि यहाँ की बातें यहीं कहता चलूँ और जाते व़क्त दिल पर कोई बोझ न हो। जो कहा, वो रत्ती भर भी काल्पनिक नहीं है, सब देखा, सुना और महसूस किया और बिना किसी ल़फ़़्फाज़ी के वैसा-का-वैसा कह दिया और यही मेरी किताब की सबसे बड़ी खासियत है। मेरे लिखे को अगर सत्तर साल का कोई बुज़ुर्ग पढ़े या सत्रह साल का नौजवान, उसे लगेगा कि ये तो उसकी ही बात है, जो वो नहीं कह पा रहा था और मैंने कह दी। इस किताब में जो रंग हैं, उनमें सबसे गाढ़ा रंग इश़्कका है। इश़्क जिसमें मिलन का निमंत्रण है, मिल जाने का उल्लास है, बिछड़ने का दर्द है, क्रोध है, नाराज़गी है, यादों की टीस है, फिर से मिलने की उम्मीद है और फिर सबकुछ भुलाकर इश़्क को वैराग्य की ओर ले जाने का रास्ता है। ये रंग हर किसी की इश्क़िया शायरी या कविताओं में होते हैं, लेकिन ये औरों से अलग इसलिए हैं, क्योंकि इनमें हर उम्र, हर दौर के व्यक्ति को अपना इश़्क याद आता है—वो भी बहुत सरल और सहज शब्दों में। ये विविधता भरे रंग ही हैं, जो इस किताब को अलग आयाम देते हैं। गागर में सागर उँड़ेला है, जिसकी हर बूँद हर किसी को भिगो जाती है। बाज़ार की शर्तें समझता हूँ, लेकिन यकीन दिलाता हूँ कि मेरा लेखन उन  सभी शर्तों पर खरा उतरने की काबिलियत रखता है।अनुक्रम   भूमिका : कबीरी-कवि — 4 55. एक शाम फिर से उधार दे दो — 76 लेखक की क़लम से — 7 56. क़रार — 77 1. सुनो — 15 57. कल — 78 2. शैतान — 16 58. खैर, तुम अपनी कहो — 79 3. वो — 17 59. टीस — 80 4. लेकिन — 19 60. मुहबत — 81 5. दीवाने — 20 61. पा — 82 6. देखो तो — 21 62. सैराब — 83 7. बस — 22 63. पहाड़ी गुलाब — 85 8. मुश्किल — 23 64. हार-जीत — 87 9. यूँ ही — 24 65. नम मौसम — 88 10. तुम जो आए तो — 25 66. तलाश — 89 11. किसलिए — 26 67. आवारगी — 90 12. ख़याल — 27 68. इश्क — 91 13. क्या — 28 69. कब — 92 14. ख़ता — 29 70. कैसा गिला — 93 15. खामखाँ — 30 71. सो जाती हो — 94 16. ख़ैर — 31 72. आओ तो सही — 96 17. ख़्वाब वाली लड़की — 33 73. इल्तिज़ा — 97 18. गुलज़ार — 34 74. गीत — 99 19. क़यामत — 35 75. अलबेली — 100 20. अना — 36 76. किताबें — 101 21. अधूरी नज़्म — 37 77. अजीब श़स — 102 22. अच्छा आदमी — 38 78. मन — 103 23. दायरे — 39 79. तुम्हारी गली — 105 24. दुआ — 40 80. सरमाया — 107 25. जुगनू — 41 81. मिट्टी — 109 26. असर — 42 82. जीवन — 110 27. ख़्वाब था शायद — 43 83. परछाईं — 112 28. कौन हैं वो — 44 84. बंजर रिश्ते — 113 29. उमस — 45 85. ओ बाबा — 115 30. चले गए — 46 86. गुलाब — 116 31. चाहत — 47 87. महबूब — 117 32. ज़िंदगी — 48 88. खुशबू — 118 33. वो लम्हे — 49 89. अंजाम — 119 34. वहम — 50 90. हो कि नहीं — 120 35. यार मेरे — 51 91. खोटा सिका — 121 36. मोक्ष — 52 92. एक आस — 122 37. मेरे जैसे हो तुम — 53 93. शायद — 123 38. तुम्हारे लिए — 55 94. दाँव — 124 39. तुमसे या — 56 95. फ़ासले — 125 40. सि़फर — 57 96. शिकायत — 126 41. तुम रूठे तो — 59 97. जीने दो — 127 42. भुला न सकोगे — 61 98. जज़्ब — 128 43. याद रखना — 62 99. छोड़ दिया — 129 44. बस यूँ ही — 63 100. कुमकुम — 130 45. फिर मिलूँगा — 64 101. अलविदा — 131 46. आना कभी — 66 102. अधूरी क़सम — 132 47. यहाँ की बात — 67 103. मज़री — 133 48. यूँ ही एक रोज़ — 68 104. शुक्रिया — 134 49. हार — 69 105. उम्र — 135 50. वो रात — 70 106. तुम्हारी दुनिया — 137 51. टुकड़े — 72 107. या बताएँ — 139 52. ज़रा सा — 73 108. एहसास — 141 53. इश्क प्रीमियर लीग — 74 109. धनक — 142 54. उदास सर्दियाँ — 75 110. पुकार — 143

कविता - Chand Tum Gawah Rahna

Chand Tum Gawah Rahna - by - Prabhat Prakashan

Chand Tum Gawah Rahna - सोलह बरस के पत्रकारिता कॅरियर और छत्तीस बरस की ज़िंदगी के स़फर में जो रंग देखे, उन्हें बस कह दिया, ताकि यहाँ की बातें यहीं कहता चलूँ और जाते व़क्त दिल पर कोई बोझ न हो। जो कहा, वो रत्ती भर भी काल्पनिक नहीं है, सब देखा, सुना और महसूस किया और बिना किसी ल़फ़़्फाज़ी के वैसा-का-वैसा कह दिया और यही मेरी किताब की सबसे बड़ी खासियत है। मेरे लिखे को अगर सत्तर साल का कोई बुज़ुर्ग पढ़े या सत्रह साल का नौजवान, उसे लगेगा कि ये तो उसकी ही बात है, जो वो नहीं कह पा रहा था और मैंने कह दी। इस किताब में जो रंग हैं, उनमें सबसे गाढ़ा रंग इश़्कका है। इश़्क जिसमें मिलन का निमंत्रण है, मिल जाने का उल्लास है, बिछड़ने का दर्द है, क्रोध है, नाराज़गी है, यादों की टीस है, फिर से मिलने की उम्मीद है और फिर सबकुछ भुलाकर इश़्क को वैराग्य की ओर ले जाने का रास्ता है। ये रंग हर किसी की इश्क़िया शायरी या कविताओं में होते हैं, लेकिन ये औरों से अलग इसलिए हैं, क्योंकि इनमें हर उम्र, हर दौर के व्यक्ति को अपना इश़्क याद आता है—वो भी बहुत सरल और सहज शब्दों में। ये विविधता भरे रंग ही हैं, जो इस किताब को अलग आयाम देते हैं। गागर में सागर उँड़ेला है, जिसकी हर बूँद हर किसी को भिगो जाती है। बाज़ार की शर्तें समझता हूँ, लेकिन यकीन दिलाता हूँ कि मेरा लेखन उन  सभी शर्तों पर खरा उतरने की काबिलियत रखता है।अनुक्रम   भूमिका : कबीरी-कवि — 4 55.

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  • Stock: 10
  • Model: PP762
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP762
  • ISBN: 9789386300669
  • ISBN: 9789386300669
  • Total Pages: 144
  • Edition: Edition 1
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2017
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00