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कविता - Bheegi Ret

कविता - Bheegi Ret
हर लहर से पनपती बनती-बिगड़ती परछाइयाँ बहती हुई खुशियाँ या फिर सिमटी हुई तनहाइयाँ कभी लम्हों से झाँकते वो हँसी के हसीं झरोखे कभी खुद से ही छुपाते खुद होंठों से आँसू रोके कभी दिलरुबा का हाथ पकड़ा तो कभी माँ की उँगली थामी कभी दोस्तों से वो झगड़ा तो कभी चुपके से भरी हामी कभी सवाल बने समंदर तो कभी जवाब हुआ आसमान कभी दिल गया भँवर में तो कभी चूर हुआ अभिमान कभी सपने थे व़फा के तो कभी ज़फा से थे काँटे कभी कमज़र्फ हुई धड़कन तो कभी सबकुछ ही अपना बाँटे कभी बिन माँगे मिला सब तो कभी माँग के भी झोली खाली कभी भगवान् ही था सबकुछ तो कभी आस्था को दी गाली कभी सबकुछ था पास खुद के पर दूसरों पर नज़र थी कभी सबकुछ ही था खोया फिर भी नींद बे़खबर थी कभी ख्वाब ही थे दुनिया तो कभी टूटे थे सारे सपनेकभी अपने बने पराये तो कभी पराये बने थे अपने धड़कता हुआ कोई दिल था या फिर सोया हुआ ज़मीर फाके था रोज ही का या था बिगड़ा हुआ अमीर आँखें पढ़ी थीं सबकी और पढ़े थे सभी के चेहरे कभी किनारे पे खड़े वो कभी पाँव धँसे थे गहरे हज़ारों को उसने देखा ठहरते और गुज़रते कभी मर-मर के जीते देखा कभी जी-जी के देखा मरते हर इनसान के कदमों के गहरे या हलके निशान हर निशान में महकती किसी श़ख्स की पहचान कभी ढलकते आँसू तो कभी इश़्क की रवानी कभी मासूमियत के लम्हे तो कभी तबीयत वो रूहानी कहीं नाराज़गी किसी से तो कभी यादें वो सुहानी बचपन था किसी का था बुढ़ापा या थी जवानी न मिटेगी कभी भी किसी पल की भी निशानी सहेजी है उन सभी की भीगी रेत ने कहानी!अनुक्रम क़रीब —Pgs. 145 भूमिका  : श्री लालकृष्ण आडवाणी —Pgs. 7 इजाज़त —Pgs. 147 कविता   : श्री हरिवंशराय बच्चन —Pgs. 9 फ़ना —Pgs. 149 माँ —Pgs. 13 मेरी पहचान  —Pgs. 151 शपथ —Pgs. 21 मैं फिर भी मुसकराता हूँ  —Pgs. 153 अवसान  —Pgs. 22 दिल मेरा करता है  —Pgs. 155 तुम कौन हो ?  —Pgs. 24 मक़सद  —Pgs. 157 अधिकार —Pgs. 27 इम्तिहान —Pgs. 159 सत्य  —Pgs. 29 एक बार फिर से —Pgs. 161 है ये कैसा विश्वास —Pgs. 31 फ़लसफ़ा —Pgs. 163 जीवन सिंधु  —Pgs. 33 कोंपल —Pgs. 165 झंझावात —Pgs. 35 कुछ तो बात होगी —Pgs. 167 प्रश्न —Pgs. 37 ग़ुर्बत —Pgs. 169 अभिलाषा —Pgs. 39 हर सहर —Pgs. 171 मूल्य —Pgs. 41 हिसाब —Pgs. 173 अनुभूति  —Pgs. 45 दिल्लगी —Pgs. 175 एक और पत्ता टूटा है  —Pgs. 46 अब तो आ जाओ तुम  —Pgs. 177 नियति —Pgs. 48 इशारा  —Pgs. 179 मिथ्या —Pgs. 51 किरदार  —Pgs. 181 बारिश —Pgs. 55 जुदाई  —Pgs. 183 माँ कहती है  —Pgs. 56 इश्क़िया  —Pgs. 185 आओ अँधेरे मिटाएँ  —Pgs. 59 तो ग़ज़ल होती है  —Pgs. 187 दीया मेरा जलता रहा —Pgs. 63 फ़ासले  —Pgs. 189 गुनाह  —Pgs. 64 क़िस्मत —Pgs. 191 इंद्रधनुष  —Pgs. 67 ज़िंदगी की बात थी  —Pgs. 193 बात  —Pgs. 69 तेरे-मेरे दरमियाँ  —Pgs. 195 प्रभु “कर” लेते हैं —Pgs. 71 किनारा  —Pgs. 197 नित्य —Pgs. 74 अब  —Pgs. 199 मैं औरत हूँ —Pgs. 76 तुझे प्यार किया  —Pgs. 201 नया वर्ष  —Pgs. 81 ख़्वाहिश —Pgs. 203 तारा —Pgs. 83 सियासत  —Pgs. 205 हथेली —Pgs. 87 इरादा  —Pgs. 207 महक —Pgs. 89 अहसान  —Pgs. 209 वो —Pgs. 93 तू और मैं  —Pgs. 211 मेरी किताब के पन्ने —Pgs. 95 नसीब —Pgs. 213 फिर भी... 99 इशारा —Pgs. 215 एक दिल ही है —Pgs. 101 टूटा तारा —Pgs. 217 ख़याल  —Pgs. 105 सौग़ात —Pgs. 219 हम सब की ज़िंदगी —Pgs. 106 ममता  —Pgs. 221 सीख —Pgs. 108 चुपके से —Pgs. 223 तलाश —Pgs. 110 जवाब —Pgs. 225 यादें... —Pgs. 113 साँसों का साज़   —Pgs. 227 मेरे मरने के बाद —Pgs. 115 बहाना —Pgs. 229 मंज़र —Pgs. 116 अंदाज़ —Pgs. 231 सर्दियों की बारिश —Pgs. 119 गुलज़ार —Pgs. 233 तेरे बिन  —Pgs. 121 तू —Pgs. 235 सोचता हूँ —Pgs. 122 क़रार —Pgs. 237 हसरतें —Pgs. 124 सबके लिए —Pgs. 239 अधूरी बात —Pgs. 126 मैंने ख़ुशी पाई है —Pgs. 241 उम्मीद —Pgs. 129 हालात —Pgs. 243 मुसाफ़िर  —Pgs. 131 तुझे कैसे बताऊँ मैं? —Pgs. 245 एक सूना अहसास  —Pgs. 132 इश्क़  —Pgs. 247 चेतना —Pgs. 134 यक़ीं —Pgs. 249 नई दुनिया —Pgs. 137 अरमान —Pgs. 251 धड़कन —Pgs. 139 तुम —Pgs. 252 मेरे मौला —Pgs. 141 Anto eatione stotatia apis उनसे कह दो  —Pgs. 143  

कविता - Bheegi Ret

Bheegi Ret - by - Prabhat Prakashan

Bheegi Ret - हर लहर से पनपती बनती-बिगड़ती परछाइयाँ बहती हुई खुशियाँ या फिर सिमटी हुई तनहाइयाँ कभी लम्हों से झाँकते वो हँसी के हसीं झरोखे कभी खुद से ही छुपाते खुद होंठों से आँसू रोके कभी दिलरुबा का हाथ पकड़ा तो कभी माँ की उँगली थामी कभी दोस्तों से वो झगड़ा तो कभी चुपके से भरी हामी कभी सवाल बने समंदर तो कभी जवाब हुआ आसमान कभी दिल गया भँवर में तो कभी चूर हुआ अभिमान कभी सपने थे व़फा के तो कभी ज़फा से थे काँटे कभी कमज़र्फ हुई धड़कन तो कभी सबकुछ ही अपना बाँटे कभी बिन माँगे मिला सब तो कभी माँग के भी झोली खाली कभी भगवान् ही था सबकुछ तो कभी आस्था को दी गाली कभी सबकुछ था पास खुद के पर दूसरों पर नज़र थी कभी सबकुछ ही था खोया फिर भी नींद बे़खबर थी कभी ख्वाब ही थे दुनिया तो कभी टूटे थे सारे सपनेकभी अपने बने पराये तो कभी पराये बने थे अपने धड़कता हुआ कोई दिल था या फिर सोया हुआ ज़मीर फाके था रोज ही का या था बिगड़ा हुआ अमीर आँखें पढ़ी थीं सबकी और पढ़े थे सभी के चेहरे कभी किनारे पे खड़े वो कभी पाँव धँसे थे गहरे हज़ारों को उसने देखा ठहरते और गुज़रते कभी मर-मर के जीते देखा कभी जी-जी के देखा मरते हर इनसान के कदमों के गहरे या हलके निशान हर निशान में महकती किसी श़ख्स की पहचान कभी ढलकते आँसू तो कभी इश़्क की रवानी कभी मासूमियत के लम्हे तो कभी तबीयत वो रूहानी कहीं नाराज़गी किसी से तो कभी यादें वो सुहानी बचपन था किसी का था बुढ़ापा या थी जवानी न मिटेगी कभी भी किसी पल की भी निशानी सहेजी है उन सभी की भीगी रेत ने कहानी!

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  • Stock: 10
  • Model: PP770
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP770
  • ISBN: 9789353222178
  • ISBN: 9789353222178
  • Total Pages: 256
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2019
₹ 750.00
Ex Tax: ₹ 750.00