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उपन्यास

उपन्यास
‘‘कौन जानता है, भविष्य में हमारे लिए क्या लिखा है!’’ रिया ने कहा। मैं उसके अंतिम वाक्य से कुछ हैरान हो गया था। मुझे तो लगा था, हमने अपने भविष्य के बारे में निर्णय पहले ही ले  लिया है। एक मध्य वर्गीय परिवार से आया पंकज समझता है कि उसके जीवन की दिशा निर्धारित हो चुकी है—इंजीनियरिंग की डिग्री लेना, ..
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इंस्पेक्टर रंजीता नामक यह पुस्तक 20 ऐसी कहानियों का संग्रह है, जिसमें रोमांच है, रहस्य है। ये सारी कहानियाँ एक ऐसी पुलिस अधिकारी से गहरा संबंध रखती हैं, जोकि एक खूबसूरत युवती है। वह अपनी सूझबूझ से जटिलतम पुलिस प्रकरणों की विवेचना कर सुलझा लेती है।  ये सारी ऐसी कहानियाँ हैं, जो वर्तमान आधुनिक समाज म..
₹ 250.00
Ex Tax:₹ 250.00
इतिहास का प्रत्यक्ष उत्थान-पतन राष्ट्र की गति है। कभी यह पिछड़ जाता है, कभी उपयुक्त नेता का नेतृत्व पाकर प्रगति करता है। लेखक ने अपने मोटे-मोटे उपन्यासों में इतिहास के भाग्यविधाता की अमोघ लीला का ही वर्णन किया है। उन्होंने यही दिखाया है कि नाव जब तक पानी के ऊपर है, विपदा नहीं है। नाव के ऊपर पानी आने..
₹ 500.00
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बँगला में सुविख्यात यह उपन्यास उन लोगों की व्यथा-कथा है, जिनकी जन्मभूमि तो विदेश है, लेकिन मातृभूमि भारत है। वहाँ जनमे बच्चों की समस्याएँ कुछ अलग हैं। अपनी जड़ों से उखड़कर विदेश में जा बसे बच्चों के सामने एक ओर तो विदेशों का स्थूल आकर्षण, वहाँ का वातावरण, वहाँ की संस्कृति व परंपराएँ उन पर अपना प्रभा..
₹ 200.00
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जीवन सरल है’ पुस्तक की विशेषता है इसकी पठनीयता। यह सीधी-सरल भाषा एवं बोलचाल की शैली में लिखी गई पुस्तक है। एक युवक रोहित की कहानी के माध्यम से धारणाएँ प्रस्तुत की गई हैं—किस प्रकार इन धारणाओं से प्रभावित हो उसका आध्यात्मिक विकास होता है। अनेक कहानियों व हास्य कथाओं के समायोजन से पुस्तक का विषय रोचक ..
₹ 350.00
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ऐसा कहा जाता रहा है कि संविधान की पाँचवीं अनुसूची आदिवासियों के लिए उनका धर्मग्रंथ है, जिसके प्रति उनकी आस्था है, उनकी श्रद्धा है। यह धर्मग्रंथ उनके जीने की आशा है, उनका स्वर्णिम भविष्य है। लेकिन संविधान रूपी इस धर्मग्रंथ के प्रति अब आस्था टूट रही है और उनकी श्रद्धा कम हो रही है। अब यह आस्था बनाए रख..
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जून की तपती दोपहरी में नंगे नन्हे पैर जब ट्रेन की पटरियों के किनारे पड़े गरम पत्थरों पर चिलचिलाती धूप में जिला कारागार तक अपने पिता से मिलने उछलते चले जाते हैं तो आपातकाल की छुपी हुई अकथ भोगी हुई कहानी बूँद-बूँद स्मृतियों में आ जाती है। ‘झुकना मत’ उपन्यास न केवल काल और कला की दृष्टि से वरन् लोक-अनु..
₹ 300.00
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पुलिसवाले ने अपनी दकनी उर्दू में कहा, ‘‘आप लोकां बड़े ऊँचे हाकिमान हैं तो इस प्राइवेट कार में क्या करता मियाँ? पाइलट लोकां तो सरकारी गाड़ी में तकरीबन घंटा भर पहले गए। अब जरा तकलीफ करके नीचे उतर आओ। तुम्हारी पूरी दास्तान फुरसत से थाने में सुनेंगे।’’ मैंने बहुत समझाया, पर बात इस मुद्दे पर खत्म हुई कि ..
₹ 400.00
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वैसे तो एक दार्शनिक प्रश्न के अनेक जवाब हो सकते थे। विज्ञान एवं दर्शन में यही तो अंतर है। दर्शनशास्त्र में कहीं दो-दो चार  ही होते हैं तो कहीं पाँच भी हो सकते हैं या  मात्र तीन।जब टाँगें कटी हों तो अन्य अंगों की सुडौलता की क्या जरूरत। आने-जानेवालों की निगाहें तो अभावग्रस्त स्थान से ही जा टकराएँग..
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‘हिंदुत्व’ का विराट् स्वर उनकी आत्मा की पोर-पोर में निनादित था। वह हिंदुत्व, जो केवल नीति नहीं, जीवन-सत्य है। वह हिंदुत्व, जो आवरण मात्र नहीं, विशुद्घ अध्यात्म है, सचेतन भारतीय-दर्शन है। मन हिमवान हो, आत्मा समुन्नत कैलास-शिखर हो, अनुभूतियाँ क्षीर सागर सी तरंगायित हों तो मनुष्य अपने उदात्त अभियान से..
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मैं समाज सेविका बनी थी; पर इसलिए नहीं कि मुझे समाज के उत्‍‍थान की चिंता थी । इसलिए भी नहीं मैं शोषितों, पीड़‌ितों और अभावग्रस्त लोगों का मसीहा बनाना चाहती थी । यह सब नाटक रूप मे हा प्रारंभ हुआ था । मेरे पीछे एक डायरेक्टर था स्टेज का । वही प्रांप्टर भी था । उसीके बोले डायलॉग मैं बोलती । उसीकी दी हुई ..
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यों तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर औरत सुरक्षित नहीं है, पर जब मासूम बचपन देह व्यवसाय के घिनौने सौदागरों के हाथ में पड़कर दम तोड़ता है, तो निस्संदेह समूचा परिदृश्य गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती उषा यादव का मानना है कि देह शोषण की शिकार बच्चियों की व्यथा-कथा को बयान करना भी..
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