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उपन्यास - Kadachit

उपन्यास - Kadachit
मैं समाज सेविका बनी थी; पर इसलिए नहीं कि मुझे समाज के उत्‍‍थान की चिंता थी । इसलिए भी नहीं मैं शोषितों, पीड़‌ितों और अभावग्रस्त लोगों का मसीहा बनाना चाहती थी । यह सब नाटक रूप मे हा प्रारंभ हुआ था । मेरे पीछे एक डायरेक्टर था स्टेज का । वही प्रांप्टर भी था । उसीके बोले डायलॉग मैं बोलती । उसीकी दी हुई भूमिका मैं निभाती । उसीका बनाया हुआ चरित्र करती थी मैं । कुछ सुविधाओं, कुछ महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मैंने यह भूमिका स्वीकार की थी । फिर अभिनय करते-करते मैं कोई पात्र नहीं रह गई थी । मेरा और उस पात्र का अंतर मिट चुका था । अब सचमुच ही अभावग्रस्तों की पीड़ा मेरी निजी पीड़ा बन चुकी है । और मेरा यह परिवर्तन ही मेरे डायरेक्टर को नहीं सुहाता । ' ' पर यह डायरेक्टर है कौन?' ' मेरे गुरु, राजनीतिक गुरु!' - इसी उपन्यास से ' त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं ' की तोता रटंत करनेवाले समाज ने क्या कभी पुरुष- चरित्र का खुली आँखों विश्‍लेषण किया है? किया होता तो तंदूर कांड होते? अपनी पत्‍नी की हत्या करके मगरमच्छों के आगे डालना तथा न्याय के मंदिर में असहाय और शरणागत अबला से कानून के रक्षक द्वारा बलात्कार करना पुरुष-चरित्र के किस धवल पक्ष को प्रदर्शित करता है? स्त्री-जीवन के समग्र पक्ष को जिस नूतन दृष्‍ट‌ि से भिक्‍खुजी ने ' कदाचित् ' के माध्यम से उकेरा है, उस दृष्‍ट‌ि से शायद ही किसी लेखक ने उकेरा हो । शिल्प, भाषा और शैली की दृष्‍ट‌ि से भी अन्यतम कृति है ' कदाचित् ' ।

उपन्यास - Kadachit

Kadachit - by - Prabhat Prakashan

Kadachit - मैं समाज सेविका बनी थी; पर इसलिए नहीं कि मुझे समाज के उत्‍‍थान की चिंता थी । इसलिए भी नहीं मैं शोषितों, पीड़‌ितों और अभावग्रस्त लोगों का मसीहा बनाना चाहती थी । यह सब नाटक रूप मे हा प्रारंभ हुआ था । मेरे पीछे एक डायरेक्टर था स्टेज का । वही प्रांप्टर भी था । उसीके बोले डायलॉग मैं बोलती । उसीकी दी हुई भूमिका मैं निभाती । उसीका बनाया हुआ चरित्र करती थी मैं । कुछ सुविधाओं, कुछ महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मैंने यह भूमिका स्वीकार की थी । फिर अभिनय करते-करते मैं कोई पात्र नहीं रह गई थी । मेरा और उस पात्र का अंतर मिट चुका था । अब सचमुच ही अभावग्रस्तों की पीड़ा मेरी निजी पीड़ा बन चुकी है । और मेरा यह परिवर्तन ही मेरे डायरेक्टर को नहीं सुहाता । ' ' पर यह डायरेक्टर है कौन?

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  • Stock: 10
  • Model: PP588
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP588
  • ISBN: 9788185829562
  • ISBN: 9788185829562
  • Total Pages: 232
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2016
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00