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उपन्यास

उपन्यास
"असंगतियाँ जब जीवन और समाज में स्थान और अधिकार पाने लगें, विडंबनाएँ जब दिखती हुई होकर भी पकड़ में नहीं आएँ, अन्याय जब परंपराएँ बनाने लगें, दुःख जब अपने प्रतिरोध के उपायों से वंचित किए जाएँ, जब व्यवस्था अपने विद्रूप में ही स्थापित हो ले, तब बनता है व्यंग्य।...व्यंग्य का एक बड़ा पाठक-वर्ग है, एक बड़ा ..
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गुड़ की डली, सूप, चँगेरी, अरबी, नारियल इत्यादि विविध प्रकार की चीजें गाड़ी पर लदी थीं। फटिकदा उन चीजों को उतरवाने में व्यस्त थे। फिर भी बोले, ‘‘वसूली का काम कैसा चल रहा है, भाई?’’ एक पल चुप्पी साधने के बाद फिर बोले, ‘‘लगता है, प्रातः भ्रमण को निकल रहे हो?’’ ‘‘नहीं’’, मैंने कहा, ‘‘नीरू भाभी की एक च..
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कैंसर को मात करने के बाद मेरी दीर्घायु की कामना करते हुए अटलजी ने कहा, ‘‘सोचो, आप मृत्यु के द्वार से क्यों वापस आए हो? आपने वैभवशाली, संपन्न भारत का सपना देखा है। वह महान् कार्य करने के लिए ही मानो आपने पुनर्जन्म लिया है।’’ मैंने भी उनसे वादा किया कि ‘पुनश्च हरि ओम’ कर रहा हूँ।  विधाता ने जो आयु मुझ..
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मेरा अनुभव है कि लोक भाषाओं में यथार्थ-चित्रण की जो क्षमता है, वह हिंदी या खड़ी बोली में कभी नहीं हो सकती। संतोष की बात यह है कि हिंदी की सारी बोलियाँ उसी की अंग हैं और बोलियों का साहित्य हिंदी के साहित्य को ही समृद्ध करता है। संतोष की बात यह भी है कि जिस भोजपुरी का क्षेत्र हिंदी की बोलियों में सबसे..
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जिनकी जेब में सिक्के थे,  वो मज़े से भीगते रहे बारिश में ... जिनकी जेब में नोट थे,  वो छत तलाशते रहे ...ये लाइनें जब लिखी थीं, तब जानता नहीं था कि इतनी पसंद की जाएँगी कि सोशल मीडिया के ज़रिए हर मोबाइल तक पहुँच जाएँगी। मैंने सोशल साइट ट्विटर का हाथ तब थामा था, जब ज़िंदगी में बहुत कुछ पीछे छूट गया ..
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कादंबरी मेहरा की कहानियों का यह नया संग्रह एक बार फिर पाठकों के समक्ष, वास्तविक जीवन से उठाई गई आम आदमी की समस्याओं व उन्हें झेलनेवाले स्त्री-पुरुष पात्रों को उनके मूल स्वरूप में प्रस्तुत करता है। जागरूक व शिक्षित भारत में अभी भी पत्नी ‘चिर पराई’ है, विधवा को ‘दूसरी बार’ जीवनसंगिनी बना लेने में समा..
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हिंदी फिल्में अब इतनी लोकप्रिय हो गई हैं और जीवन का अहम हिस्सा बन गई हैं कि पत्र-पत्रिकाओं में इन्हें खूब जगह मिलती है। दरअसल कृषि-प्रधान भारत जाने कैसे फिल्ममय भारत हो गया है। हमारी रोजमर्रा की भाषा में भी फिल्म के शब्द व मुहावरे आ गए हैं, जैसे किसी भी घटना का हिट या फ्लॉप होना या अस्पताल में उम्रद..
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दहलीज़ पार में मैंने अपने समाज की जीव-कोशिका में जमी बैठी नर-नारी के रिश्तों के असंतुलन को प्रदर्शित किया है। कुछ कहानियाँ तो अपने आसपास से सुनी ध्वनि मात्र से उपजी हैं और कुछ अपनी लंबी जीवन-यात्रा के अनुभव से जुड़ी हैं। लगभग सभी में स्‍‍त्री का निम्न व घटिया स्तर खुलेआम घटित दिखता है। उदाहरण के तौर..
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प्रत्यक्ष की अनुभूति करने का एक प्रयास है ‘दर्शन’। समाज में युवाओं के उलझी और बेमानी जीवन शैली में अध्यात्म के सहारे जीवन में सरलता लाने का एक आह्वान है। ईश्वर के सतरंगी रूप को हमारे दैनिक कार्यों में देखती रचनाएँ प्रेम और समर्पण को अर्पित हैं, जो भावों को शैलीविशेष में न बाँधकर नवीनता के साथ भक्ति ..
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किसी महान् संतान के आविर्भाव से पूरा वंश पवित्र हो जाता है, जननी कृतार्थ हो उठती है, वसुंधरा पुण्यवती हो आती है—यह वाणी परम सत्य वाणी है। उस पुण्य-संचय से यह पृथ्वी ढेरों पाप वहन करने के बावजूद सही-सलामत है।मातृभक्‍त संतान की सर्वत्र जय निश्‍चित है। किसी भी महान् जीवन की बुनियाद खोजें, तो जड़ों में ..
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सूर्यकांत बाली का यह उपन्यास वैदिक प्रेमकथा पर आधारित है। वैदिक काल के कथानकों को उपन्यासों के माध्यम से पाठकों तक सशक्त और अत्यंत आकर्षक शैली में पहुँचाने वाले श्री बाली हिंदी ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं के पहले उपन्यासकार के रूप में उभरकर हमारे सामने आए हैं। प्रस्तुत उपन्यास महत्त्वपूर्ण वैदिक कव..
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तिब्बत की सांस्कृतिक मृत्यु पर भारत चुप नहीं रह सकता। पूरा विश्‍व मानवाधिकार हनन के प्रश्‍न पर मौन नहीं रह सकता। ये दोनों ही बिंदु तिब्बत आंदोलन को बल प्रदान करते हैं। भारत सरकार क्या सोचती है, यदि इस प्रश्‍न को एक ओर रख दिया जाए तो इतना स्पष्‍ट है कि पूरा हिंदुस्तान यह सोचता है कि तिब्बत की स्वतंत्..
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