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Culture - Ram Kattha

Culture - Ram Kattha
आदिवासियों की कुडुख बोली की यह 'राम कत्था' उनके अपने जीवन, समाज, संस्कृति और वर्तमान तथा भविष्य की कथा है। यह उनकी अपनी सृष्टि को रचने और उसमें बसने की भी कथा है। इस पुस्तक की रामकथा वही रामकथा है जो गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरितमानस' की रही है। बस अन्तर यह कि गोस्वामी जी ने तो रामकथा एक ही बार लिखी, पर इस जगत् के लोगों ने उसे अपने युग में अपनी- अपनी भाषा-बोली में बार-बार लिखा, और अब भी लिख रहे हैं। यह एक कृति की जन से जुड़ने की बड़ी सफलता होती है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने कर दिखाया था। ज़ाहिर-सी बात है कि इस कथा में सबकी कथा थी और इस कथा की व्यथा में सबकी व्यथा, तभी तो यह कथा गाथा बनी और बनती रही है। हमें इस रूप में भी इस पुस्तक को देखना चाहिए कि इसी कथा में राम के साथ युद्ध में शामिल वे ही लोग थे, जो वानर, भालू, गिद्ध आदि जनजातियों के रूप में हाशिए की दुनिया के थे, और जिनके बल पर जीत हासिल करते हैं राम। यह पुस्तक एक पुस्तक ही नहीं, जनजातियों की तरफ़ से एक हस्तक्षेप भी है।

Culture - Ram Kattha

Ram Kattha - by - Lokbharti Prakashan

Ram Kattha -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP3684
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP3684
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 116p
  • Edition: 2014, Ed. 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2014
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00