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देखते हम सब हैं, लेकिन देखने की कला सीखने और अभ्यास का विषय है। आज का जीवन कुछ ऐसा है कि वस्तुएँ, रंग और स्थितियाँ एक भागमभाग में हमारी आँखों के सामने आती हैं, और इससे पहले कि हम उन्हें 'देख' सकें, लुप्त भी हो जाती हैं; न तो हम उन चीजों से, उनके फैलाव से, उनकी वास्तविकता से परिचित हो पाते हैं, और न ..
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सैयद हैदर रज़ा को आधुनिक भारतीय चित्रकला का एक मूर्धन्य माना जाता है। आधी सदी से अधिक से पेरिस में रह रहे रज़ा का जन्म मध्य प्रदेश के एक जंगली इलाक़े में साधारण परिवार में हुआ था और वे कठिन संघर्ष और साधना से एक उज्ज्वल-उदात्त और विश्व स्तर के मुक़ाम पर पहुँचे थे। यह गाथा है साधारण की महिमा की, मटमै..
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प्रस्तुत पुस्तक ‘भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त इतिहास’ उसके पुराने कलेवर ‘भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त परिचय’ का सर्वथा नवीन और मौलिक रूप है। उसमें इस नाममात्र का ही नवीनीकरण नहीं किया गया है, अपितु विषय-सामग्री के आमूल परिवर्तन द्वारा उसको अधिकाधिक ग्राह्य एवं उपादेय बनाने का भी यथासम्भव प्रयत्न किय..
₹ 295.00
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कला संस्कृति की वाहिका है। भारतीय संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय एवं रसात्मक तत्त्व उसके कला-रूपों में प्रकट हुए हैं। कला का प्राण है रसात्मकता। रस अथवा आनन्द अथवा आस्वाद्य हमें स्थूल से चेतन सत्ता तक एकरूप कर देता है। मानवीय सम्बन्धों और स्थितियों की विविध भावलीलाओं और उसके माध्यम से च..
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मुकुन्द लाठ भारत के उन बहुत थोड़े लेखकों में से एक हैं जिनके यहाँ साहित्य और कलाओं को लेकर ऐसी गहरी और सूक्ष्म दृष्टि है जो प्राचीन साहित्य और शास्त्र, दर्शन और चिन्तन, संगीत और नाट्य, कविता, परम्परा और आधुनिकता आदि सबको एक संग्रथित समावेश में शामिल कर रूपायित होती रही है। वह परम्परा से जैसे कि आधुन..
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भूपेन पर पहली किताब महेन्द्र देसाई ने लिखी। गाढ़े दोस्त थे भूपेन और महेन्द्र। लिखनेवाला हो महेन्द्र जैसा औघड़, और लिखा जा रहा हो भूपेन जैसे खिलन्दड़े और उसकी कला पर तो किताब असामान्य होनी ही थी। हुई। विलक्षण, मस्त, अपने विषय की आत्मा में प्रवेश करने को आतुर और, उसी कारण, अपनी विश्वसनीयता के प्रति ला..
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भारतीय भाषाओं में कला-आलोचना के अभाव को किसी हद तक सुधाकर यादव की 'चित्रमय भारत’ दूर करने का एक ऐसा विस्तृत प्रयास है जो अब तक नहीं हुआ है। ...पाठक लक्ष्य करेंगे कि 'चित्रमय भारत’ में आधुनिक नागर चित्रकारों की कला को तो विषय बनाया ही गया है, पर साथ में हमारे आदिवासी अंचलों में काम कर रहे चित्रकारों ..
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एक चित्रकार की सुचिन्तित दृष्टि जब अपने समकालीन कला-समय पर पड़ती है, तब उससे पैदा होनेवाली एक व्यापक कला अवधारणा के तमाम सारे सीमान्त एकबारगी आलोकित हो उठते हैं। वर्तमान चित्रकला परिदृश्य पर अपने अनूठेपन एवं अमूर्त्तन के लिए समादृत रहे चित्रकार अखिलेश के निबन्धों की यह सारगर्भित अन्विति अपनी बसाहट, क..
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कला और संस्कृति' समय-समय पर लिखे हुए मेरे कुछ निबन्धों का संग्रह है। 'संस्कृति' मानव जीवन की प्रेरक शक्ति और राष्ट्रीय जीवन की आवश्यकता है। वह मानवी जीवन को अध्यात्म प्रेरणा प्रदान करती है। उसे बुद्धि का कुतूहल मात्र नहीं कहा जा सकता। संस्कृति के विषय में भारतीय दृष्टिकोण की इस विशेषता का प्रस्तुत ल..
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‘कला का रास्ता’ में सुपरिचित हिन्दी कवि, कला और फ़िल्म लेखक विनोद भारद्वाज की विगत वर्षों में अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखी गई टिप्पणियों का एक प्रतिनिधि चयन है। ज़ाहिर है, ये टिप्पणियाँ किसी ख़बर, घटना, प्रदर्शनी आदि से जुड़ी हैं। पर इन्हें पढ़ते हुए आधुनिक भारतीय कला के कुछ नए-पुराने नामों ..
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कला-साहित्य-संस्कृति के प्रश्नों पर प्लेखानोव की कृतियों में सर्वोपरि और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं ‘असम्बोधित पात्र’ और ‘कला और सामाजिक जीवन’। कला और साहित्य पर प्लेखानोव की ज़्यादातर कृतियों का मुख्य उद्देश्य कला और इसकी सामाजिक भूमिका को भौतिकवादी दृष्टि से प्रमाणित करना था। इन कृतियों में ‘बेलिस्..
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ऑस्ट्रिया के विश्वविख्यात कवि और आलोचक अंर्स्ट फ़िशर की पुस्तक ‘कला की ज़रूरत’ कला के इतिहास और दर्शन पर मार्क्सवादी दृष्टि से विचार करनेवाली अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है। कला आदिम युग से आज तक मनुष्यों की ज़रूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, पर उन्हें कला की ज़रूरत क्यों होती है? आख़िर वह कौन-सी ब..
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