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Literary Criticism - Dalit Yatharth Aur Hindi Kavita

Literary Criticism - Dalit Yatharth Aur Hindi Kavita
बीसवीं शताब्दी के पूर्व हिन्दी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में दलित हाशिए पर रहा है और एक लंबे समय तक उसका स्वर सुनाई नहीं पड़ा, किंतु बीसवीं सदी के लोकतांत्रिक उभारों ने हाशिएकृत बेजुबान दलितों को भी अपने अधिकारों और आत्मसम्मान के लिए आगे आने का सुअवसर प्रदान किया।हिन्दी में दलित चेतना संबंधी कविताएं बीसवीं सदी के आरंभ से ही मिलने लगती है। राष्ट्रीय जागरण और मुक्ति आंदोलन के प्रभाव में रचे जाने वाले काव्यों में दलित चेतना को विशेष तरजीह मिली है। ठीक उसी समय दलितों ने भी लेखन की शुरुआत की। हिन्दी दलित कविता के मूल में फूले- अंबेडकरी विचारधारा है। फूले-अंबेडकर के विचार से ही दलित कविता लैस है। जिसमें समता, स्वतंत्रता,बंधुत्व और मानवीय प्रेम के विचार बद्धमूल है। समतावादी समाज की स्थापना ही दलित काव्य का मुख्य ध्येय है। दलित कविता एक तरह से विद्रोह की कविता है। अतः इसमें विद्रोहात्मकता का स्वर अधिक ऊंचा है। परंपरा और रूढ़ियों के प्रति नकार, जातिपांति,भेदभाव और ऊंच-नीच का विरोध दलित कविता का मुख्य उपजीव्य है। दलित कविता ने भारतीय समाज में प्रचलित प्राचीन परंपराओं और रूढ़ियों का जमकर विरोध किया है।दलित कविता में इतिहास और संस्कृति के संदर्भ में नयापन है। उसकी सांस्कृतिक चेतना पारंपरिक सांस्कृतिक चेतना से भिन्न है और उनके इतिहास बोध को देखे तो इतिहास में उपेक्षित दलित-पीड़ित पात्रों का गौरवगान है। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी बातों का विवेचन किया गया है।

Literary Criticism - Dalit Yatharth Aur Hindi Kavita

Dalit Yatharth Aur Hindi Kavita - by - Lokbharti Prakashan

Dalit Yatharth Aur Hindi Kavita -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP3820
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP3820
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 199p
  • Edition: 2021, Ed. 1st
  • Book Language: English
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2021
₹ 550.00
Ex Tax: ₹ 550.00