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Literary Criticism - Rag Darbari' Ka Mahatva

Literary Criticism - Rag Darbari' Ka Mahatva
श्रीलाल शुक्ल-कृत ‘राग दरबारी’ एक ऐसा उपन्यास है जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। निसंग और सोद्‌देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिन्दी का शायद यह पहला उपन्यास है। फिर भी ‘राग दरबारी’ व्यंग्य कथा नहीं है। इसका सम्बन्ध एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे हुए गाँवों की ज़िन्दगी से है, जो वर्षों की प्रगति और विकास के नारों के बावजूद निहित स्वार्थों और अवांछनीय तत्त्वों के सामने घिसट रही है।1968 में पहली बार प्रकाशित ‘राग दरबारी’ के विचार और मूल्यांकन की वस्तुपरकता के साथ देखना और परखना आवश्यक है। इस उपन्यास को पूरी तरह समझने के लिए पुस्तक के सभी पक्षों पर लेख बटोरे गए हैं। जिनके माध्यम से ‘राग दरबारी’ समूचे परिवेश में अधिक पूर्णता के साथ समझा जा सकेगा।

Literary Criticism - Rag Darbari' Ka Mahatva

Rag Darbari' Ka Mahatva - by - Lokbharti Prakashan

Rag Darbari' Ka Mahatva -

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  • Stock: 2-3 Days
  • Model: RKP3768
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP3768
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 231p
  • Edition: 2015, Ed. 1st
  • Book Language: English
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2015
₹ 0.00
Ex Tax: ₹ 0.00