Indic - Dalit Sahitya: Ek Moolyankan - Hardbound
दलित समाज की पीड़ा सबसे पहले पन्द्रहवीं-सोलहवीं सदी में भक्तिकाल के सन्तों की रचनाओं में मुखरित हुई और उन्होंने निर्भीकता से समाज में फैली इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की। उस समय के घोर रूढ़िवादी समाज में यह एक बहुत बड़ा साहस और जोखिम से भरा कदम था। उन्नीसवीं सदी में दलित चेतना के स्वर पहले महाराष्ट्र में उठे और फिर बहुत से साहित्यकारों ने दलितों की समस्या से सम्बन्धित उत्कृष्ट रचनाएँ लिखीं जिनसे देश में नई सामाजिक चेतना जागृत हुई। ‘विषैली रोटी’, ‘मैं भंगी हूँ’, ‘अपने-अपने पिंजरे’, ‘जूठन’ आदि पुस्तकों ने दलित समाज की शोचनीय स्थिति की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया है। प्रस्तुत पुस्तक में दलित समाज की पृष्ठभूमि में लिखे हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य का, दलित महिला लेखन का गहन अध्ययन किया गया है।
Indic - Dalit Sahitya: Ek Moolyankan - Hardbound
Dalit Sahitya: Ek Moolyankan - Hardbound - by - Rajpal And Sons
Dalit Sahitya: Ek Moolyankan - Hardbound -
- Stock: 10
- Model: RAJPAL487
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RAJPAL487
- ISBN: 9788170287513
- ISBN: 9788170287513
- Total Pages: 224
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hardbound
- Year: 2014
₹ 295.00
Ex Tax: ₹ 295.00