ऋग्वेद में उल्लेख है ‘भद्रं इच्छन्ति ऋषयः’, ऋषि लोककल्याण की कामना से जीवन जीते हैं। लोकहित के लिए सोचना और कर्म करना यही ऋषि की पहचान है। इसीलिए भारत को ऋषि-परंपरा का देश कहा जाता है। यह उन्हीं ऋषियों का उद्घोष है—सर्वे भवन्तु सुखिनः/सर्वे सन्तु निरामया/सर्वे भद्राणि पश्यन्तु/मा कश्चिद् दुखभाग्भ..
दुनिया के सभी धर्म एक ही दिशा में संकेत करते हैं। पूजा-पद्धतियाँ, धर्म-ग्रन्थ, धार्मिक सिद्धान्त संकेत मात्र हैं, किन्तु हम इन संकेतों को ही धर्म समझ लेते हैं और धर्मों की आन्तरिक एकता को समझ नहीं पाते। पूरी मनुष्य जाति धर्म के इन संकेतों को लेकर विभाजित एवं संघर्षरत है। ये संकेत जिस ओर इशारा करते ह..
“श्री अरविन्द के व्यक्तित्व में योगी, कवि और दार्शनिक, तीनों का समन्वय था और वे सब-के-सब एक ही लक्ष्य की ओर गतिशील थे।...उनके दर्शन और काव्य की जो वास्तविक शक्ति है, उनके भीतर जो प्रामाणिकता है, वह श्री अरविन्द की योगसाधना से आई है। योग के बल से ही उन्होंने सत्य को देखा और योग के बल से ही उन्हें यह ..
‘लोकसाहित्य में राष्ट्रीय चेतना’ एक व्यापक और प्रभावशाली विषय है, साथ ही यह आज की पीढ़ी के लिए अतीत का एक आईना भी है, जिसपर पड़ी हुई गर्द को हटाना अपेक्षित है और अनिवार्य भी।
इस पुस्तक में लोकगीतों में राष्ट्रीय चेतना विविध रूपों में चित्रित है। कहीं तिरंगे झंडे की लहर है, कहीं चरखे का स्वर है, कही..
प्रस्तुत पुस्तक में अपने अस्तित्व स्थापन के लिए सदियों से संघर्षरत नारी और उसकी चेतना के विविध रूपों का चित्रण है। समाज की एक इकाई के रूप में अपनी पहचान की निर्मिति के लिए नारी ने जिस अदम्य जिजीविषा एवं प्रबल इच्छा शक्ति का परिचय दिया, उसका यहाँ खुलकर विश्लेषण किया गया है। भारतीय समाज में परम्परागत ..
प्रस्तुत कृति ‘निराला का गद्य साहित्य और स्वाधीनता की चेतना' उनके मुक्त सर्जक व्यक्तित्व के विश्लेषण का एक मौलिक प्रयास है। मौलिक इस अर्थ में कि अभी तक आलोचक निराला के मुक्तिकामी काव्य व्यक्तित्व का ही विश्लेषण करते हुए उनकी हिन्दी सर्जन विचार के श्रेष्ठतम रचनाकारों की निर्मिति के प्रति ही सजग रहे ह..
राष्ट्रीय चेतना को चुनौती—कुलदीप चंद अग्निहोत्रीभारत और भारतीयता की पहचान को खंडित करने के प्रयास मुहम्मद बिन कासिम के सिंध पर आक्रमण से ही प्रारंभ हो गए थे। सल्तनत एवं मुगल काल के शासकीय प्रयास भी इस दिशा में होते रहे। मतांतरण तो हो ही रहा था, लेकिन इस सब के बावजूद विदेशी इसलामी सत्ता भारतीय समाज ..