‘‘रीतिका खेड़ा की किताब भारी सरकारी प्रचार के साथ सारे देश में लागू की गई विवादित आधार योजना के बारे में एक सामयिक और सटीक दस्तावेज़ है। यह बताती है कि कैसे सर्वोच्च न्यायालय और जानकारों की सलाह की अनदेखी करते हुए सरकार ने आधार कार्ड को फटाफट तमाम सरकारी कल्याण योजनाओं के लाभार्थियों के लिए अनिवार्य..
'हम भयावह रूप से हिंसक समय में रह रहे हैं। हिंसा, हत्या, आतंक, मारपीट, असहिष्णुता, घृणा आदि भीषण दुर्भाग्य से एक नई नागरिक शैली ही बन गए हैं। असहमति की जगह समाज और सार्वजनिक संवाद में तेज़ी से सिकुड़ रही है। हमारे युग में अहिंसा के सबसे बड़े सार्वजनिक प्रयोक्ता महात्मा गाँधी का 150वाँ वर्ष हमने हाल ..
नवोन्मेष तथा सृजनशीलता को अनुवाद का स्वभाव घोषित करनेवाली यह किताब अनुवाद को दो भिन्न समुदायों, राष्ट्रीयताओं और देशों को समझने एवं उनके मत-मतान्तरों को जानने का ज़रूरी औजार मानती है। फलस्वरूप यह अनुवाद को भाषा-संवाद मानने की प्रचलित मान्यता से आगे बढ़कर उसे सभ्यता-संवाद मानने का तर्क रचती है। इसमें ..
यह निबन्ध संकलन बदलते हुए वर्तमान भारत को समझने के लिए एक नई बहुआयामी दृष्टि की खोज में पाठकों को भागीदार बनाता है। डॉ. पूरन चन्द्र जोशी के मत में यदि ‘संकट’ की अवधारणा बदलते भारत को समझने की एक मूल कुंजी है तो ‘अवधारणाओं के संकट’ के रूप में इस संकट की व्याख्या राजनीति, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र के..
चाहे कोई साधारण-सी रोज़मर्रा की बात या घटना हो, लेकिन जब हास्य-व्यंग्यकार अशोक चक्रधर उस पर व्यंग्य की स्याही में डूबी अपनी कलम चलाते हैं तो वही घटना अनूठी और यादगार बन जाती है। जीवन के चमन में से चुनी हुई कुछ ऐसी ही घटनाओं के व्यंग्यात्मक फूल इस पुस्तक में प्रस्तुत हैं।..
चाहे कोई साधारण-सी रोज़मर्रा की बात या घटना हो, लेकिन जब हास्य-व्यंग्यकार अशोक चक्रधर उस पर व्यंग्य की स्याही में डूबी अपनी कलम चलाते हैं तो वही घटना अनूठी और यादगार बन जाती है। जीवन के चमन में से चुनी हुई कुछ ऐसी ही घटनाओं के व्यंग्यात्मक फूल इस पुस्तक में प्रस्तुत हैं।..
संविधान में 73वें संशोधन के बाद यह उम्मीद की गई कि देश के लाखों गाँवों में पंचायती राज की स्थापना से गाँवों के कष्ट दूर होंगे। विकास की बहुत उम्मीदें भी लगाई गईं, आरक्षण से गाँवों के पिछड़ों, महिलाओं के लिए स्थान भी सुरक्षित किए गए, पर हुआ क्या? क्या बिना साधनों के विकास सम्भव होगा? पंचायतों को अधिका..
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी आलोचना के आधार-स्तम्भ’ में समीक्षात्मक लेखों का संकलन विश्वविद्यालयों की उच्चतम कक्षाओं के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर किया गया है। इसकी मूल प्रेरणा यह रही है कि हिन्दी आलोचना के चिन्तनगत उत्कर्ष बिन्दु और विषय प्रतिपादन की वैज्ञानिकता का समवेत रूप हिन्दी आलोचना के जिज्ञा..
वैश्विक परिदृश्य की ओर बढ़ती हिन्दी भाषा के अपने काव्य-चिन्तन के मूलाधार का न होना स्वयं में चिन्ताजनक सन्दर्भ है। आठवीं शती में प्रारम्भ होनेवाली आज की इस राष्ट्रभाषा के रचनात्मक साहित्य का मूल्यांकन या तो भारतीय संस्कृत भाषा साहित्य के काव्यशास्त्रीय मानकों पर दृष्टि डालने के लिए विवश करता है या फ..