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हास्य-व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य
जाहिर है कि इन अगडों का हाल भी बदहाल हो। लोग इनसे कतराएँ। इनका साया भी छुए तो नहाएँ। गुजारे के लिए बेचारे वही सब करें जो पहले दलितों ने किया। आज नहीं तो कल कोई-न-कोई जालिया फ्रॉडिया मसीहा चंद वोटों के खातिर अगड़ों की दुर्दशा पर कोई ‘बंडल’ रिपोर्ट लागू कर ही डाले। ऐसे जातीय जनगणना के आलोचकों से इस बा..
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श्रेष्ïठ हास्य-व्यंग्य गीत..
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वस्तुतः व्यंग्य में यदि हास्य नहीं होगा तो वह कोतवाल का हंटर हो जायेगा। उसकी पोड़ा से तिलमिलाकर अभियुक्त कैसा अनुभव करेगा, उसे आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस कार्य के लिए न्यायालय पहले से ही मौजूद है, फिर व्यंग्य की क्या जरूरत है। हास्य-मिश्रित व्यंग्य सीधा प्रहार करता है और आपको चोट भी नहीं लगती। लग..
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Shreshtha Hasya-Vyangya Kavitayen - PP2981 - हास्य-व्यंग्य..
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हिंदी की व्यंग्य-त्रयी में रवींद्रनाथ त्यागी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। त्यागीजी ने अपने दो अन्य सहयात्रियों के साथ हिंदी-व्यंग्य को एक सुनिश्‍च‌ित दिशा प्रदान की और उसे एक विधा के रूप में प्रतिष्‍ठा दिलाने में अप्रतिम योगदान दिया। इस व्यंग्य-त्रयी में रवींद्रनाथ त्यागी की व्यंग्य-दिशा पूर्णत: भिन्न ..
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श्मशान घाट का रास्ता पूछने-पाछने में हमें थोड़ी देर हो गई और जब तक हम वहाँ पहुँचे तब तक तो उनको मुखाग्नि देने की रस्म-अदायगी पूरी हो चुकी थी। वह लकड़ी और हवन सामग्री के मध्य लिपटे हुए धू-धू कर अग्नि में जलकर राख हुए जा रहे थे। दूसरे दिन प्रातः लगभग 10 बजकर 40 मिनट पर अचानक ही मेरे मोबाइल पर कल स्वर..
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हमारे कर्जदाताओं को हमारी नीतियों की आलोचना करने का अवसर मिल गया। उनके अध्ययन दलों ने हमारी औद्योगिक नीति को ठोका-बजाया और उसे दोषपूर्ण करार दिया। हमारी अर्थव्यवस्था को बारीकी से जाँचा-परखा और उसे बीमारी की ओर अग्रसर बतलाया। कहा कि यह मूलत: कठोर नियंत्रण का ही दुष्परिणाम था कि अर्थव्यवस्था पनप नहीं ..
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मोबाइल पर धुन बजी—‘हैलो!’ उधर से तीर चला—‘मोहन है क्या?’ मैं चौंका— ‘मोहन... यहाँ कोई मोहन नहीं है!’ उन पर कोई असर नहीं—‘आपका फोन नंबर क्या है?’ मुझे गुस्सा आ गया—‘राँग नंबर!’ लेकिन वे पीछा छोड़ने को तैयार नहीं—‘आप कौन बोल रहे हैं?’ मन हुआ, कहूँ—‘तेरा बाप!’ परंतु सभ्यता का तकाजा था, फोन बंद कर दिया।..
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