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हास्य-व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य
पता नहीं किस भले आदमी ने बता दिया कि डेमोक्रेसी के तीन खंभे होते हैं—न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका! तीन खंभों पर कभी कोई इमारत टिकी है जो डेमोक्रेसी टिकेगी? गनीमत समझो कि अपने देश में डेमोक्रेसी का एक चौथा खंभा 'धर्मपालिका’ का भी है। अगर यह न होता तो डेमोक्रेसी का कब का सत्यानाश हो जाता। यह ख..
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यह खबर चारों तरफ आग की तरह फैल गई कि मैं देश-सेवा के लिए उतरने वाला हूँ । जिसने सुना, भागा आया और मेरे निर्णय की दाद दी । बधाई-संदेशों का ताँता लग गया-' सुना, आप देश-सेवा के लिए उतर रहे हैं । ईश्‍वर देश का भला करें!' प्रस्ताव पर प्रस्ताव आने लगे कि बाइ द वे, शुरुआत कहाँ से कर रहे हैं? कौन सा एरिया ..
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दुम की दरकार—डॉ. शिव शर्मादुमदार प्राणियों को देखकर लगता है कि काश, हमारे पास भी एक दुम होती। जिन प्राणियों के पास होती है, वे शिखर तक पहुँच जाते हैं और दुम-विहीन सड़कों पर ही रेंगते रहते हैं। आज भर्तृहरि एवं तुलसीदास होते तो यह कदापि नहीं लिखते कि साहित्य, संस्कृति, कला-विहीन प्राणी, पुच्छ-विहीन पश..
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मैं जो हूँ तो हूँ...जब जिंदगी में तकलीफें इस कदर बढ़ जाएँ कि खुशियाँ मुँह चिढ़ाने लग जाएँ, और लगे कि अब बस आँसुओं को निकलने से कोई रोक नहीं सकता, तो खुद को इतना गुदगुदाओ, हँसाओ कि आँसू निकल आएँ और तुम कह सको—अरे यार! ये तो खुशी के आँसू हैं।...मैं भी ऐसा ही कुछ किया करती हूँ। जब दुःख-परेशानियाँ अपन..
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हिंदी की व्यंग्य-त्रयी में रवींद्रनाथ त्यागी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। त्यागीजी ने अपने दो अन्य सहयात्रियों के साथ हिंदी-व्यंग्य को एक सुनिश्‍च‌ित दिशा प्रदान की और उसे एक विधा के रूप में प्रतिष्‍ठा दिलाने में अप्रतिम योगदान दिया। इस व्यंग्य-त्रयी में रवींद्रनाथ त्यागी की व्यंग्य-दिशा पूर्णत: भिन्न ..
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क्या आप भी अपने जीवन का हर पल हँसते-खेलते खुशी-खुशी गुजारना चाहते हैं? जीवन में खुश रहने के लिए केवल एक बात पर गौर करने की जरूरत होती है कि खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि हम कौन हैं या हमारे पास क्या कुछ है? हँसी-खुशी हमारे भीतर ही निवास करती है, सिर्फ जरूरत है इन्हें जानने और पहचानने की। अब तो ..
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विज्ञापन प्रदेश में रहनेवाली ज्यादातर लड़कियों का मैंने यही चरित्र देखा है। ये जरा भी डिमांडिंग नहीं होतीं। लड़का 150 सीसी की बाइक चलाए तो उस पर लट्टू हो जाती हैं, 125 सीसी की बाइक ले आए तो भी फ्लैट हो जाती हैं। गाड़ी के इंजन का इनके पिकअप पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ये आदतन सैल्फ स्टार्ट होती हैं। प्रभ..
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ईशान महेश के इन व्यंग्यों में आप पाएँगे सरकारी और असामाजिक तंत्र की शिकार जनता की पीड़ा, उसका दर्द, उसका कष्ट, उसकी चीत्कार और उसकी बेबसी। जो भी साधारण है, सरल है, निष्कपट है—उसके भीतर प्रजा का रूप है और हम सब प्रजा का एक अंग हैं; इसलिए ये व्यंग्य हमारे मन और मस्तिष्क को छू जाते हैं।अनुक्रम1. बि..
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बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उन पर दिशायुक्‍त प्रहार करने की। पिछले दस वर्षों में पूँजी के बढ़ते प्रभाव, बाजारवाद, उपभोक्‍तावाद एवं बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों की ‘संस्कृति’ के भारतीय परिवेश में चमकदार प्रवेश ने हमारी मौलिकता का हनन किया है। दिल्ली की जिन गलियों को कभी शायर..
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प्रेम जनमेजय व्यंग्य-लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं। उनका मानना है कि व्यंग्य लेखन के अनेक उपमान मैले हो चुके हैं। बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उनपर दिशायुक्त प्रहार करने की। व्यंग्य को एक गंभीर तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयो..
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अब मैं कुरसी पर बैठता तो हूँ; पर रात में मुझे अजीब से स्वप्न आते हैं। कभी लगता है, कोई कुरसी खींच रहा है; कभी कोई उसे उलटता दिखाई देता है। कभी कुरसी सीधी तो मैं उलटा दिखाई देता हूँ। मैं परेशान हूँ; पर कुरसी आराम से है। जैसे लोग मरते हैं; पर शमशान सदा जीवित रहता है। ऐसे ही नेता आते-जाते हैं; पर कुरसी..
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हरीश नवल बहुआयामी व्यक्‍तित्व के स्वामी हैं। वे पेशे से प्राध्यापक, संस्कारों से व्यंग्यकार, रुचि से पत्रकार और निष्‍ठा से सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्हें साहित्य-संस्कार परिवार से विरासत में मिले हैं। उनकी शालीनता व शिष्‍टता उनके साहित्य व व्यक्‍तित्व का वैशिष्‍ट्य है, जो प्रस्तुत संकलन में भी देखने..
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