रामवृक्ष बेनीपुरी ने कई नाटकों, एकांकियों और रेडियो-रूपकों की रचना की है। ‘तथागत’ एक ऐतिहासिक नाटक है। इसमें बुद्ध के प्रख्यात ऐतिहासिक चरित्र की मामर्क अभिव्यक्ति हुई है। भाषण की सजीवता, शैली के अनूठेपन, कल्पना की मसृणता और संवादों के लाघव में बुद्ध का विस्तृत जीवनवृत्त खटकता नहीं, अपितु पाठक/दर्शक..
प्राचीन ऋषियों ने कहा था—‘चरैवेति, चरैवेति’—चलते चलो, चलते चलो; किंतु आज का मानव कहता है—‘उड़ते चलो, उड़ते चलो’। बेनीपुरीजी की इस यात्रा-वृत्तांत पुस्तक में यह वाक्य पूर्णरूपेण चरितार्थ होता है। वह जहाँ-जहाँ गए, पढ़ने से ऐसा लगता है मानो हम भी उनके साथ-साथ ही थे। विदेशों में—यहाँ से वहाँ, वहाँ से वह..
प्रकृति, पशु-पक्षी, रीति-रिवाज, जीवन-मूल्य, पर्व-त्योहार और नाते-रिश्तों से हमारा विविध रूप, रंग-रस व गंध का सरोकार रहता है। हमारी प्रकृति व संस्कृति परस्पर पूरक हैं। परस्पर निर्भरता ही इनका जीवन-सूत्र है। हम उनके साथ रिश्तों के सरोकार से विलग नहीं रह सकते। लेकिन बदलते दौर में यह ऊष्मा लगातार कम हो ..
याद आते हैं वे कुम्हार, जिन्होंने इस मिट्टी के घड़े को आकार दिया।
याद आते हैं, हिंदी के सबसे पुरानी विधा संस्मरण-साहित्य को नई ताजगी से भरनेवाले सच्चे संस्मरणों के 'मोती’ । आज जब संस्मरणों के नाम पर जिंदा-मृतक लोगों के 'पोस्टमार्टम’ की होड़ लगी है, जिन पर संस्मरण लिख रहे, उनके अवगुण को गुणा जा रहा ..