Menu
Your Cart

विवेकानंद साहित्य - Vivekanand Tum Laut Aao

विवेकानंद साहित्य - Vivekanand Tum Laut Aao
सरयू नदी के किनारे बैठे हुए विवेकानंद को सभी का स्मरण हो आया। उन्होंने सोचा, कुछ भी हो, अब प्रत्येक स्थान पर मुझे गुरु-महिमा बखाननी ही चाहिए। उसके बिना मैं अधूरा हूँ। • ‘गुरु—जो संपूर्ण जीवन को पूर्ण ईश्‍वर तक ले जाता है।’ • ‘गुरु—सकल ज्ञान का, सिद्धि का और इस जन्म का मोक्षदाता।’ • ‘गुरु—स्नेह का सागर, अपरंपार करुणा का आगर।’ • ‘गुरु एक ऐसी कड़ी है, जो आत्मा-परमात्मा को जोड़ती है।’ • ‘गुरु—शुद्ध, सात्त्विक, संयमी, मधुर भाषी व हितैषी भी।’ —इसी पुस्तक सेभारत के आध्यात्मिक व सांस्कृतिक आकाश के सबसे जाज्वल्यमान नक्षत्र स्वामी विवेकानंद का जीवन यद्यपि अल्पायु था, पर अपनी प्रखर वाणी और विचारों के कारण वे भारतीय जनमानस के मन-मस्तिष्क पर गहरे से अंकित हैं। आज की सामाजिक स्थिति में उनकी अंतर्दृष्‍टि जितनी आवश्यक है उतनी शायद पहले नहीं थी। इसलिए लेखिका ने इस उपन्यास के माध्यम से आह्वान किया है कि भारत के पुनरुत्थान के लिए ‘विवेकानंद, तुम लौट आओ’।

विवेकानंद साहित्य - Vivekanand Tum Laut Aao

Vivekanand Tum Laut Aao - by - Prabhat Prakashan

Vivekanand Tum Laut Aao -

Write a review

Please login or register to review
  • Stock: 10
  • Model: PP2478
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2478
  • ISBN: 9789380823836
  • ISBN: 9789380823836
  • Total Pages: 272
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2016
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00