Menu
Your Cart

विवेकानंद साहित्य - Bhaktiyog (Pb)

विवेकानंद साहित्य - Bhaktiyog (Pb)
निष्कपट भाव से ईश्वर की खोज को ‘भक्तियोग’ कहते हैं। इस खोज का आरंभ, मध्य और अंत प्रेम में होता है। ईश्वर के प्रति एक क्षण की भी प्रेमोन्मत्तता हमारे लिए शाश्वत मुक्ति को देनेवाली होती है। ‘भक्तिसूत्र’ में नारदजी कहते हैं, ‘‘भगवान्् के प्रति उत्कट प्रेम ही भक्ति है। जब मनुष्य इसे प्राप्त कर लेता है, तो सभी उसके प्रेमपात्र बन जाते हैं। वह किसी से घृणा नहीं करता; वह सदा के लिए संतुष्ट हो जाता है। इस प्रेम से किसी काम्य वस्तु की प्राप्ति नहीं हो सकती, क्योंकि जब तक सांसारिक वासनाएँ घर किए रहती हैं, तब तक इस प्रेम का उदय ही नहीं होता। भक्ति कर्म से श्रेष्ठ है और ज्ञान तथा योग से भी उच्च है, क्योंकि इन सबका एक न एक लक्ष्य है ही, पर भक्ति स्वयं ही साध्य और साधन-स्वरूप है।’’

विवेकानंद साहित्य - Bhaktiyog (Pb)

Bhaktiyog (Pb) - by - Prabhat Prakashan

Bhaktiyog (Pb) -

Write a review

Please login or register to review
  • Stock: 10
  • Model: PP2484
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2484
  • ISBN: 9789350486078
  • ISBN: 9789350486078
  • Total Pages: 104
  • Edition: Edition Ist
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Soft Cover
  • Year: 2021
₹ 200.00
Ex Tax: ₹ 200.00