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विवेकानंद साहित्य - Vivekanand Ki Atmakatha (Pb)

विवेकानंद साहित्य - Vivekanand Ki Atmakatha (Pb)
स्वामी विवेकानंद नवजागरण के पुरोधा थे। उनका चमत्कृत कर देनेवाला व्यक्‍तित्व, उनकी वाक‍्‍शैली और उनके ज्ञान ने भारतीय अध्यात्म एवं मानव-दर्शन को नए आयाम दिए। मोक्ष की आकांक्षा से गृह-त्याग करनेवाले विवेकानंद ने व्यक्‍तिगत इच्छाओं को तिलांजलि देकर दीन-दुःखी और दरिद्र-नारायण की सेवा का व्रत ले लिया। उन्होंने पाखंड और आडंबरों का खंडन कर धर्म की सर्वमान्य व्याख्या प्रस्तुत की। इतना ही नहीं, दीन-हीन और गुलाम भारत को विश्‍वगुरु के सिंहासन पर विराजमान किया। ऐसे प्रखर तेजस्वी, आध्यात्मिक शिखर पुरुष की जीवन-गाथा उनकी अपनी जुबानी प्रस्तुत की है प्रसिद्ध बँगला लेखक श्री शंकर ने। अद‍्भुत प्रवाह और संयोजन के कारण यह आत्मकथा पठनीय तो है ही, प्रेरक और अनुकरणीय भी है।अनुक्रमणिकाप्राकथन — 71. मेरा बचपन — 192. श्रीरामकृष्ण से परिचय — 263. श्रीरामकृष्ण ही मेरे प्रभु — 564. आदि मठ बरानगर और मेरा परिव्राजक जीवन — 775. पारिवारिक मामले की विडंबना — 856. कुछ चिट्ठियाँ, कुछ बातचीत — 887. परिव्राजक का भारत-दर्शन — 998. विदेश यात्रा की तैयारी — 1119. दैव आह्वान और विश्व धर्म सभा — 11310. अमेरिका की राह में — 11611. अब अमेरिका की ओर — 11912. शिकागो, 2 अतूबर, 1893 — 12713. धर्म महासभा में — 13314. घटनाओं की घनघटा — 13815. संग्राम संवाद — 14116. भारत वापसी — 24217. इस देश में मैं या करना चाहता हूँ — 27718. पश्चिम में दूसरी बार — 29619. फ्रांस — 31920. मैं विश्वास करता हूँ — 32721. विदा वेला की वाणी — 33422. सखा के प्रति — 353परिशिष्ट — 355मंतव्यावली — 357तथ्य सूत्र — 358

विवेकानंद साहित्य - Vivekanand Ki Atmakatha (Pb)

Vivekanand Ki Atmakatha (Pb) - by - Prabhat Prakashan

Vivekanand Ki Atmakatha (Pb) - स्वामी विवेकानंद नवजागरण के पुरोधा थे। उनका चमत्कृत कर देनेवाला व्यक्‍तित्व, उनकी वाक‍्‍शैली और उनके ज्ञान ने भारतीय अध्यात्म एवं मानव-दर्शन को नए आयाम दिए। मोक्ष की आकांक्षा से गृह-त्याग करनेवाले विवेकानंद ने व्यक्‍तिगत इच्छाओं को तिलांजलि देकर दीन-दुःखी और दरिद्र-नारायण की सेवा का व्रत ले लिया। उन्होंने पाखंड और आडंबरों का खंडन कर धर्म की सर्वमान्य व्याख्या प्रस्तुत की। इतना ही नहीं, दीन-हीन और गुलाम भारत को विश्‍वगुरु के सिंहासन पर विराजमान किया। ऐसे प्रखर तेजस्वी, आध्यात्मिक शिखर पुरुष की जीवन-गाथा उनकी अपनी जुबानी प्रस्तुत की है प्रसिद्ध बँगला लेखक श्री शंकर ने। अद‍्भुत प्रवाह और संयोजन के कारण यह आत्मकथा पठनीय तो है ही, प्रेरक और अनुकरणीय भी है।अनुक्रमणिकाप्राकथन — 71.

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  • Stock: 10
  • Model: PP2477
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2477
  • ISBN: 9789350481462
  • ISBN: 9789350481462
  • Total Pages: 376
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Soft Cover
  • Year: 2020
₹ 450.00
Ex Tax: ₹ 450.00