लेख : निबंध : पत्र - Main Arvind Bol Raha Hoon
संसार को आध्यात्मिकता, राष्ट्र को राजनीतिक चेतना तथा समाज को समन्वय की संस्कृति का ज्ञान देकर जिसने हमारे सांस्कृतिक इतिहास तथा राजनीतिक चिंतनधारा को सबसे अधिक अलंकृत किया, उस व्यक्तित्व का नाम है—महर्षि अरविंद घोष। अरविंद ने भारत की आराधना माता के समान की। भारतमाता को स्वाधीन कराने के लिए उन्होंने निरंतर संघर्ष किया। भारत की स्वतंत्रता के माध्यम से वे विश्व-मानवता की सेवा करना चाहते थे। भारतीय स्वतंत्रता के संदर्भ में उन्होंने कहा था—‘किसी भी राष्ट्र के सुस्वास्थ्य तथा जीवंतता के लिए स्वतंत्रता पहली आवश्यकता है।’
राष्ट्रवाद को उन्होंने राष्ट्र तथा नागरिकों के लिए वरदान माना। उनका मत था कि स्वराज्य के बिना राष्ट्र समान है। अरविंद मूलत: अध्यात्म-पुरुष थे। वे प्रकांड पांडित्य और गहन अंतर्दृष्टि के व्यक्ति थे।
ऐसे क्रांतिकारी विचारक, महान् योगी, विश्व-मानवता के उन्नायक, आध्यात्मिक महापुरुष महर्षि अरविंद घोष की चिंतनधारा से परिचित कराने के संकल्प के साथ यह संकलन प्रस्तुत है।विषय-क्रम भगवत्प्रेम —Pgs. 79
अध्यात्म-पुरुष —Pgs. 7 भगवान् —Pgs. 79
युगद्रष्टा श्रीअरविंद घोष —Pgs. 9 भय —Pgs. 80
मैं अरविंद बोल रहा हूँ —Pgs. 23 भविष्य —Pgs. 81
अंग्रेजी शिक्षा —Pgs. 23 भागवत सत्य —Pgs. 81
अंतःप्रेरणा —Pgs. 23 भाग्य —Pgs. 81
अंतरात्मा —Pgs. 24 भारत —Pgs. 82
अंतरराष्ट्रीयता —Pgs. 24 भारत का लक्ष्य —Pgs. 83
अखंडता की भावना —Pgs. 24 भारतवासी —Pgs. 83
अचंचल मन —Pgs. 24 भारतीय —Pgs. 84
अचंचलता —Pgs. 25 भारतीय आत्मा —Pgs. 84
अच्छाई-बुराई —Pgs. 25 भारतीय आदर्श —Pgs. 84
अज्ञान —Pgs. 25 भारतीय एकता —Pgs. 85
अतिमानव —Pgs. 26 भारतीय कला —Pgs. 85
अतीत —Pgs. 26 भारतीय जनतंत्र —Pgs. 86
अतीत की विरासत —Pgs. 27 भारतीय जीवन —Pgs. 86
अतीत संस्कृति —Pgs. 27 भारतीय धर्म —Pgs. 86
अत्युक्ति —Pgs. 27 भारतीय राजा —Pgs. 87
अद्वैतवाद —Pgs. 27 भारतीय शासन-तंत्र —Pgs. 87
अध्ययन —Pgs. 27 भारतीय संस्कृति —Pgs. 88
अनुभूति —Pgs. 28 भारतीय सभ्यता —Pgs. 89
अनुशासन —Pgs. 28 भारतीय साहित्य —Pgs. 91
अपने विषय में —Pgs. 28 भारवि व माघ —Pgs. 91
अभीप्सा —Pgs. 29 भाव-प्रकाशन —Pgs. 92
अवचेतन —Pgs. 29 भाषा —Pgs. 92
अवतार —Pgs. 30 भूल —Pgs. 93
अवसाद —Pgs. 30 भोजन —Pgs. 93
असफलता —Pgs. 30 मंत्र —Pgs. 93
अहंकार —Pgs. 31 मधुरता —Pgs. 93
अहंभाव —Pgs. 32 मन —Pgs. 94
आत्मत्याग —Pgs. 33 मनुष्य —Pgs. 96
आत्मबल —Pgs. 33 महत्त्वाकांक्षा —Pgs. 98
आत्मविजय —Pgs. 33 महाकाली और काली —Pgs. 98
आत्मविश्वास —Pgs. 33 महान् संत —Pgs. 98
आत्म-विस्तार —Pgs. 33 महाभारत —Pgs. 98
आत्मसमर्पण —Pgs. 34 महाभारत-रामायण —Pgs. 99
आत्मसम्मान —Pgs. 34 माघ —Pgs. 99
आत्मा —Pgs. 35 मान-अभिमान —Pgs. 99
आदर्श —Pgs. 36 मानव —Pgs. 99
आधुनिक मनुष्य —Pgs. 36 मानव-जीवन —Pgs. 100
आध्यात्मिकता —Pgs. 37 मानवता —Pgs. 100
आर्थिक हित —Pgs. 37 मानव-प्रकृति —Pgs. 100
आलोचना का अधिकार —Pgs. 37 मानव-प्रगति —Pgs. 100
इच्छा —Pgs. 38 मानव प्रेम —Pgs. 101
ईश्वर —Pgs. 38 मानव हृदय —Pgs. 101
ईश्वर-आराधना —Pgs. 38 मानसिक ज्ञान —Pgs. 101
ईश्वर के प्रति चाह —Pgs. 38 माया —Pgs. 101
ईर्ष्या —Pgs. 39 मूर्तिपूजा —Pgs. 101
ईसाई धर्म —Pgs. 39 मृत्यु —Pgs. 102
उत्साह —Pgs. 39 मैत्री —Pgs. 102
उपनिषद् —Pgs. 39 मोक्ष —Pgs. 103
ऋषि —Pgs. 40 मौन —Pgs. 103
एकता —Pgs. 41 मौनव्रत —Pgs. 103
एकरूपता —Pgs. 41 युक्तिवाद —Pgs. 103
एकाग्रता —Pgs. 41 युद्ध —Pgs. 103
कठिनाइयाँ —Pgs. 42 यूरोपीय संस्कृति —Pgs. 104
कर्म —Pgs. 42 योग —Pgs. 104
कर्मफल —Pgs. 45 योग का आदर्श —Pgs. 105
कला —Pgs. 45 योग-साधना —Pgs. 105
कवि —Pgs. 45 यौन आकर्षण —Pgs. 105
कष्ट —Pgs. 46 राग-द्वेष —Pgs. 106
कामना —Pgs. 46 राजनीति —Pgs. 106
कामवृत्ति —Pgs. 47 राजनीतिक एकता —Pgs. 106
कालिदास —Pgs. 47 राजसिक अहंकार —Pgs. 106
कालिदास : रघुवंश महाकाव्य —Pgs. 49 राजसिक कर्म —Pgs. 107
काव्य व अध्ययन —Pgs. 49 राजा —Pgs. 107
कृत्रिमता —Pgs. 49 राज्य —Pgs. 107
कौमार्य —Pgs. 49 राज्य और व्यक्ति —Pgs. 108
क्रोध —Pgs. 49 रामायण —Pgs. 108
गपशप —Pgs. 50 राष्ट्र —Pgs. 109
गलत —Pgs. 50 राष्ट्र धर्म —Pgs. 110
गीता —Pgs. 50 राष्ट्रीयता —Pgs. 110
गुरु —Pgs. 51 राष्ट्रीय भाव —Pgs. 110
गृध्रसी —Pgs. 52 रोग —Pgs. 111
घृणा —Pgs. 52 लेखन और अध्ययन —Pgs. 111
चरित्र —Pgs. 53 वंश-परंपरा —Pgs. 111
चितरंजन दास —Pgs. 53 वर्ण-व्यवस्था —Pgs. 112
चित्रकार —Pgs. 53 विकास —Pgs. 112
चेतना —Pgs. 53 विचार —Pgs. 113
चेत्यीकरण —Pgs. 54 विज्ञान —Pgs. 113
जाति —Pgs. 54 विधान —Pgs. 113
जीवन —Pgs. 55 विधि —Pgs. 113
जीवन-कला —Pgs. 55 विरह —Pgs. 114
ज्ञान —Pgs. 56 विश्व-प्रेम —Pgs. 114
तमस —Pgs. 56 विश्व-राज्य —Pgs. 115
तर्क —Pgs. 56 विषाद —Pgs. 115
तर्कबुद्धि —Pgs. 56 वेद —Pgs. 115
तर्क विचार —Pgs. 57 वेशभूषा —Pgs. 115
तर्कशास्त्र —Pgs. 57 वैदिक धर्म —Pgs. 116
ताजमहल —Pgs. 57 वैदिक शिक्षा —Pgs. 116
तामसिक अहंकार —Pgs. 57 वैयक्तिक विकास —Pgs. 116
तामसिक कर्म —Pgs. 58 वैराग्य —Pgs. 117
त्याग —Pgs. 58 व्यवस्था —Pgs. 117
दंड —Pgs. 58 शक्ति —Pgs. 117
दमन —Pgs. 58 शांति —Pgs. 118
दिव्य जीवन —Pgs. 59 शिक्षा —Pgs. 119
दुःख —Pgs. 59 शुभ और अशुभ —Pgs. 119
दुःख-क्लेश —Pgs. 59 शून्यता —Pgs. 120
दुःखजय —Pgs. 60 श्रद्धा —Pgs. 120
दुर्बलता पर ध्यान दें —Pgs. 60 श्रद्धा और विश्वास —Pgs. 122
देश —Pgs. 60 श्रद्धा और साहस —Pgs. 122
देश-भक्ति —Pgs. 60 श्री माँ —Pgs. 122
देश-सेवा —Pgs. 61 संकल्प —Pgs. 123
दोष —Pgs. 61 संघर्ष —Pgs. 124
दोष-चर्चा —Pgs. 61 संदेह —Pgs. 124
दोषारोपण —Pgs. 62 संभोग —Pgs. 125
धर्म —Pgs. 62 संस्कृत साहित्य —Pgs. 125
धैर्य —Pgs. 63 संस्कृति —Pgs. 126
निग्रह —Pgs. 63 संस्कृति और सभ्यता —Pgs. 127
निद्रा —Pgs. 64 संस्कृति : भारतीय/पाश्चात्य —Pgs. 127
नियम —Pgs. 64 सच्चाई —Pgs. 128
नियमित —Pgs. 64 सत्य —Pgs. 128
निर्गुण —Pgs. 64 सत्यता —Pgs. 128
निर्बलता —Pgs. 65 सदाचारी —Pgs. 128
निर्विकल्प समाधि —Pgs. 65 सनातन धर्म —Pgs. 129
निवृत्ति —Pgs. 65 सभ्यता —Pgs. 129
न्याय —Pgs. 65 समझ —Pgs. 129
पत्र —Pgs. 66 समझौता —Pgs. 129
परतंत्रता —Pgs. 66 समता —Pgs. 129
परिवर्तन —Pgs. 66 समर्पण —Pgs. 131
पवित्र मन —Pgs. 66 समष्टि-बोध —Pgs. 131
पवित्रता —Pgs. 66 समस्याएँ —Pgs. 131
पश्चिमी आदर्श —Pgs. 67 समाज —Pgs. 132
पुनर्जन्म और कर्म का सिद्धांत —Pgs. 67 समुदाय —Pgs. 133
पुरस्कार —Pgs. 67 समूहवादी आदर्श —Pgs. 133
पुराण —Pgs. 68 सहायता —Pgs. 133
पूर्ण स्वराज —Pgs. 68 सांसारिक जीवन —Pgs. 134
प्रकृति —Pgs. 69 साक्षात्कार —Pgs. 134
प्रकृति वस्तु —Pgs. 70 सात्त्विक अहंकार —Pgs. 134
प्रगति —Pgs. 70 सात्त्विक कर्म —Pgs. 135
प्रतिमा —Pgs. 70 साधना —Pgs. 135
प्रतीक —Pgs. 71 साहित्य —Pgs. 136
प्रयास —Pgs. 71 साहित्य और कला —Pgs. 136
प्रशंसा —Pgs. 71 साहित्यिक —Pgs. 137
प्रचीन शिक्षा —Pgs. 71 सिपाही —Pgs. 137
प्राच्य और पाश्चात्य —Pgs. 72 सुख —Pgs. 137
प्राण —Pgs. 72 सुख और दुःख —Pgs. 138
प्रेम —Pgs. 72 सुभाषित —Pgs. 138
प्रेम-घृणा —Pgs. 73 सेवक —Pgs. 138
प्रेम-भक्ति —Pgs. 73 स्वतंत्र —Pgs. 138
बल-प्रयोग —Pgs. 74 स्वंत्रता —Pgs. 139
बाधा —Pgs. 74 स्वदेश प्रेमी —Pgs. 139
बुद्धि —Pgs. 74 स्वधर्म —Pgs. 139
बुराई —Pgs. 76 स्वराज्य के आदर्श —Pgs. 139
बुराई का प्रतिकार —Pgs. 76 स्वस्थ —Pgs. 140
बौद्ध और हिंदू-धर्म —Pgs. 77 स्वाधीनता —Pgs. 140
बौद्ध-धर्म —Pgs. 77 स्वार्थपरता —Pgs. 140
ब्रह्म —Pgs. 77 हिंदू-धर्म —Pgs. 141
ब्रह्मचर्य —Pgs. 78 हिटलर —Pgs. 142
भक्ति —Pgs. 78 विविध —Pgs. 142
भगवती माता —Pgs. 79
लेख : निबंध : पत्र - Main Arvind Bol Raha Hoon
Main Arvind Bol Raha Hoon - by - Prabhat Prakashan
Main Arvind Bol Raha Hoon - संसार को आध्यात्मिकता, राष्ट्र को राजनीतिक चेतना तथा समाज को समन्वय की संस्कृति का ज्ञान देकर जिसने हमारे सांस्कृतिक इतिहास तथा राजनीतिक चिंतनधारा को सबसे अधिक अलंकृत किया, उस व्यक्तित्व का नाम है—महर्षि अरविंद घोष। अरविंद ने भारत की आराधना माता के समान की। भारतमाता को स्वाधीन कराने के लिए उन्होंने निरंतर संघर्ष किया। भारत की स्वतंत्रता के माध्यम से वे विश्व-मानवता की सेवा करना चाहते थे। भारतीय स्वतंत्रता के संदर्भ में उन्होंने कहा था—‘किसी भी राष्ट्र के सुस्वास्थ्य तथा जीवंतता के लिए स्वतंत्रता पहली आवश्यकता है।’ राष्ट्रवाद को उन्होंने राष्ट्र तथा नागरिकों के लिए वरदान माना। उनका मत था कि स्वराज्य के बिना राष्ट्र समान है। अरविंद मूलत: अध्यात्म-पुरुष थे। वे प्रकांड पांडित्य और गहन अंतर्दृष्टि के व्यक्ति थे। ऐसे क्रांतिकारी विचारक, महान् योगी, विश्व-मानवता के उन्नायक, आध्यात्मिक महापुरुष महर्षि अरविंद घोष की चिंतनधारा से परिचित कराने के संकल्प के साथ यह संकलन प्रस्तुत है।विषय-क्रम भगवत्प्रेम —Pgs.
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- ISBN: 9789380823256
- ISBN: 9789380823256
- Total Pages: 144
- Edition: Edition 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2020
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00