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लेख : निबंध : पत्र - Hindi Ki Vishwavyapti

लेख : निबंध : पत्र - Hindi Ki Vishwavyapti
अनेक कारणों से भारत में साहित्य-कलाओं के प्रति अनुराग का ठीक-ठीक आकलन नहीं किया गया है। दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं ने अपने हित स्वार्थों के संदर्भ में भाषा की राजनीति को आग के रूप में इस्तेमाल किया है, किंतु भारत की जनता ने उस राजनीति को ज्यादा हवा नहीं दी। हिंदी साहित्य तथा अन्य कलाओं के प्रति अपने राष्ट्रधर्मी व्यवहार के कारण सभी वर्गों में स्वीकृत रही है तथा अन्य माध्यमों में आसमान तोड़ घेरे में फैलती रही है। एशिया में भी प्रयोजनमूलकता के संदर्भ में अपनी उपयोगिता को रेखांकित करती हुई, सभी माध्यमों और सिनेमा के कारण हिंदी लोकप्रियता के शिखर पर सक्रिय रही है।हिंदी की भविष्य-दृष्टि एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वह भी उस दौर में जब यंत्रारूढ़ अंग्रेजी अपने वर्चस्व का परचम लहरा रही है। तथापि इसी नए दौर में एशिया में एशियाई भाषाओं के अंतर्संबंध नई करवट ले रहे हैं, उनकी अवहेलना करना दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं द्वारा उत्पन्न भ्रम और भय का लक्ष्य तो है, किंतु उस आशंका की बुनियादें हर आशंका की बुनियादों की तरह खोखली हैं। आइए, हम नई भविष्य-दृष्टि का स्वागत करें।हिंदी के वैश्विक स्वरूप का दिग्दर्शन कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।अनुक्रमपुरोवाक्—71. हिंदी और भारतीय भाषाएँ—132. पश्चिमी देशों में हिंदी—223. भाषा और संस्कृति—294. हिंदी की भारतेतर विश्वस्दृष्टि—385. भारत और एशियाई देशों के बीच    सांस्कृतिक संबंध : हिंदी की भूमिका—496. अंतरराष्ट्रीय भाषा के मानक और हिंदी—627. विश्व भाषा की नई भूमिकाओं के संदर्भ में हिंदी—698. अंग्रेजी से गुलामी मजबूत होती है—789. विश्व भाषा के रूप में हिंदी—9110. हिंदी के विकास में संस्थाओं की भूमिका—9711. हिंदी और महादेश—10312. हिंदी के प्रचार-प्रसार में विदेशी विद्वानों का योगदान—10813. भावात्मक एकता की राष्ट्रीय संकल्पना—11314. भारत और विश्व पटल पर हिंदी का भविष्य—11715. हिंदी और विश्व भाईचारा—12716. हिंदी की भविष्य दृष्टि—134

लेख : निबंध : पत्र - Hindi Ki Vishwavyapti

Hindi Ki Vishwavyapti - by - Prabhat Prakashan

Hindi Ki Vishwavyapti - अनेक कारणों से भारत में साहित्य-कलाओं के प्रति अनुराग का ठीक-ठीक आकलन नहीं किया गया है। दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं ने अपने हित स्वार्थों के संदर्भ में भाषा की राजनीति को आग के रूप में इस्तेमाल किया है, किंतु भारत की जनता ने उस राजनीति को ज्यादा हवा नहीं दी। हिंदी साहित्य तथा अन्य कलाओं के प्रति अपने राष्ट्रधर्मी व्यवहार के कारण सभी वर्गों में स्वीकृत रही है तथा अन्य माध्यमों में आसमान तोड़ घेरे में फैलती रही है। एशिया में भी प्रयोजनमूलकता के संदर्भ में अपनी उपयोगिता को रेखांकित करती हुई, सभी माध्यमों और सिनेमा के कारण हिंदी लोकप्रियता के शिखर पर सक्रिय रही है।हिंदी की भविष्य-दृष्टि एशिया के व्यापारिक जगत् में धीरे-धीरे अपना स्वरूप बिंबित कर भविष्य की अग्रणी भाषा के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है। वह भी उस दौर में जब यंत्रारूढ़ अंग्रेजी अपने वर्चस्व का परचम लहरा रही है। तथापि इसी नए दौर में एशिया में एशियाई भाषाओं के अंतर्संबंध नई करवट ले रहे हैं, उनकी अवहेलना करना दुष्ट-दृष्टि संपन्न राजनेताओं द्वारा उत्पन्न भ्रम और भय का लक्ष्य तो है, किंतु उस आशंका की बुनियादें हर आशंका की बुनियादों की तरह खोखली हैं। आइए, हम नई भविष्य-दृष्टि का स्वागत करें।हिंदी के वैश्विक स्वरूप का दिग्दर्शन कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।अनुक्रमपुरोवाक्—71.

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  • Stock: 10
  • Model: PP2366
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2366
  • ISBN: 9789386870216
  • ISBN: 9789386870216
  • Total Pages: 152
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2018
₹ 300.00
Ex Tax: ₹ 300.00