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भक्ति साहित्य - Rahasyopadesh Ka Rahasya

भक्ति साहित्य - Rahasyopadesh Ka Rahasya
कश्मीर की आदिकवयित्री शैवयोगिनी माता लल्लेश्वरी को परमगुरु मानकर उन्हें ओंकार की भाँति हृदय में स्थापित करनेवाली, अपने गुरु और पिता पंडित माधव जू धर को शिवस्वरूप माननेवाली माताश्री रूपभवानी वे शक्तिरूपा हैं, जिन्होंने कश्मीर की उस आध्यात्मिक परंपरा को परिपुष्ट किया, जो भारत की सभ्यता का अविच्छिन्न अंग है। यह पुस्तक इसी दार्शनिक स्वरूप और उसकी दिशा को रेखांकित करती है। माता रूपभवानी ने शस्त्र और शास्त्र की सार्थकता पर जो चिंतन किया है, उसे उनके ‘वाखों’ में अभिव्यक्ति मिली है। ये दोनों ही अंदर के खालीपन को भरने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन उस परब्रह्म की सत्ता का बोध हो तो फिर न शस्त्र की आवश्यकता रहती है, न शास्त्र की।  कश्मीर की समृद्ध संत-परंपरा के गौरवमयी इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है माता श्रीरूपभवानी का अवतरण। इस महान् तपस्विनी ने विभिन्न स्थलों पर 50 वर्ष तक तपस्या के पश्चात् अपने भक्तों को निर्वाण का रहस्य अपने उपदेशों के माध्यम से समझाया। ये उपदेश साधना की राह में आगे बढ़ने के लिए आज भी साधक को निरंतर प्रेरित करते हैं। आशा है, माता श्रीरूपभवानी के उपदेशों को समझने और उनका अनुसरण करने की दिशा में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी। —डॉ. दिलीप कौलअनुक्रमप्राक्कथन — 7माता श्रीरूपभवानी का चमत्कारिक अवतरण — 91. माता श्रीरूपभवानी की पवित्र वाणी : रहस्योपदेश — 152. माता श्रीरूपभवानी के वाखों में प्रतीक  — 233. निर्वाण और परमगति — 304. ज्ञान-खंड — 405. स्वानुभवोल्लासदशकम और माता श्रीरूपभवानी — 706. ‘स्वानुभवोल्लासदशकम’ के श्लोकों का सार — 777. आनंद-द्वादशी : परमात्मा से एकीकरण का उपदेश — 828. पंडित बालह धर का फारसी पत्र — 879. साधना में अनुग्रह का भाव — 10010. साधना का महत्त्वपूर्ण सोपान : दृष्टाभाव  — 10711. अपार ज्ञान का भंडार हैं वाख — 11112.  वाखों में प्रयुक्त शब्दों की व्याख्या — 11413. माता श्रीरूपभवानी के वाखों में पाठ-भेद  — 13214. माता श्रीरूपभवानी के वाखों में शैव-दर्शन  — 14415. कुंडलिनी शक्ति और माता श्रीरूपभवानी — 15216. माता श्रीरूपभवानी का दरबार सम धर्म समभाव का विलक्षण स्थल — 15617. माता श्रीरूपभवानी और लल्‍लेश्वरी — 16018. साधना में विवेक का महत्त्व  — 16419. शाह कलंदर और माता श्रीरूपभवानी — 16620. माता श्रीरूपभवानी का योगिनी रूप — 16921. यह गीता-ज्ञान ही तो है... 17122. माता श्रीरूपभवानी का रहस्यवाद — 17723. माता श्रीरूपभवानी के उपदेशों में कर्म की व्याख्या — 18624. यज्ञ का महत्त्व और माता श्रीरूपभवानी का उपदेश — 19125. अंतर्मुखी दृष्टि अर्थात् परमार्थ पथ की ओर एक कदम  — 196 

भक्ति साहित्य - Rahasyopadesh Ka Rahasya

Rahasyopadesh Ka Rahasya - by - Prabhat Prakashan

Rahasyopadesh Ka Rahasya - कश्मीर की आदिकवयित्री शैवयोगिनी माता लल्लेश्वरी को परमगुरु मानकर उन्हें ओंकार की भाँति हृदय में स्थापित करनेवाली, अपने गुरु और पिता पंडित माधव जू धर को शिवस्वरूप माननेवाली माताश्री रूपभवानी वे शक्तिरूपा हैं, जिन्होंने कश्मीर की उस आध्यात्मिक परंपरा को परिपुष्ट किया, जो भारत की सभ्यता का अविच्छिन्न अंग है। यह पुस्तक इसी दार्शनिक स्वरूप और उसकी दिशा को रेखांकित करती है। माता रूपभवानी ने शस्त्र और शास्त्र की सार्थकता पर जो चिंतन किया है, उसे उनके ‘वाखों’ में अभिव्यक्ति मिली है। ये दोनों ही अंदर के खालीपन को भरने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, लेकिन उस परब्रह्म की सत्ता का बोध हो तो फिर न शस्त्र की आवश्यकता रहती है, न शास्त्र की।  कश्मीर की समृद्ध संत-परंपरा के गौरवमयी इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है माता श्रीरूपभवानी का अवतरण। इस महान् तपस्विनी ने विभिन्न स्थलों पर 50 वर्ष तक तपस्या के पश्चात् अपने भक्तों को निर्वाण का रहस्य अपने उपदेशों के माध्यम से समझाया। ये उपदेश साधना की राह में आगे बढ़ने के लिए आज भी साधक को निरंतर प्रेरित करते हैं। आशा है, माता श्रीरूपभवानी के उपदेशों को समझने और उनका अनुसरण करने की दिशा में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी। —डॉ.

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  • Stock: 10
  • Model: PP1985
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP1985
  • ISBN: 9789352668373
  • ISBN: 9789352668373
  • Total Pages: 200
  • Edition: Edition Ist
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2018
₹ 400.00
Ex Tax: ₹ 400.00