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उपन्यास - Krishnam Vande Jagadgurum

उपन्यास - Krishnam Vande Jagadgurum
कृष्ण विचलित नहीं हुए । अपने खुद के वचन की यथार्थता मानो सहजभाव से प्रकट होती है । नाश तो सहज कर्म है । यादव तो अति समर्थ है; फिर कृष्ण- बलराम जैसे प्रचंड व्यक्‍त‌ियों से रक्षित हैं- उनका सहज नाश किस प्रकार हो? उनका नाश कोई बाह्य शक्‍त‌ि तो कर ही नहीं सकती । कृष्ण इस सत्य को समझते हैं और इसलिए माता गांधारी के शाप के समय केवल कृष्ण हँसते हैं । हँसकर कहते हैं - ' माता! आपका शाप आशीर्वाद मानकर स्वीकार करता हूँ; कारण, यादवों का सामर्थ्य उनका अपना नाश करे, यही योग्य है । उनको दूसरा कोई परास्त नहीं कर सकता । ' कृष्ण का यह दर्शन यादव परिवार के नाश की घटना के समय देखने योग्य है । अति सामर्थ्य विवेक का त्याग कर देता है और विवेकहीन मनुष्य को जो कालभाव सहज रीति से प्राप्‍त न हो, तो जो परिणाम आए वही तो खरी दुर्गति है । कृष्ण इस शाप को आशीर्वाद मानकर स्वीकार करते हैं । इसमें ही रहस्य समाया हुआ है ।

उपन्यास - Krishnam Vande Jagadgurum

Krishnam Vande Jagadgurum - by - Prabhat Prakashan

Krishnam Vande Jagadgurum - कृष्ण विचलित नहीं हुए । अपने खुद के वचन की यथार्थता मानो सहजभाव से प्रकट होती है । नाश तो सहज कर्म है । यादव तो अति समर्थ है; फिर कृष्ण- बलराम जैसे प्रचंड व्यक्‍त‌ियों से रक्षित हैं- उनका सहज नाश किस प्रकार हो?

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  • Stock: 10
  • Model: PP601
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP601
  • ISBN: 8185826609
  • ISBN: 8185826609
  • Total Pages: 130
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2009
₹ 175.00
Ex Tax: ₹ 175.00