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पर्यावरण : प्रदूषण - Kala Aur Sanskriti

पर्यावरण : प्रदूषण - Kala Aur Sanskriti
‘संस्कृति क्या है’ और ‘कला क्या है’, इन दो प्रश्नों के उत्तर अनेक हो सकते हैं। संस्कृति मनुष्य के भूत, वर्तमान और भावी जीवन का सर्वांगीण प्रकार है। विचार और कर्म के क्षेत्र में राष्ट्र का जो सृजन है, वही उसकी संस्कृति है। संस्कृति मानवीय जीवन की प्रेरक शक्ति है। वह जीवन की प्राणवायु है, जो उसके चैतन्य भाव की साक्षी है। संस्कृति विश्व के प्रति अनंत मैत्री की भावना है। संस्कृति के द्वारा हम दूसरों के साथ संतुलित स्थिति प्राप्त करते हैं। विश्वात्मा के साथ अद्रोह की स्थिति और संप्रीति का भाव उच्च संस्कृति का सर्वोत्तम लक्षण है।स्थूल जीवन में संस्कृति की अभिव्यक्ति कला को जन्म देती है। कला का संबंध जीवन के मूर्त रूप से है। संस्कृति को मन और प्राण कहा जाए तो कला उसका शरीर है। कला मानवीय जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।भारतीय कला का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत था। प्राचीन काल से आनेवाले अनेक सूत्र नगर और गाँवों के जीवन में अब भी बिखरे हुए हैं। बंगाल की अल्पना, राजस्थान के मेहँदी-माँडने, बिहार के ऐपन, उत्तर प्रदेश के चौक, गुजरात-महाराष्ट्र की रंगोली और दक्षिण-भारत के कोलम—इनके वल्लरी-प्रधान तथा आकृति-प्रधान अलंकरणों में कला की एक अति प्राचीन लोकव्यापी परंपरा आज भी सुरक्षित है।अत्यंत रोचक शैली में लिखी भारतीय कला और संस्कृति का सांगोपांग दिग्दर्शन कराने वाली पठनीय पुस्तक।अनुक्रमभूमिका—Pgs.5संस्कृति1. संस्कृति का स्वरूप 132. पूर्व और नूतन—Pgs.173. वाल्मीकि—Pgs.194. महर्षि व्यास—Pgs.325. भागवती संस्कृति—Pgs.476. महापुरुष श्रीकृष्ण—Pgs.597. मनु—Pgs.658. पाणिनि—Pgs.759. अशोक का लोक सुखयन धर्म—Pgs.8710. परम भट्टारक महाराजाधिराज श्री स्कंदगुप्त—Pgs.10311. भारत का चातुर्दिश दृष्टिकोण—Pgs.10712. सप्तसागर महादान—Pgs.11013. कटाहद्वीप की समुद्र-यात्रा—Pgs.11714. बोधिसत्त्व—Pgs.12515. देश का नामकरण—Pgs.13416. धर्म का वास्तविक अर्थ—Pgs.13917. विवाह संस्कार—Pgs.14418. वैदिक दर्शन—Pgs.15019. कल्पवृक्ष—Pgs.15920. विचारों का मधुमय उत्स-शब्द और अर्थ—Pgs.173कला21. कला—Pgs.17922. भारतीय कला का अनुशीलन—Pgs.18123. भारतीय कला का सिंहावलोकन 19924. राजघाट के खिलौनों का एक अध्ययन—Pgs.21825. मध्यकालीन शस्त्रास्त्र—Pgs.22726. भारतीय वस्त्र और उनकी सजावट—Pgs.23927. चित्राचार्य अवनींद्रनाथ, नंदलाल और यामिनी राय—Pgs.24628. आनंद कुमार स्वामी—Pgs.259

पर्यावरण : प्रदूषण - Kala Aur Sanskriti

Kala Aur Sanskriti - by - Prabhat Prakashan

Kala Aur Sanskriti - ‘संस्कृति क्या है’ और ‘कला क्या है’, इन दो प्रश्नों के उत्तर अनेक हो सकते हैं। संस्कृति मनुष्य के भूत, वर्तमान और भावी जीवन का सर्वांगीण प्रकार है। विचार और कर्म के क्षेत्र में राष्ट्र का जो सृजन है, वही उसकी संस्कृति है। संस्कृति मानवीय जीवन की प्रेरक शक्ति है। वह जीवन की प्राणवायु है, जो उसके चैतन्य भाव की साक्षी है। संस्कृति विश्व के प्रति अनंत मैत्री की भावना है। संस्कृति के द्वारा हम दूसरों के साथ संतुलित स्थिति प्राप्त करते हैं। विश्वात्मा के साथ अद्रोह की स्थिति और संप्रीति का भाव उच्च संस्कृति का सर्वोत्तम लक्षण है।स्थूल जीवन में संस्कृति की अभिव्यक्ति कला को जन्म देती है। कला का संबंध जीवन के मूर्त रूप से है। संस्कृति को मन और प्राण कहा जाए तो कला उसका शरीर है। कला मानवीय जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।भारतीय कला का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत था। प्राचीन काल से आनेवाले अनेक सूत्र नगर और गाँवों के जीवन में अब भी बिखरे हुए हैं। बंगाल की अल्पना, राजस्थान के मेहँदी-माँडने, बिहार के ऐपन, उत्तर प्रदेश के चौक, गुजरात-महाराष्ट्र की रंगोली और दक्षिण-भारत के कोलम—इनके वल्लरी-प्रधान तथा आकृति-प्रधान अलंकरणों में कला की एक अति प्राचीन लोकव्यापी परंपरा आज भी सुरक्षित है।अत्यंत रोचक शैली में लिखी भारतीय कला और संस्कृति का सांगोपांग दिग्दर्शन कराने वाली पठनीय पुस्तक।अनुक्रमभूमिका—Pgs.

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  • Stock: 10
  • Model: PP1364
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP1364
  • ISBN: 9789353229436
  • ISBN: 9789353229436
  • Total Pages: 264
  • Edition: Edition 1
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2020
₹ 500.00
Ex Tax: ₹ 500.00