नाटक : एकांकी - Ikkisveen Sadi Ke Bal Natak
नाटक बाल साहित्य की ऐसी विधा है, जिसमें कविता, कहानी, रहस्य-रोमांच और अभिनय सभी कुछ शामिल है। बच्चों को नाटकों में जितना आनंद आता है, उतना शायद ही साहित्य के किसी और रूप में। जब वे नाटकों में खुद अपने जैसे बच्चों और उनकी अजब-गजब मुश्किलों को सामने मंच पर देखते हैं या उन्हें आनंद और मस्ती से सराबोर होकर किसी अभियान में जुटा देखते हैं, तो उनके भीतर एक गहरा रोमांच पैदा होता है। वे दुःख और मुश्किलों की घड़ियों में भी मस्ती से ठहाके लगाना सीख लेते हैं। और यों बच्चों के मन, इच्छाओं और सपनों से जुड़े बाल नाटक उनके लिए अनायास मुक्तिदूत बन जाते हैं!
सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार प्रकाश मनु के बाल नाटकों के संग्रह ‘इक्कीसवीं सदी के बाल नाटक’ में ऐसे ही एक से एक दिलचस्प नाटक हैं, जिन्हें मंच पर खेला जाए तो बच्चे ही नहीं, बड़ों को भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, जिसे वे जिंदगी भर भूल नहीं पाएँगे। इन नाटकों में जीवन के सभी रंग हैं और वे खेल-खेल में बच्चों की मुश्किलें सुलझाते हैं। यही नहीं, वे बच्चों में आगे बढ़ने और कुछ नया करने का जोश भी पैदा करते हैं।
उम्मीद है, बच्चे और किशोर पाठक नए रंग-रूप वाले इन नाटकों को रुचि से पढ़ेंगे और गली-मोहल्लों या स्कूल के फंक्शनों में मंचित भी करना चाहेंगे।अनुक्रमणिका1. पप्पू बन गया दादाजी! — Pgs. 92. हमारा हीरो शेरू — Pgs. 143. मुझसे दोस्ती करोगे? — Pgs. 224. खेल-खेल में नाटक — Pgs. 285. नाचो भालू, नाचो — Pgs. 356. कहानी नानी की — Pgs. 457. अजब तमाशा, गजब तमाशा — Pgs. 558. गुलगुलिया के बाबा — Pgs. 659. मुन्नू का अजब नाटक — Pgs. 7310. धमाल-पंपाल के जूते — Pgs. 8111. भुलक्कड़राम — Pgs. 9112. जानकीपुर की रामलीला — Pgs. 9913. अधकू ने किया कमाल — Pgs. 11314. झटपट सिंह फटफट सिंह — Pgs. 12315. यारो, मैं करमकल्ला नहीं हूँ! — Pgs. 13416. टुनटुनिया राज्य का महामूर्ख — Pgs. 14417. निठल्लूपुर का राजा — Pgs. 155
नाटक : एकांकी - Ikkisveen Sadi Ke Bal Natak
Ikkisveen Sadi Ke Bal Natak - by - Prabhat Prakashan
Ikkisveen Sadi Ke Bal Natak - नाटक बाल साहित्य की ऐसी विधा है, जिसमें कविता, कहानी, रहस्य-रोमांच और अभिनय सभी कुछ शामिल है। बच्चों को नाटकों में जितना आनंद आता है, उतना शायद ही साहित्य के किसी और रूप में। जब वे नाटकों में खुद अपने जैसे बच्चों और उनकी अजब-गजब मुश्किलों को सामने मंच पर देखते हैं या उन्हें आनंद और मस्ती से सराबोर होकर किसी अभियान में जुटा देखते हैं, तो उनके भीतर एक गहरा रोमांच पैदा होता है। वे दुःख और मुश्किलों की घड़ियों में भी मस्ती से ठहाके लगाना सीख लेते हैं। और यों बच्चों के मन, इच्छाओं और सपनों से जुड़े बाल नाटक उनके लिए अनायास मुक्तिदूत बन जाते हैं!
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- Model: PP1350
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP1350
- ISBN: 9789382901006
- ISBN: 9789382901006
- Total Pages: 168
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2016
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00