कहानी - Meera Sikri Ki Lokpriya Kahaniyan
मीरा सीकरी की कहानियाँ अधिकतर स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर लिखी गई हैं। संबंधों की एक ऐसी शृंखला, जो बाहर से भीतर की तरफ मुड़ी हुई है। बाहरी संबंध यहाँ एक भीतरी घटना की तरह हो गए हैं और इस घटना के साथ जुड़ा हुआ है कई तरह का अवसाद, अकेलापन और अस्तित्व के प्रश्न, जो संबंधों को नए-नए रूपों में परिभाषित करते चलते हैं। इन कहानियों के केंद्र में स्त्री है, जिसके मन के अनकहे एहसास को पकड़ने के लिए मनोविश्लेषण ही कारगर हो सकता है।
वर्तमान समय में ऐसा प्रकट किया जा रहा है कि स्त्री-पुरुष संबंधों में एक स्वतंत्र और सहनशील मानसिकता विकसित हुई है। यह आभासी सच है या वास्तविकता, इसको देखना होगा। आज की उपभोगतावादी संस्कृति के परिदृश्य में, स्त्री हो या पुरुष, उसकी दृष्टि केंद्रित है अर्थ के उपार्जन पर, प्रतियोगिता और दौड़भाग, मन के भावों के लिए अवकाश ही कहाँ है? जीवन का सारा खेल शक्ति के केंद्रीकरण का है और इस शक्ति को समूचा का समूचा सौंप दिया गया है अर्थ को।
समाज में व्याप्त विसंगतियाँ, संत्रास और परस्पर निर्भरता के ताने-बाने में बुनी ये कहानियाँ पठनीय तो हैं ही, उद्वेलित करनेवाली भी हैं।अनुक्रमभूमिका—71. आज हमारा ब्याह—132. उमस के बाद—213. टैंकर—264. और मैं यंत्र हो जाती हूँ—305. तप्तसमाधि—346. बलात्कार—417. मजीबा लाला—488. सुख-गाथा—559. अनहोनी की भूख—5910. बिट्टो जानती है—6211. अपनी म्याऊँ के लिए—7012. अक्षर संबंध—7613. फैसला—8214. दुलहिन गावहु मंगलाचार—8715. कोई बात नहीं—9616. मैत्री—10117. घेरे में—10618. कुँआरी कन्या—11119. पूर्णाहूति—12220. पहचान—12821. सुल्फा बाबा—13222. सच्चो सच—13623. एक और वह—14224. बेवड़ाई दोस्ती—15025. काँकड़ा खोह—15726. किले के विभक्त खंडों की परछाइयाँ—16327. पिकनिक—171
कहानी - Meera Sikri Ki Lokpriya Kahaniyan
Meera Sikri Ki Lokpriya Kahaniyan - by - Prabhat Prakashan
Meera Sikri Ki Lokpriya Kahaniyan - मीरा सीकरी की कहानियाँ अधिकतर स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर लिखी गई हैं। संबंधों की एक ऐसी शृंखला, जो बाहर से भीतर की तरफ मुड़ी हुई है। बाहरी संबंध यहाँ एक भीतरी घटना की तरह हो गए हैं और इस घटना के साथ जुड़ा हुआ है कई तरह का अवसाद, अकेलापन और अस्तित्व के प्रश्न, जो संबंधों को नए-नए रूपों में परिभाषित करते चलते हैं। इन कहानियों के केंद्र में स्त्री है, जिसके मन के अनकहे एहसास को पकड़ने के लिए मनोविश्लेषण ही कारगर हो सकता है। वर्तमान समय में ऐसा प्रकट किया जा रहा है कि स्त्री-पुरुष संबंधों में एक स्वतंत्र और सहनशील मानसिकता विकसित हुई है। यह आभासी सच है या वास्तविकता, इसको देखना होगा। आज की उपभोगतावादी संस्कृति के परिदृश्य में, स्त्री हो या पुरुष, उसकी दृष्टि केंद्रित है अर्थ के उपार्जन पर, प्रतियोगिता और दौड़भाग, मन के भावों के लिए अवकाश ही कहाँ है?
- Stock: 10
- Model: PP862
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP862
- ISBN: 9789352662944
- ISBN: 9789352662944
- Total Pages: 176
- Edition: Edition 1
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2018
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00