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कहानी - Ek Tha Aadmi

कहानी - Ek Tha Aadmi
मैं हक्का-बक्का रह गया। वह मछली ही थी। मछली के सिवा ऐसा कोई हँस ही नहीं सकता। थोड़ी ज्यादा लंबी हो गई थी। बदन हृष्‍ट-पुष्‍ट हो गया था। कुछ श्‍याम हो गई थी। घुटनों तक पहुँचने वाले बाल सूखे थे। ''मुझे पहचाना नहीं?’ ’ कहकर मछली फिर से हँसी। ''कल बड़े चाचा आए थे। तुम सब आए हो, ऐसी खबर दी। मुझे लगता ही था कि तुम आओगे।’ ’ ''बहुत साल बीत गए, नहीं?’ ’ मैंने कहा। बाद में आगे बताया, ''रामगर महाराज स्वर्ग सिधार गए, यह समाचार मुझे आज ही मिला।’ ’ मछली ने आसमान की ओर उँगली दिखाई, बाद में त्रिशूल के सामने देखकर बोली, ''पिताजी का त्रिशूल वैसी ही स्थिति में सँभालकर रखा है।’ ’ ''तब से...तब से...’ ’ मैं थोड़ा हिचकिचाया। उसे अब 'तू’ कैसे कह सकता हूँ? 'मछली’ कहकर भी संबोधन नहीं कर सकता। ''यहाँ कौन रहता है?’ ’ जवाब जानता था, उसके बावजूद सवाल पूछ बैठा। ''रक्षा करती हैं जगदंबा माता और आसपास की देखभाल में मेरा समय बीत जाता है।’ ’ —इसी संग्रह सेभारतीय समाज में व्याप्‍त बुराइयों, विसंगतियों, पारिवारिक उलझनों, सामाजिक मान्यताओं एवं परंपराओं, उनके आदर्शों का यथार्थ चित्रण पेश करती भावपूर्ण व रोचक कहानियाँ। "

कहानी - Ek Tha Aadmi

Ek Tha Aadmi - by - Prabhat Prakashan

Ek Tha Aadmi - मैं हक्का-बक्का रह गया। वह मछली ही थी। मछली के सिवा ऐसा कोई हँस ही नहीं सकता। थोड़ी ज्यादा लंबी हो गई थी। बदन हृष्‍ट-पुष्‍ट हो गया था। कुछ श्‍याम हो गई थी। घुटनों तक पहुँचने वाले बाल सूखे थे। ''मुझे पहचाना नहीं?

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  • Stock: 10
  • Model: PP811
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP811
  • ISBN: 9789380183596
  • ISBN: 9789380183596
  • Total Pages: 160
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2018
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00