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Literary Criticism - Muktibodh Sahitya Mein Nayi Pravrittiyan

Literary Criticism - Muktibodh Sahitya Mein Nayi Pravrittiyan
अपनी कविताओं में विचारों के आवेग को मुक्तिबोध अपने आत्मचित्रों से सन्तुलित और संवर्धित करते हुए उसमें हर बार एक नया रंग भरते चलते हैं। इस रूप में मुक्तिबोध आधुनिक यूरोपीय चित्रकारों की चित्रशैली और चित्रछवियों के अत्यन्त निकट हैं। कविताएँ केवल शब्दों और लयों और विचारों से ही नहीं सजतीं, कविता में बीच-बीच में प्रकट होनेवाले वे आत्मचित्र हैं जो उनके अन्तर्कथ्य को तराशते हैं। उनका यह आत्म उतना ही क्षत-विक्षत, उतना ही रोमानी, उतना ही यातनादायी है जितना खड़ी बोली के दूसरे कवियों का।मुक्तिबोध कम्युनिस्ट होते हुए भी ललकार के कवि नहीं हैं, ललकार के भीतर की मजबूरी के कवि हैं। यही वह भविष्य दृष्टि है जो उन्हें हिन्दी के दूसरे कवियों से अलग करती है। वे बाहर देखते ज़रूर हैं लेकिन आत्मोन्मुख होकर। उनकी नज़र बाहरी दुनिया के तटस्थ काव्यात्मक कथन में नहीं है, बल्कि बाहरी दुनिया के भीतरी टकरावों में है। इसीलिए वे हिन्दी के एक अलग और अनोखे क़िस्म के कवि हैं जिनकी तुलना किसी से नहीं।

Literary Criticism - Muktibodh Sahitya Mein Nayi Pravrittiyan

Muktibodh Sahitya Mein Nayi Pravrittiyan - by - Rajkamal Prakashan

Muktibodh Sahitya Mein Nayi Pravrittiyan -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP577
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP577
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 144p
  • Edition: 2022, Ed. 2nd
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2013
₹ 495.00
Ex Tax: ₹ 495.00