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Literary Criticism - Muktibodh : Ek Vyaktitwa Sahi Ki Talash Main

Literary Criticism - Muktibodh : Ek Vyaktitwa Sahi Ki Talash Main
हिन्दी कविता की शीर्षक लेखनी—मुक्तिबोध। आत्मसमीक्षा और जगत-विवेचन के निष्ठुर प्रस्तावक।उन्होंने एक दुर्गम पथ की ओर संकेत किया, जिससे होकर हमें अनुभव और अभिव्यक्ति की सम्पूर्णता तक जाना था; क्या हम जा सके?हिन्दी की वरिष्ठतम उपस्थिति कृष्णा सोबती, जिनकी आँखों ने लगभग एक सदी का इतिहास साक्षात् देखा; और जो आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में आसपास फैले समय से उतनी ही व्यथित हैं, जितनी अपने समय और समाज में निपट अकेली, मुक्तिबोध की रूह रही होगी—मानवता विराट और सर्वसमावेशी उज्ज्वल स्वप्न के लगातार दूर होते जाने से कातर और क्रुद्ध।यह मुक्तिबोध का एक अनौपचारिक पाठ है जिसे कृष्णा जी ने अपने गहरे संवेदित मन से किया है। भारतीय इतिहास के दो समय यहाँ रूबरू हैं।

Literary Criticism - Muktibodh : Ek Vyaktitwa Sahi Ki Talash Main

Muktibodh : Ek Vyaktitwa Sahi Ki Talash Main - by - Rajkamal Prakashan

Muktibodh : Ek Vyaktitwa Sahi Ki Talash Main - हिन्दी कविता की शीर्षक लेखनी—मुक्तिबोध। आत्मसमीक्षा और जगत-विवेचन के निष्ठुर प्रस्तावक।उन्होंने एक दुर्गम पथ की ओर संकेत किया, जिससे होकर हमें अनुभव और अभिव्यक्ति की सम्पूर्णता तक जाना था; क्या हम जा सके?

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  • Stock: 10
  • Model: RKP2208
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP2208
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 124p
  • Edition: 2017, Ed. 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2017
₹ 495.00
Ex Tax: ₹ 495.00